Acts and regulations under east india company notes in hindi
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन अधिनियम और विनियम: पृष्ठभूमि और विशेषताएँ
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में 1600 से 1858 तक शासन किया। इस दौरान, कंपनी ने अपने व्यापार और शासन को संचालित करने के लिए कई अधिनियम और विनियम बनाए। ये कानून भारत में कंपनी के राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक वर्चस्व को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए थे। इन अधिनियमों और विनियमों ने कंपनी के अधिकारों को स्पष्ट किया, उनके कर्तव्यों को परिभाषित किया और भारत में प्रशासनिक संरचना की नींव रखी।
- ईस्ट इंडिया कंपनी का पृष्ठभूमि (Background)
- स्थापना:
- ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में रानी एलिजाबेथ I के शाही फरमान (Charter) के तहत हुई। इसे भारत और पूर्वी एशिया में व्यापार का विशेषाधिकार मिला।
- व्यापार से प्रशासन तक:
- शुरुआत में कंपनी का उद्देश्य केवल व्यापारिक लाभ था।
- 1757 में प्लासी की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई में विजय के बाद, कंपनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में दीवानी (राजस्व वसूली) अधिकार प्राप्त कर लिए।
- इसने कंपनी को व्यापारिक संस्था से एक प्रशासनिक शक्ति में बदल दिया।
- शासन की आवश्यकता:
- भारत में कंपनी के शासन का विस्तार होने के साथ, प्रशासनिक संरचना और कानून बनाने की आवश्यकता महसूस हुई।
- प्रमुख अधिनियम और उनके प्रावधान (Major Acts and Their Features)
(i) रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act, 1773)
- पृष्ठभूमि:
- कंपनी के प्रशासन में भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन के कारण इस अधिनियम को लाया गया।
- मुख्य प्रावधान:
- गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल की स्थापना:
बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर-जनरल” बनाया गया और उनकी सहायता के लिए एक कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। - कंपनी के नियंत्रण पर ब्रिटिश सरकार का अधिकार:
यह अधिनियम पहली बार ब्रिटिश सरकार को कंपनी के मामलों पर नियंत्रण का अधिकार देता है। - सुप्रीम कोर्ट की स्थापना:
1774 में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।
- गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल की स्थापना:
(ii) पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 (Pitt’s India Act, 1784)
- पृष्ठभूमि:
- रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 की असफलताओं को सुधारने के लिए यह अधिनियम लाया गया।
- मुख्य प्रावधान:
- कंपनी के राजनीतिक और व्यापारिक कार्यों को अलग किया गया।
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गई, जो ब्रिटिश सरकार की ओर से कंपनी के राजनीतिक मामलों की देखरेख करता था।
- गवर्नर-जनरल को अधिक अधिकार दिए गए।
(iii) चार्टर एक्ट, 1813 (Charter Act, 1813)
- पृष्ठभूमि:
- ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करने का दबाव बढ़ रहा था।
- मुख्य प्रावधान:
- कंपनी के भारत में व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त किया गया (चाय और चीन के व्यापार को छोड़कर)।
- भारत में ईसाई मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।
- भारत में शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए धन आवंटित किया गया।
(iv) चार्टर एक्ट, 1833 (Charter Act, 1833)
- पृष्ठभूमि:
- कंपनी के प्रशासन में सुधार और भारतीय क्षेत्रों का केंद्रीकरण।
- मुख्य प्रावधान:
- गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का नाम बदलकर गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया किया गया।
- भारत में कानून निर्माण के लिए एक कानून आयोग (Law Commission) की स्थापना की गई।
- कंपनी का व्यापारिक कार्य समाप्त कर दिया गया, और इसे पूरी तरह से प्रशासनिक संस्था बना दिया गया।
(v) चार्टर एक्ट, 1853 (Charter Act, 1853)
- पृष्ठभूमि:
- भारत में प्रशासनिक संरचना को और मजबूत करने की आवश्यकता।
- मुख्य प्रावधान:
- भारत में सिविल सेवा के लिए प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली शुरू की गई।
- विधान परिषद (Legislative Council) का पुनर्गठन किया गया।
- गवर्नर-जनरल की कार्यकारी और विधायी परिषद को अलग किया गया।
(vi) भारत सरकार अधिनियम, 1858 (Government of India Act, 1858)
- पृष्ठभूमि:
- 1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया।
- मुख्य प्रावधान:
- कंपनी का प्रशासनिक नियंत्रण ब्रिटिश सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया।
- भारत में ब्रिटिश क्राउन के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय की नियुक्ति की गई।
- भारत सचिव (Secretary of State for India) का पद बनाया गया।
- अधिनियमों की विशेषताएँ (Features of Acts and Regulations)
- केंद्रीकरण की प्रक्रिया:
- कंपनी के प्रशासन को शुरू में अलग-अलग प्रेसीडेंसी (बंगाल, मद्रास, बॉम्बे) में विभाजित किया गया था।
- 1833 के बाद प्रशासन को गवर्नर-जनरल के तहत केंद्रीकृत किया गया।
- कानून निर्माण और न्याय प्रणाली:
- 1774 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से न्याय प्रणाली को औपचारिक रूप दिया गया।
- कानून आयोगों के माध्यम से कानूनों को सरल और संगठित किया गया।
- व्यापार से प्रशासन तक का परिवर्तन:
- चार्टर एक्ट, 1833 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी तरह से एक प्रशासनिक संस्था बन गई।
- ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप:
- रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 और पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के कार्यों पर नियंत्रण स्थापित किया।
- भारतीय हितों की अनदेखी:
- कंपनी के कानून और विनियम मुख्य रूप से ब्रिटिश हितों की पूर्ति के लिए बनाए गए थे।
- भारतीय जनता के अधिकार और हित गौण थे।
निष्कर्ष
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम और विनियम ब्रिटिश साम्राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक वर्चस्व को सुनिश्चित करने का आधार बने। इन कानूनों ने भारत में आधुनिक प्रशासन और न्याय प्रणाली की नींव रखी, लेकिन साथ ही उन्होंने भारतीय जनता के अधिकारों और स्वतंत्रता को कुचल दिया। 1858 में कंपनी के शासन की समाप्ति के साथ, ब्रिटिश सरकार ने भारत के प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली, जिससे भारत के इतिहास में एक नया युग शुरू हुआ।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम और विनियम: पृष्ठभूमि
ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1600 में व्यापार के उद्देश्य से भारत में कदम रखा और धीरे-धीरे वह एक शक्तिशाली राजनीतिक और प्रशासनिक संस्था बन गई। कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार, उसके विस्तार और भारतीय उपमहाद्वीप में शक्ति के बढ़ते प्रभाव के कारण ब्रिटिश सरकार को यह महसूस हुआ कि इस संस्था को कानून और प्रशासनिक दृष्टि से नियंत्रित किया जाना चाहिए। यह नियंत्रित व्यवस्था कंपनी के शासन के दौरान कई अधिनियमों और विनियमों (Acts and Regulations) के रूप में स्थापित की गई। इन अधिनियमों का उद्देश्य कंपनी के कार्यों को सुव्यवस्थित करना, भारतीय क्षेत्रों में ब्रिटिश शक्ति को स्थिर करना, और भारत में न्याय और प्रशासन की एक संरचना स्थापित करना था।
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और शुरुआती उद्देश्य
- 1600 में स्थापना:
अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में रानी एलिजाबेथ I के चार्टर के तहत की थी। इस कंपनी को भारत और पूर्वी एशिया में व्यापार करने का विशेषाधिकार प्राप्त था। - व्यापार से सत्ता तक का संक्रमण:
शुरुआत में कंपनी का मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था, लेकिन धीरे-धीरे वह एक सैन्य और प्रशासनिक शक्ति में बदल गई।
1757 में प्लासी की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई में विजय के बाद, कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में अपने शासन का विस्तार किया, जिससे उसे राजनीतिक और आर्थिक नियंत्रण हासिल हुआ।
ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव के कारण अधिनियमों की आवश्यकता
ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन व्यापारिक गतिविधियों से अधिक राजनीति और प्रशासन में हस्तक्षेप करने लगा। इसका मुख्य कारण कंपनी के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ भारतीय राज्यों में उसकी भूमिका थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक अस्थिरता, शासकीय भ्रष्टाचार, और स्थानीय प्रशासन में बदलाव के कारण हुआ। कंपनी की बढ़ती शक्ति और नियंत्रण ने ब्रिटिश सरकार को यह महसूस कराया कि कुछ कानूनों और विनियमों की आवश्यकता है, ताकि:
- कंपनी के प्रशासन को नियंत्रित किया जा सके।
- भारत में ब्रिटिश शासन के समन्वय को सुनिश्चित किया जा सके।
- भारत में न्याय, कानून और व्यवस्था की स्थापना की जा सके।
- कंपनी के कार्यों को ब्रिटिश सरकार के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सके।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियमों का उद्देश्य
इन अधिनियमों के निर्माण का उद्देश्य था:
- कंपनी के व्यापारिक और प्रशासनिक कार्यों को स्पष्ट करना:
जैसे कि कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों में अंतर करना। - कंपनी के कार्यों में सुधार करना:
भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन को रोकने के लिए कड़े कानून बनाना। - कंपनी के नियंत्रण को ब्रिटिश सरकार के अधीन करना:
ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कंपनी के कार्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के अनुरूप हों। - भारतीय समाज और प्रशासन को नियंत्रित करना:
भारतीय शासकों और प्रशासन की कमजोरियों का लाभ उठाते हुए अंग्रेजों के शासन को मजबूत करना।
मुख्य घटनाएँ और परिवर्तनों का प्रभाव
- प्लासी की लड़ाई (1757):
- इस लड़ाई में रॉबर्ट क्लाइव ने सिराज-उद-दौला को हराया और कंपनी को बंगाल में अधिकार प्रदान किया।
- इसके बाद, कंपनी ने दीवानी अधिकार (राजस्व वसूली अधिकार) हासिल कर लिया।
- बक्सर की लड़ाई (1764):
- इस लड़ाई में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर कासिम और अन्य भारतीय शासकों को हराया।
- इसके परिणामस्वरूप कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार मिले।
- 1857 का विद्रोह:
- भारतीय उपमहाद्वीप में बड़े पैमाने पर असंतोष और विद्रोह के कारण कंपनी के शासन पर संकट आया।
- इस विद्रोह के बाद, भारत सरकार अधिनियम 1858 लाया गया, जिसके द्वारा ब्रिटिश सरकार ने कंपनी का शासन अपने हाथ में ले लिया।
निष्कर्ष
ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रारंभ एक वाणिज्यिक संस्था के रूप में हुआ था, लेकिन जैसे-जैसे कंपनी का विस्तार हुआ, उसकी आवश्यकता और अधिकारों में भी बदलाव आया। व्यापारिक से राजनीतिक, फिर प्रशासनिक कार्यों में बढ़ते प्रभाव ने ब्रिटिश सरकार को यह महसूस कराया कि कंपनी के कार्यों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न अधिनियमों की आवश्यकता है। इन अधिनियमों ने कंपनी के संचालन को परिभाषित किया, और भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन की नींव रखी।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम और विनियम (Acts and Regulations)
ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1600 में व्यापारिक उद्देश्य से भारत में कदम रखा, लेकिन समय के साथ उसने राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार भी प्राप्त कर लिए। इसके बाद कंपनी को भारत में अपने शासन को व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिए कई अधिनियम और विनियम बनाने पड़े। ये अधिनियम मुख्य रूप से कंपनी के प्रशासनिक कार्यों, व्यापारिक गतिविधियों और भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बने। इन अधिनियमों का उद्देश्य कंपनी की शक्ति को कानूनी रूप से वैध करना और भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थिरता सुनिश्चित करना था।
- रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act, 1773)
पृष्ठभूमि:
रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 का उद्देश्य कंपनी के प्रशासन में सुधार करना था। कंपनी के भ्रष्टाचार और वित्तीय संकट के कारण ब्रिटिश सरकार को यह कानून लाना पड़ा।
मुख्य प्रावधान:
- गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल की स्थापना: इस अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद दिया गया, और उनकी मदद के लिए एक कार्यकारी परिषद का गठन किया गया।
- ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण: ब्रिटिश सरकार को कंपनी के प्रशासन पर कुछ हद तक नियंत्रण प्राप्त हुआ।
- सुप्रीम कोर्ट की स्थापना: कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई, जो कंपनी के कर्मचारियों और भारतीय नागरिकों के बीच कानूनी मामलों की सुनवाई करता था।
- पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 (Pitt’s India Act, 1784)
पृष्ठभूमि:
इस अधिनियम को ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के प्रशासन में और अधिक सुधार लाने के लिए लाया। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी के व्यापार और राजनीतिक कार्यों को अलग करना था।
मुख्य प्रावधान:
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना: यह बोर्ड ब्रिटिश सरकार का एक नया अंग था, जो कंपनी के राजनीतिक मामलों की देखरेख करता था।
- गवर्नर-जनरल के अधिकारों का विस्तार: गवर्नर-जनरल को और अधिक अधिकार दिए गए, जिससे वह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में कंपनी के शासन का संचालन कर सकें।
- चार्टर एक्ट, 1813 (Charter Act, 1813)
पृष्ठभूमि:
यह अधिनियम कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करने और भारत में ईसाई धर्म के प्रचार को प्रोत्साहित करने के लिए लाया गया।
मुख्य प्रावधान:
- व्यापारिक एकाधिकार का अंत: कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, except for the trade in tea and trade with China.
- धार्मिक मिशनरियों को अनुमति: इस अधिनियम के तहत भारत में ईसाई मिशनरी गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया।
- शिक्षा के लिए धन आवंटन: भारतीय शिक्षा और सामाजिक सुधारों के लिए धन का आवंटन किया गया।
- चार्टर एक्ट, 1833 (Charter Act, 1833)
पृष्ठभूमि:
इस अधिनियम का उद्देश्य कंपनी के प्रशासन को और संगठित करना और भारत में एक समान प्रशासनिक प्रणाली को लागू करना था।
मुख्य प्रावधान:
- गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया का पद: बंगाल का गवर्नर-जनरल का पद बदलकर गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया कर दिया गया, और वह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख बन गए।
- कंपनी का व्यापारिक कार्य समाप्त: कंपनी का व्यापारिक कार्य समाप्त कर दिया गया, और इसे पूरी तरह से एक प्रशासनिक संस्था बना दिया गया।
- कानून आयोग का गठन: भारत में कानूनों का निर्माण करने के लिए एक कानून आयोग की स्थापना की गई।
- चार्टर एक्ट, 1853 (Charter Act, 1853)
पृष्ठभूमि:
यह अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन और कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए लाया गया था।
मुख्य प्रावधान:
- सिविल सेवा परीक्षा: भारत में सिविल सेवा की भर्ती के लिए एक प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली की शुरुआत की गई, जिससे भारतीयों को प्रशासन में भागीदारी का अवसर मिला।
- विधायी परिषद का पुनर्गठन: कंपनी के गवर्नर-जनरल की कार्यकारी और विधायी परिषद को अलग-अलग कर दिया गया, जिससे प्रशासन में अधिक पारदर्शिता आई।
- भारत सरकार अधिनियम, 1858 (Government of India Act, 1858)
पृष्ठभूमि:
1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया, और ब्रिटिश सरकार ने भारत का नियंत्रण अपने हाथ में लिया। इस अधिनियम के द्वारा कंपनी के प्रशासनिक अधिकार ब्रिटिश सरकार को सौंपे गए।
मुख्य प्रावधान:
- कंपनी का शासन समाप्त: भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और ब्रिटिश क्राउन ने भारत का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
- वायसराय की नियुक्ति: भारत में ब्रिटिश क्राउन के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय की नियुक्ति की गई।
- भारत सचिव का पद: भारत सरकार के प्रशासन के लिए एक नया पद भारत सचिव (Secretary of State for India) बनाया गया।
निष्कर्ष:
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम और विनियमों का उद्देश्य कंपनी के प्रशासन, व्यापार और न्यायिक कार्यों को नियंत्रित करना था। इन अधिनियमों ने कंपनी के अधिकारों को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाया और भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश साम्राज्य की दिशा में व्यवस्थित किया। ये अधिनियम न केवल कंपनी की सत्ता को वैधता प्रदान करते थे, बल्कि भारत में ब्रिटिश शासन की नींव भी रखते थे।
PYQ
प्रश्न और उत्तर:
- Q) ‘1813 का चार्टर अधिनियम’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2019)
- इसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार एकाधिकार (ट्रेड मोनोपॉली) को समाप्त कर दिया, लेकिन चाय के व्यापार और चीन के साथ व्यापार को अपवाद के रूप में रखा।
- इसने कंपनी द्वारा नियंत्रित भारतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश क्राउन की संप्रभुता को घोषित किया।
- भारत के राजस्व को अब ब्रिटिश संसद द्वारा नियंत्रित किया गया।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
स्पष्टीकरण:
- पहला कथन सही है:
- 1813 के चार्टर अधिनियम ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार एकाधिकार को समाप्त कर दिया।
- हालांकि, चाय के व्यापार और चीन के साथ व्यापार को अपवाद के रूप में रखा गया था।
- दूसरा कथन सही है:
- इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश क्राउन ने भारतीय क्षेत्रों पर अपनी संप्रभुता की पुष्टि की।
- तीसरा कथन गलत है:
- भारत के राजस्व का नियंत्रण ब्रिटिश संसद को नहीं दिया गया था। यह अभी भी कंपनी द्वारा ही प्रबंधित किया जाता था, लेकिन संसद द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता था।
इस प्रकार, सही उत्तर है (a) केवल 1 और 2
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