Advent of Europeans in India notes in hindi
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन: पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी और डेनिश
भारत में 15वीं शताब्दी के अंत और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन हुआ। इनका उद्देश्य भारत के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना और अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों को पूरा करना था। भारत में व्यापार और उपनिवेश स्थापित करने की दौड़ में मुख्य रूप से पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी और डेनिश शामिल थे। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं।
- पुर्तगाली (The Portuguese)
आगमन और उद्देश्य:
- वास्को-दा-गामा 1498 में कालीकट (वर्तमान कोझीकोड) के बंदरगाह पर पहुंचा। यह यूरोप से भारत आने वाला पहला समुद्री मार्ग था।
- पुर्तगालियों का मुख्य उद्देश्य मसालों का व्यापार और ईसाई धर्म का प्रसार करना था।
प्रमुख घटनाएँ:
- 1503: कोचीन में पहला पुर्तगाली किला बनाया गया।
- 1505: फ्रांसिस्को डी अल्मेडा को भारत में पुर्तगाली गवर्नर नियुक्त किया गया। उसने “ब्लू वॉटर पॉलिसी” (सागर पर प्रभुत्व) को अपनाया।
- 1510: अफोंसो डी अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर इसे पुर्तगाली प्रशासन का मुख्यालय बनाया।
- 1530: गोवा पुर्तगाली भारत की राजधानी बना।
प्रभाव और पतन:
- पुर्तगाली भारतीय समुद्री व्यापार में प्रभावी रहे, लेकिन 17वीं शताब्दी में डच और अंग्रेजों के बढ़ते प्रभुत्व के कारण उनका प्रभाव कम हो गया।
- 1961 तक गोवा पुर्तगाल के कब्जे में रहा, जिसे भारतीय सेना ने आजाद कराया।
- डच (The Dutch)
आगमन और उद्देश्य:
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी (VOC) की स्थापना 1602 में हुई। इनका उद्देश्य भारतीय मसालों पर एकाधिकार स्थापित करना था।
- डच मुख्यतः दक्षिण भारत और बंगाल में सक्रिय थे।
प्रमुख घटनाएँ:
- उन्होंने मसाले के व्यापार के लिए पुलीकट, सूरत, कासीमबाजार, नागपट्टनम और चिनसुरा जैसे बंदरगाह स्थापित किए।
- श्रीलंका, इंडोनेशिया, और मलक्का में उनका प्रभाव अधिक था।
प्रभाव और पतन:
- अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के उदय के कारण 18वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में डच प्रभाव समाप्त हो गया।
- 1759 में बैटल ऑफ बदारा के बाद डचों को निर्णायक हार का सामना करना पड़ा।
- अंग्रेज (The English)
आगमन और उद्देश्य:
- 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
- अंग्रेजों का उद्देश्य भारत में व्यापार और बाद में उपनिवेश स्थापित करना था।
प्रमुख घटनाएँ:
- 1615: सर थॉमस रो ने जहांगीर के दरबार में जाकर व्यापार की अनुमति प्राप्त की।
- 1639: मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में फोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना।
- 1690: जॉब चार्नॉक ने कोलकाता में व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
- 1757: प्लासी का युद्ध, जिसके बाद बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व बढ़ा।
- 1764: बक्सर का युद्ध, जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अधिकार प्राप्त किए।
प्रभाव और प्रभुत्व:
- 1857 तक भारत के अधिकांश भाग पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया।
- 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर ब्रिटिश सरकार ने सीधे शासन करना शुरू किया।
- फ्रांसीसी (The French)
आगमन और उद्देश्य:
- 1664 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
- फ्रांसीसियों का उद्देश्य भारत में व्यापारिक और राजनीतिक प्रभाव स्थापित करना था।
प्रमुख घटनाएँ:
- 1674 में पांडिचेरी (पुडुचेरी) में व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
- बंगाल, गुजरात, और कर्नाटक में भी फ्रांसीसी व्यापारिक केंद्र थे।
- 1746-1763: कर्नाटक युद्धों (Carnatic Wars) में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष हुआ।
- तीसरे कर्नाटक युद्ध (1756-1763) में फ्रांसीसी हार गए और पांडिचेरी अंग्रेजों के कब्जे में आ गया।
प्रभाव और पतन:
- फ्रांसीसी भारत में अंग्रेजों के समक्ष नहीं टिक सके और उनका प्रभाव केवल पांडिचेरी, चंद्रनगर और कुछ छोटे केंद्रों तक सीमित रह गया।
- डेनिश (The Danes)
आगमन और उद्देश्य:
- 1616 में डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
- डेनमार्क का उद्देश्य व्यापार करना था, लेकिन वे साम्राज्यवादी उद्देश्यों में बहुत प्रभावी नहीं रहे।
प्रमुख घटनाएँ:
- 1620 में तमिलनाडु के त्रांकुबार (तारांगमबाड़ी) में डेनिश व्यापारिक केंद्र स्थापित हुआ।
- बंगाल में भी उनके कुछ छोटे व्यापारिक केंद्र थे।
प्रभाव और पतन:
- 19वीं शताब्दी तक डेनमार्क ने भारत में अपना व्यापारिक प्रभाव खो दिया।
- 1845 में उन्होंने त्रांकुबार को अंग्रेजों को बेच दिया।
निष्कर्ष:
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन व्यापारिक उद्देश्यों से शुरू हुआ, लेकिन समय के साथ उनका ध्यान साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की ओर केंद्रित हो गया। पुर्तगाली भारत में सबसे पहले आए और उन्होंने गोवा को अपने मुख्यालय के रूप में स्थापित किया। डचों ने मसालों के व्यापार पर एकाधिकार करने का प्रयास किया, लेकिन अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के साथ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गए। फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच संघर्ष में अंततः अंग्रेज विजयी हुए और भारत में उनका प्रभुत्व स्थापित हुआ।
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन
15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना और एशियाई व्यापार मार्गों पर नियंत्रण प्राप्त करना था। यूरोपीय देशों ने भारत में मसालों, रेशम, कपास और अन्य बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार के लिए समुद्री मार्गों की खोज की। पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी और डेनिश मुख्य यूरोपीय शक्तियाँ थीं जिन्होंने भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
- पुर्तगाली (Portuguese)
- पहला आगमन: पुर्तगाली नाविक वास्को-दा-गामा 1498 में कालीकट (कोझीकोड) के बंदरगाह पर पहुंचा। यह भारत पहुंचने वाला पहला समुद्री मार्ग था।
- स्थापनाएँ:
- कोचीन में 1503 में पहला किला बनाया गया।
- 1510 में अफोंसो डी अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर इसे पुर्तगाली साम्राज्य का केंद्र बनाया।
- नीतियाँ:
- व्यापारिक एकाधिकार स्थापित किया।
- ईसाई धर्म का प्रसार किया।
- पतन:
- पुर्तगाली 17वीं शताब्दी में कमजोर पड़ गए और उनका प्रभाव डच और अंग्रेजों के कारण समाप्त हो गया।
- डच (Dutch)
- पहला आगमन: डच ईस्ट इंडिया कंपनी (VOC) की स्थापना 1602 में हुई।
- व्यापार केंद्र: पुलीकट, नागपट्टनम, कासीमबाजार, चंद्रनगर, और चिनसुरा।
- नीतियाँ:
- मसालों के व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया।
- श्रीलंका और मलक्का जैसे क्षेत्रों पर अधिक प्रभावी रहे।
- पतन:
- अंग्रेजों के साथ प्रतिस्पर्धा में डच हार गए।
- 1759 में बैटल ऑफ बदारा के बाद उनका भारत में प्रभाव समाप्त हो गया।
- अंग्रेज (English)
- पहला आगमन: 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
- मुख्य घटनाएँ:
- 1615 में सर थॉमस रो ने जहांगीर से व्यापार की अनुमति प्राप्त की।
- मद्रास (1639), बॉम्बे (1668), और कलकत्ता (1690) में व्यापार केंद्र स्थापित किए।
- प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों के बाद अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ा।
- नीतियाँ:
- “डिवाइड एंड रूल” (फूट डालो और राज करो) की नीति अपनाई।
- भारत में अपने व्यापार को साम्राज्य में परिवर्तित किया।
- प्रभाव:
- 19वीं शताब्दी तक भारत पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया।
- फ्रांसीसी (French)
- पहला आगमन: 1664 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।
- व्यापार केंद्र: पांडिचेरी, चंद्रनगर, कराइकल और माहे।
- मुख्य घटनाएँ:
- अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच तीन कर्नाटक युद्ध हुए (1746-1763)।
- तीसरे कर्नाटक युद्ध में फ्रांसीसी हार गए और उनका प्रभाव सीमित हो गया।
- पतन:
- पांडिचेरी और अन्य फ्रांसीसी ठिकाने अंग्रेजों के अधीन आ गए।
- डेनिश (Danish)
- पहला आगमन: 1616 में डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।
- व्यापार केंद्र: त्रांकुबार और बालासोर।
- पतन:
- डेनिश भारत में अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर सके।
- 1845 में उन्होंने अपने सभी ठिकाने अंग्रेजों को बेच दिए।
निष्कर्ष
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन व्यापारिक उद्देश्यों से शुरू हुआ, लेकिन समय के साथ यह साम्राज्यवादी आकांक्षाओं में बदल गया। पुर्तगाली सबसे पहले आए, लेकिन उनकी जगह डच, अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने ले ली। अंततः अंग्रेज भारत पर पूरी तरह हावी हो गए और 1947 तक यहां शासन किया।
भारत में पुर्तगालियों का आगमन
भारत में यूरोपीय शक्तियों के आगमन की शुरुआत पुर्तगालियों से हुई। 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने भारत आने के समुद्री मार्ग की खोज की। उनका मुख्य उद्देश्य भारत के बहुमूल्य मसालों के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करना और ईसाई धर्म का प्रसार करना था।
- वास्को-दा-गामा का आगमन (1498)
- 1498 में पुर्तगाली नाविक वास्को-दा-गामा ने केप ऑफ गुड होप (अफ्रीका) होते हुए भारत का समुद्री मार्ग खोजा और कालीकट (कोझीकोड) के बंदरगाह पर पहुंचा।
- यहां के राजा ज़मोरिन ने वास्को-दा-गामा को व्यापार की अनुमति दी।
- यह समुद्री मार्ग यूरोप और भारत के बीच व्यापार के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हुआ।
- भारत में पुर्तगालियों की स्थापनाएँ
कोचीन और गोवा:
- 1503 में पुर्तगालियों ने कोचीन में अपना पहला किला बनाया।
- 1510 में अफोंसो डी अल्बुकर्क ने गोवा पर विजय प्राप्त की और इसे पुर्तगाली साम्राज्य का मुख्यालय बनाया।
अन्य महत्वपूर्ण ठिकाने:
- दमन, दीव, और होर्मुज जैसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों पर कब्जा किया।
- पुर्तगालियों ने मसालों के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ब्लू वॉटर पॉलिसी अपनाई, जिसका उद्देश्य समुद्री मार्गों पर प्रभुत्व बनाना था।
- पुर्तगालियों की नीतियाँ और प्रभाव
- व्यापार:
- मसालों, सूती कपड़ों, रेशम और अन्य भारतीय वस्तुओं के व्यापार पर एकाधिकार किया।
- यूरोपीय बाजारों में भारतीय वस्तुओं की भारी मांग थी, जिससे पुर्तगालियों ने अपार मुनाफा कमाया।
- धार्मिक प्रभाव:
- ईसाई धर्म के प्रसार के लिए मिशनरियों को भारत लाया गया।
- गोवा में चर्च और मिशनरी केंद्र स्थापित किए गए।
- सांस्कृतिक प्रभाव:
- पुर्तगाली वास्तुकला, खानपान और संगीत ने गोवा और अन्य क्षेत्रों की संस्कृति पर प्रभाव डाला।
- पुर्तगालियों का पतन
- 17वीं शताब्दी में पुर्तगालियों का प्रभाव कम होने लगा। इसके मुख्य कारण थे:
- डच, अंग्रेज और फ्रांसीसियों जैसी अन्य यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन।
- 1612 में स्वाली की लड़ाई (Battle of Swally) में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को हराया।
- पुर्तगाली प्रशासनिक और सैन्य कमजोरी।
- 1961 तक गोवा पुर्तगालियों के नियंत्रण में रहा, जिसे भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” के तहत आजाद कराया।
निष्कर्ष
पुर्तगाली भारत में सबसे पहले आए और उन्होंने समुद्री व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने गोवा को अपने साम्राज्य का केंद्र बनाया और भारतीय व्यापार पर लंबे समय तक नियंत्रण बनाए रखा। हालांकि, अन्य यूरोपीय शक्तियों के आगमन और उनकी आक्रामक नीतियों के कारण पुर्तगालियों का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
भारत में डचों का आगमन
भारत में यूरोपीय शक्तियों के बीच व्यापारिक वर्चस्व की दौड़ में डच (नीदरलैंड के लोग) भी प्रमुख थे। उनका मुख्य उद्देश्य भारतीय मसालों के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करना और एशियाई व्यापार मार्गों में प्रभुत्व प्राप्त करना था।
- डचों का आगमन (The Arrival of the Dutch)
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी (VOC):
- 1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Verenigde Oost-Indische Compagnie – VOC) की स्थापना हुई।
- इसे एशिया में व्यापार करने के लिए अधिकार दिया गया।
- भारत में डच व्यापारिक गतिविधियाँ 1605 में शुरू हुईं।
- पहला व्यापार केंद्र:
- 1605 में डचों ने मछलीपट्टनम (आंध्र प्रदेश) में अपना पहला व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
- डचों की व्यापारिक स्थापनाएँ
डचों ने भारत के विभिन्न भागों में व्यापार केंद्र और बंदरगाह स्थापित किए। प्रमुख स्थान:
- दक्षिण भारत:
- पुलीकट (1610) – उनका मुख्यालय।
- नागपट्टनम, कोचीन, और त्रावणकोर।
- बंगाल क्षेत्र:
- कासीमबाजार, चिनसुरा, और पटना।
- गुजरात:
- सूरत।
डच मुख्यतः मसालों के व्यापार में रुचि रखते थे। खासतौर पर काली मिर्च, जायफल, जावित्री और लौंग के व्यापार में उनका दबदबा था।
- डचों की व्यापारिक नीतियाँ
- मसालों पर एकाधिकार:
- डचों ने भारतीय मसालों को यूरोप ले जाकर भारी मुनाफा कमाया।
- उन्होंने मलक्का, श्रीलंका, और इंडोनेशिया के मसाला द्वीपों पर भी कब्जा किया।
- स्थानीय राजाओं से संबंध:
- डचों ने भारत के स्थानीय राजाओं और व्यापारियों के साथ व्यापारिक गठजोड़ किया।
- डचों का पतन (Decline of the Dutch)
कारण:
- अंग्रेजों से प्रतिस्पर्धा:
- डच और अंग्रेजों के बीच व्यापारिक संघर्ष हुआ।
- 1759 में “बैटल ऑफ बदारा” (Battle of Bedara) में डचों को निर्णायक हार का सामना करना पड़ा।
- राजनीतिक महत्वाकांक्षा की कमी:
- डच केवल व्यापार में रुचि रखते थे और भारत में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास नहीं किया।
- इंडोनेशिया पर ध्यान:
- डचों ने भारत के बजाय इंडोनेशिया और मलक्का जैसे क्षेत्रों में अपना ध्यान केंद्रित किया।
- प्रशासनिक कमजोरी:
- डच प्रशासनिक रूप से कमजोर थे और अन्य यूरोपीय शक्तियों का मुकाबला नहीं कर सके।
परिणाम:
- 18वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में डचों का प्रभाव समाप्त हो गया।
- उनके अधिकांश व्यापारिक केंद्र अंग्रेजों और अन्य शक्तियों के नियंत्रण में चले गए।
- डचों का प्रभाव (Impact of the Dutch)
- भारतीय व्यापार पर प्रभाव:
- डचों ने भारतीय मसालों को यूरोप और अन्य बाजारों में पहुंचाने का काम किया।
- उन्होंने भारतीय बंदरगाहों और व्यापारिक मार्गों के विकास में योगदान दिया।
- सांस्कृतिक प्रभाव:
- हालांकि डचों का सांस्कृतिक प्रभाव अन्य यूरोपीय शक्तियों की तुलना में नगण्य था।
निष्कर्ष
डचों ने भारत में व्यापारिक गतिविधियाँ शुरू करके मसालों के व्यापार पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया। लेकिन अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बढ़ते दबदबे और इंडोनेशिया पर अपने अधिक ध्यान के कारण डच भारत में प्रमुख शक्ति नहीं बन सके। अंततः 18वीं शताब्दी में उनका प्रभाव समाप्त हो गया।
भारत में अंग्रेजों का आगमन
भारत में अंग्रेजों का आगमन 17वीं शताब्दी में व्यापारिक उद्देश्यों से हुआ। धीरे-धीरे उन्होंने न केवल व्यापार पर, बल्कि भारत के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया। अंग्रेजों का आगमन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने देश की सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक संरचना को बदल दिया।
- अंग्रेजों का भारत आगमन (Arrival of the English)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना (1600):
- 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया।
- कंपनी का मुख्य उद्देश्य भारत से मसाले, सूती कपड़े, रेशम, चाय और अन्य बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार करना था।
- पहला आगमन:
- 1608 में अंग्रेजों का पहला जहाज हेक्टर सूरत के बंदरगाह पर पहुंचा।
- 1612 में कैप्टन थॉमस बेस्ट ने सूरत के पास स्वाली की लड़ाई (Battle of Swally) में पुर्तगालियों को हराया, जिससे अंग्रेजों का भारत में व्यापार स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- मुगल दरबार में अंग्रेजों का प्रवेश
- 1615 में सर थॉमस रो को इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम ने मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा।
- सर थॉमस रो ने जहांगीर से अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की।
- अंग्रेजों को सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति दी गई।
- अंग्रेजों की व्यापारिक स्थापनाएँ
प्रमुख व्यापार केंद्र:
- मद्रास (1639):
- अंग्रेजों ने तमिलनाडु में मद्रास (फोर्ट सेंट जॉर्ज) की स्थापना की।
- बॉम्बे (1668):
- बॉम्बे (मुम्बई) को इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगालियों से दहेज के रूप में मिला।
- इसे अंग्रेजों ने 1668 में व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया।
- कलकत्ता (1690):
- बंगाल में जॉब चार्नॉक ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
- 1696 में अंग्रेजों ने फोर्ट विलियम का निर्माण किया।
अन्य व्यापारिक केंद्र:
- पटना, कासीमबाजार, और सूरत।
- अंग्रेजों का विस्तार और प्रभुत्व
प्रमुख लड़ाइयाँ और घटनाएँ:
- प्लासी का युद्ध (1757):
- बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच लड़ाई हुई।
- अंग्रेजों ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में इस युद्ध में जीत हासिल की।
- इस जीत ने बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता की नींव रखी।
- बक्सर का युद्ध (1764):
- अंग्रेजों ने बंगाल, अवध और मुगल सम्राट के संयुक्त बल को हराया।
- इस जीत के बाद अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अधिकार (राजस्व संग्रह का अधिकार) प्राप्त हुआ।
- भारत में राजनीतिक प्रभुत्व:
- अंग्रेजों ने धीरे-धीरे भारत के विभिन्न राज्यों पर कब्जा करना शुरू किया।
- 19वीं शताब्दी के मध्य तक अधिकांश भारतीय क्षेत्र उनके नियंत्रण में आ गया।
- अंग्रेजों की नीतियाँ और प्रभाव
नीतियाँ:
- व्यापार पर नियंत्रण:
- अंग्रेजों ने भारत में व्यापारिक एकाधिकार स्थापित किया।
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
- “फूट डालो और राज करो” (Divide and Rule) की नीति अपनाई।
- स्थानीय शासकों को कमजोर करना:
- अंग्रेजों ने भारतीय शासकों को कमजोर करने और उनके क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए सैन्य और कूटनीतिक तरीकों का उपयोग किया।
प्रभाव:
- भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- भारतीय उद्योगों को कमजोर किया गया, और भारत को केवल कच्चा माल आपूर्ति करने वाले देश में बदल दिया गया।
- शिक्षा, प्रशासन और परिवहन के क्षेत्रों में सुधार किया गया, लेकिन इनका उद्देश्य अंग्रेजी शासन को मजबूत करना था।
- अंग्रेजों का भारत में शासन (British Rule in India)
- 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया।
- 1858 में भारत को ब्रिटिश क्राउन (ब्रिटिश सरकार) के अधीन कर दिया गया।
- 1947 तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया।
निष्कर्ष
अंग्रेजों का भारत आगमन व्यापारिक उद्देश्यों से शुरू हुआ, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार किया और भारत पर अपना शासन स्थापित किया। अंग्रेजों का आगमन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने देश की सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक संरचना को पूरी तरह बदल दिया।
भारत में फ्रांसीसियों का आगमन
भारत में फ्रांसीसियों का आगमन 17वीं शताब्दी में व्यापारिक उद्देश्यों के साथ हुआ। फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के लिए भारत में कई ठिकाने बनाए और अंग्रेजों के साथ भारत में वर्चस्व की होड़ में शामिल हुई। हालांकि, अंततः अंग्रेजों ने भारत में फ्रांसीसियों के प्रभाव को सीमित कर दिया।
- फ्रांसीसियों का भारत आगमन (Arrival of the French)
- फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी (1664):
- फ्रांसीसी शासक लुई XIV ने 1664 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी (Compagnie des Indes Orientales) की स्थापना की।
- कंपनी का उद्देश्य भारत और एशिया के अन्य भागों में व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाना था।
- पहला व्यापार केंद्र:
- 1668 में फ्रांसीसियों ने सूरत में अपना पहला व्यापार केंद्र स्थापित किया।
- 1674 में पांडिचेरी (Pondicherry) को भारत में उनका मुख्यालय बनाया गया।
- फ्रांसीसियों की व्यापारिक स्थापनाएँ
प्रमुख व्यापार केंद्र:
- पांडिचेरी (1674):
- पांडिचेरी को फ्रांसीसी गवर्नर फ्रैंकोइस मार्टिन ने विकसित किया। यह फ्रांसीसियों का मुख्य व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया।
- चंद्रनगर:
- बंगाल में चंद्रनगर (Chandannagar) एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।
- कराइकल, माहे, और यानम:
- फ्रांसीसियों ने दक्षिण भारत और पूर्वी तट पर कई ठिकाने स्थापित किए।
- फ्रांसीसियों की नीतियाँ और उद्देश्य
- व्यापार का विस्तार:
- फ्रांसीसियों ने भारतीय वस्त्र, मसाले और अन्य उत्पादों के व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया।
- स्थानीय राजाओं से गठजोड़:
- फ्रांसीसियों ने भारतीय शासकों के साथ गठबंधन बनाकर अपने राजनीतिक और व्यापारिक हितों को बढ़ावा दिया।
- अंग्रेजों के साथ प्रतिस्पर्धा:
- फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच भारत में व्यापारिक और राजनीतिक प्रभुत्व की होड़ लगी रही।
- फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष (कर्नाटक युद्ध)
तीन कर्नाटक युद्ध (1746-1763):
- पहला कर्नाटक युद्ध (1746-1748):
- यह युद्ध यूरोप में ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार के युद्ध का हिस्सा था।
- फ्रांसीसियों ने मद्रास पर कब्जा कर लिया लेकिन युद्ध के अंत में इसे अंग्रेजों को लौटा दिया गया।
- दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749-1754):
- यह युद्ध भारत के स्थानीय राजाओं की सहायता के बहाने लड़ा गया।
- अंग्रेजों ने इस युद्ध में निर्णायक बढ़त हासिल की।
- तीसरा कर्नाटक युद्ध (1756-1763):
- यूरोप में सात साल के युद्ध का हिस्सा।
- 1761 में वांडिवाश की लड़ाई में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को निर्णायक रूप से हरा दिया।
- इस युद्ध के बाद फ्रांसीसियों का राजनीतिक प्रभाव समाप्त हो गया।
- फ्रांसीसियों का पतन (Decline of the French)
कारण:
- अंग्रेजों की रणनीतिक श्रेष्ठता:
- अंग्रेजों की नौसैनिक शक्ति और संसाधन फ्रांसीसियों से अधिक थे।
- स्थानीय समर्थन की कमी:
- फ्रांसीसियों को भारतीय शासकों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला।
- पुर्तगालियों और डचों के साथ प्रतिस्पर्धा:
- फ्रांसीसियों को अन्य यूरोपीय शक्तियों के साथ भी संघर्ष करना पड़ा।
- वांडिवाश की हार:
- वांडिवाश की लड़ाई (1761) में फ्रांसीसियों की हार ने भारत में उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को समाप्त कर दिया।
परिणाम:
- 1763 की पेरिस संधि (Treaty of Paris):
- इस संधि के तहत फ्रांसीसियों को भारत में अपने व्यापारिक केंद्र बनाए रखने की अनुमति मिली, लेकिन उन्हें सैन्य गतिविधियाँ बंद करनी पड़ीं।
- फ्रांसीसियों का भारत में प्रभाव पांडिचेरी, कराइकल, माहे और चंद्रनगर तक सीमित रह गया।
- फ्रांसीसियों का प्रभाव (Impact of the French)
- स्थापत्य कला:
- पांडिचेरी में फ्रांसीसी स्थापत्य शैली के अनेक भवन आज भी देखने को मिलते हैं।
- व्यापार और संस्कृति:
- फ्रांसीसियों ने भारतीय व्यापार को यूरोप से जोड़ने में भूमिका निभाई।
- उनकी व्यापारिक गतिविधियाँ सीमित रहीं, लेकिन सांस्कृतिक प्रभाव स्थायी है।
निष्कर्ष
फ्रांसीसी भारत में व्यापारिक उद्देश्यों से आए, लेकिन अंग्रेजों के साथ संघर्ष के कारण उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं हो सकीं। तीन कर्नाटक युद्धों और वांडिवाश की लड़ाई में हार के बाद फ्रांसीसियों का भारत में प्रभाव समाप्त हो गया, और उनका अस्तित्व केवल सीमित व्यापारिक केंद्रों तक रह गया।
भारत में डेनमार्कवासियों का आगमन (The Advent of the Danes in India)
डेनमार्क (डेनमार्कवासियों) ने 17वीं शताब्दी में भारत में व्यापारिक उद्देश्यों से प्रवेश किया। अन्य यूरोपीय शक्तियों की तरह डेनमार्क का उद्देश्य भी भारत के मसालों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के व्यापार में हिस्सेदारी हासिल करना था। हालांकि, उनका भारत में प्रभाव सीमित और अल्पकालिक रहा।
- डेनमार्कवासियों का भारत आगमन (Arrival of the Danes)
- डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी (Danish East India Company):
- 1616 में डेनमार्क ने डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी (Danish East India Company) की स्थापना की।
- कंपनी को भारत में व्यापारिक केंद्र स्थापित करने और एशियाई व्यापार मार्गों में हिस्सेदारी प्राप्त करने का अधिकार मिला।
- पहला व्यापार केंद्र:
- 1620 में डेनमार्कवासियों ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में त्रंकेबार (Tranquebar) में अपना पहला व्यापार केंद्र स्थापित किया।
- त्रंकेबार डेनमार्कवासियों का प्रमुख ठिकाना बन गया।
- डेनमार्कवासियों की व्यापारिक गतिविधियाँ
- व्यापारिक वस्तुएं:
- डेनमार्कवासियों ने मुख्यतः मसालों, सूती कपड़ों, रेशम, और इंडिगो (नील) का व्यापार किया।
- अन्य व्यापार केंद्र:
- डेनमार्कवासियों ने पश्चिम बंगाल में सैरामपुर (Serampore) में भी एक व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
- यह बंगाल में उनका मुख्य ठिकाना बन गया।
- डेनमार्कवासियों की नीतियाँ और उद्देश्य
- व्यापार का विस्तार:
- डेनमार्कवासियों ने अन्य यूरोपीय शक्तियों की तरह भारत के समुद्री व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया।
- स्थानीय शासकों से समझौते:
- उन्होंने भारतीय शासकों के साथ व्यापारिक गठजोड़ स्थापित किया, लेकिन उनकी उपस्थिति सीमित रही।
- डेनमार्कवासियों का पतन (Decline of the Danes)
कारण:
- संसाधनों की कमी:
- डेनमार्कवासियों के पास सीमित सैन्य और आर्थिक संसाधन थे।
- अन्य यूरोपीय शक्तियों से प्रतिस्पर्धा:
- अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, और डचों जैसी शक्तियों के बीच डेनमार्कवासियों का प्रभाव सीमित रहा।
- प्रशासनिक कमजोरी:
- डेनमार्कवासियों की व्यापारिक और प्रशासनिक रणनीतियां प्रभावी नहीं थीं।
- त्रंकेबार और सैरामपुर का हस्तांतरण:
- 1845 में डेनमार्कवासियों ने त्रंकेबार और सैरामपुर को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया।
परिणाम:
- डेनमार्कवासियों का भारत में व्यापार समाप्त हो गया, और वे पूरी तरह से भारत से बाहर हो गए।
- डेनमार्कवासियों का प्रभाव (Impact of the Danes)
- सांस्कृतिक प्रभाव:
- सैरामपुर में उन्होंने शैक्षिक गतिविधियों और प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की।
- 1818 में उन्होंने सैरामपुर कॉलेज की स्थापना की, जो भारत में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना।
- प्रकाशन और धर्म प्रचार:
- डेनमार्कवासियों ने मिशनरी गतिविधियों और ईसाई धर्म के प्रचार में योगदान दिया।
- सैरामपुर प्रेस से कई भारतीय भाषाओं में बाइबल प्रकाशित की गई।
निष्कर्ष
डेनमार्कवासियों का भारत में आगमन और व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य यूरोपीय शक्तियों की तुलना में कम प्रभावी रहीं। त्रंकेबार और सैरामपुर उनके प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र थे। हालांकि, उनकी कमजोर रणनीतियों और अन्य शक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण भारत में उनकी उपस्थिति अल्पकालिक रही। 1845 के बाद डेनमार्कवासियों का भारत से प्रभाव पूरी तरह समाप्त हो गया।
भारत में अन्य यूरोपीय शक्तियों के खिलाफ अंग्रेजों की सफलता के कारण
भारत में अंग्रेजों ने अन्य यूरोपीय शक्तियों जैसे पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और डेनमार्कवासियों को परास्त करके अपने वर्चस्व की स्थापना की। अंग्रेजों की यह सफलता कई कारणों पर आधारित थी, जिनमें उनकी रणनीतिक कुशलता, आर्थिक और सैन्य शक्ति, और स्थानीय परिस्थितियों का प्रभावी उपयोग शामिल है।
- संगठित और शक्तिशाली नौसेना (Powerful Navy)
- अंग्रेजों के पास एक संगठित और मजबूत नौसेना थी, जिसने उन्हें समुद्री मार्गों पर प्रभुत्व स्थापित करने में मदद की।
- उनकी नौसेना ने भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित की और अन्य यूरोपीय शक्तियों को कमजोर कर दिया।
- 1612 में स्वाली की लड़ाई (Battle of Swally) में पुर्तगालियों पर अंग्रेजों की जीत इसका प्रमुख उदाहरण है।
- राजनीतिक और कूटनीतिक कौशल (Political and Diplomatic Skill)
- अंग्रेजों ने भारतीय शासकों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए और उनकी कमजोरियों का लाभ उठाया।
- उन्होंने “फूट डालो और राज करो” (Divide and Rule) की नीति अपनाई, जिससे भारतीय राज्यों और राजाओं को विभाजित किया जा सका।
- स्थानीय शासकों के साथ संधियों और गठबंधनों ने अंग्रेजों को अन्य यूरोपीय शक्तियों पर बढ़त दिलाई।
- मजबूत आर्थिक स्थिति (Strong Economic Resources)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इंग्लैंड की सरकार और पूंजीपतियों से मजबूत आर्थिक समर्थन प्राप्त था।
- उन्होंने अपने व्यापारिक मुनाफे को सैन्य और राजनीतिक शक्ति बढ़ाने में लगाया।
- अन्य यूरोपीय शक्तियों, जैसे डेनमार्क और पुर्तगाल, के पास ऐसे संसाधनों की कमी थी।
- तकनीकी और सैन्य श्रेष्ठता (Technological and Military Superiority)
- अंग्रेजों के पास बेहतर हथियार और युद्ध तकनीक थी।
- उनकी सेना में अनुशासन और संगठनात्मक दक्षता अधिक थी।
- उन्होंने भारतीय शासकों की पारंपरिक सेनाओं और अन्य यूरोपीय शक्तियों की कमजोरियों का फायदा उठाया।
- स्थानीय समर्थन प्राप्त करना (Local Support)
- अंग्रेजों ने भारतीय व्यापारियों और जमींदारों का समर्थन प्राप्त किया।
- उन्होंने भारतीय शासकों के साथ लाभप्रद संधियाँ कीं, जिससे उन्हें स्थानीय संसाधनों और सैनिकों तक पहुँच मिली।
- फ्रांसीसियों की असफलता (French Failures)
- अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को तीन कर्नाटक युद्धों (1746-1763) में पराजित किया।
- वांडिवाश की लड़ाई (Battle of Wandiwash) में 1761 में फ्रांसीसियों की हार ने भारत में उनके प्रभाव को समाप्त कर दिया।
- फ्रांसीसियों की कमजोर रणनीतियाँ और स्थानीय सहयोग की कमी उनके पतन का मुख्य कारण बनीं।
- व्यापार पर एकाधिकार (Monopoly over Trade)
- अंग्रेजों ने भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों पर कब्जा कर लिया, जैसे मद्रास, कलकत्ता और बंबई।
- उन्होंने अन्य यूरोपीय शक्तियों को व्यापारिक गतिविधियों से बाहर कर दिया।
- उनका व्यापारिक एकाधिकार उन्हें आर्थिक और राजनीतिक शक्ति प्रदान करता था।
- अंग्रेजों की दीर्घकालिक दृष्टि (Long-term Vision)
- अंग्रेजों ने भारत में न केवल व्यापारिक बल्कि राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने की दीर्घकालिक योजना बनाई।
- अन्य यूरोपीय शक्तियों का मुख्य ध्यान केवल व्यापार तक सीमित था, जबकि अंग्रेजों ने स्थानीय प्रशासन, सैन्य शक्ति, और राजस्व व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया।
- स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण (Control over Local Administration)
- अंग्रेजों ने भारतीय राजस्व प्रणाली को समझकर उसे अपने नियंत्रण में लिया।
- उन्होंने प्रशासनिक संरचना का निर्माण किया, जिससे भारतीय शासकों को निर्भर बना दिया।
- प्रगतिशील दृष्टिकोण (Progressive Approach)
- अंग्रेजों ने भारत में बुनियादी ढांचे का विकास किया, जैसे सड़कों, बंदरगाहों और परिवहन साधनों का निर्माण।
- उनका प्रशासनिक और न्यायिक ढांचा प्रभावी था, जिससे उन्हें स्थानीय जनता का समर्थन मिला।
निष्कर्ष
अंग्रेजों की भारत में सफलता उनके संगठनात्मक कौशल, सैन्य शक्ति, आर्थिक संसाधनों और स्थानीय परिस्थितियों का कुशलता से उपयोग करने पर आधारित थी। अन्य यूरोपीय शक्तियों की सीमित दृष्टि और कमजोरियों ने अंग्रेजों को अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर दिया। अंग्रेजों की यह सफलता भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने भारत में उनके दीर्घकालिक वर्चस्व की नींव रखी।
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प्रश्न 1:
सत्रहवीं शताब्दी के पहले चरण में, निम्नलिखित में से कौन-से स्थान पर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की फैक्ट्री/फैक्ट्रियां स्थित थीं?
- ब्रोच (Broach)
- चिकाकोल (Chicacole)
- त्रिचिनोपोली (Trichinopoly)
सही उत्तर का चयन नीचे दिए गए कोड का उपयोग करके करें:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2 केवल
(c) केवल 3
(d) 2 और 3 केवल
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रोच (Broach) में अपनी फैक्ट्री स्थापित की थी, लेकिन चिकाकोल और त्रिचिनोपोली में कंपनी की फैक्ट्रियां स्थापित नहीं थीं।
सही उत्तर: (a) केवल 1
प्रश्न 2:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं ने – जिनमें मुख्य रूप से भारतीय सैनिक शामिल थे – उस समय के भारतीय शासकों की अधिक संख्या में और बेहतर सुसज्जित सेनाओं के खिलाफ लगातार जीत क्यों हासिल की? कारण बताइए। (2022)
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं ने भारतीय शासकों की अधिक संख्या और बेहतर हथियारों वाली सेनाओं को कई कारणों से लगातार हराया। इन कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- संगठित और अनुशासित सेना
- अंग्रेजी सेना में आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण और अनुशासन था, जो भारतीय शासकों की पारंपरिक सेनाओं में अक्सर अनुपस्थित था।
- सेना का नेतृत्व प्रशिक्षित ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किया जाता था, जिन्होंने युद्ध में नई रणनीतियों और तकनीकों का उपयोग किया।
- बेहतर सैन्य रणनीति और तकनीक
- ब्रिटिश सेनाओं ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, जिससे उन्होंने भारतीय शासकों को आपस में विभाजित किया।
- उनके पास आधुनिक युद्ध कला और तोपखाने की बेहतर तकनीक थी।
- उन्होंने युद्ध के मैदान पर रैखिक गठन (Linear Formation) जैसे आधुनिक सैन्य टैक्टिक्स का उपयोग किया।
- स्थानीय सहयोग और समर्थन
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय जमींदारों और व्यापारियों का समर्थन प्राप्त किया।
- भारतीय शासकों के दरबार में मौजूद गद्दार और स्वार्थी तत्वों ने अंग्रेजों को अंदरूनी जानकारी और संसाधन उपलब्ध कराए।
- आर्थिक शक्ति
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास यूरोप और भारत के व्यापार से होने वाला अपार धन था।
- इस धन का उपयोग उन्होंने अपनी सेनाओं को मजबूत करने, नए हथियार खरीदने, और भारतीय सैनिकों को भर्ती करने में किया।
- प्रशासनिक दक्षता
- कंपनी ने अपने सैनिकों को समय पर वेतन और सुविधाएँ प्रदान कीं, जिससे उनकी सेना में अनुशासन और विश्वास बना रहा।
- दूसरी ओर, भारतीय शासकों की सेनाओं में अक्सर वेतन न मिलने और भ्रष्टाचार की शिकायतें थीं।
- भारतीय शासकों की कमजोरियां
- भारतीय शासकों के बीच आपसी कलह और एकता का अभाव था।
- उनकी सेनाएँ बड़ी तो थीं, लेकिन उनमें अनुशासन और समन्वय की कमी थी।
- अधिकांश भारतीय सेनाएँ पारंपरिक युद्ध कौशल पर निर्भर थीं, जो आधुनिक अंग्रेजी सेना के सामने कमजोर साबित हुईं।
- स्थायी सेना का अभाव
- अधिकांश भारतीय शासकों के पास स्थायी सेना नहीं थी। वे युद्ध के समय भाड़े के सैनिकों पर निर्भर रहते थे, जिनकी युद्ध में प्रतिबद्धता कमजोर होती थी।
- इसके विपरीत, अंग्रेजों की सेना स्थायी और संगठित थी।
- वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति का प्रभाव
- ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटिश सेना के पास बेहतर हथियार, गोला-बारूद और अन्य संसाधन उपलब्ध थे।
- भारतीय सेनाएँ पुराने हथियारों और युद्ध तकनीकों पर निर्भर थीं।
निष्कर्ष:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सफलता केवल उनकी सैन्य शक्ति पर ही आधारित नहीं थी, बल्कि उनके संगठित प्रशासन, आर्थिक संसाधनों, और भारतीय शासकों की कमजोरियों के कुशल उपयोग पर आधारित थी। उनकी सेना का अनुशासन, रणनीतिक कौशल, और आधुनिक तकनीक उन्हें भारतीय शासकों की अधिक संख्या और बेहतर हथियारों वाली सेनाओं पर निरंतर जीत दिलाने में सहायक बनी।
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