British economic policies in india notes

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British economic policies in india notes

भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों की आर्थिक नीतियाँ मुख्य रूप से अपने लाभ और भारत को उपनिवेश के रूप में उपयोग करने के लिए बनाई गई थीं। इन नीतियों ने भारत की पारंपरिक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया और देश को ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा बना दिया।

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1. व्यापार नीति

ब्रिटिश सरकार ने भारत को कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और अपने तैयार माल के बाजार के रूप में विकसित किया।

  • भारतीय कारीगरों और हस्तशिल्प उद्योगों को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश वस्तुओं को भारत में कर-मुक्त कर दिया गया, जबकि भारतीय वस्तुओं पर भारी कर लगाए गए।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार पर एकाधिकार स्थापित किया, जिससे भारतीय व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ।

2. कर प्रणाली और भूमि नीति

ब्रिटिश सरकार ने राजस्व वसूली के लिए नई भूमि नीतियाँ लागू कीं, जिससे किसानों की स्थिति खराब हो गई।

  • जमींदारी व्यवस्था (Permanent Settlement, 1793) – लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा लागू इस प्रणाली के तहत जमींदारों को कर वसूली की जिम्मेदारी दी गई, जिससे किसानों का शोषण बढ़ा।
  • रैयतवाड़ी प्रणाली (Ryotwari System) – इसमें किसानों को सीधे सरकार को कर देना पड़ता था, लेकिन कर दरें इतनी अधिक थीं कि किसान गरीब होते चले गए।
  • महलवाड़ी प्रणाली (Mahalwari System) – इसमें पूरे गाँव पर कर लगाया गया और उसे गाँव के मुखिया द्वारा वसूला जाता था।

3. औद्योगिक नीति

ब्रिटिश सरकार ने भारत को कच्चे माल की आपूर्ति का केंद्र बना दिया और देशी उद्योगों को बर्बाद कर दिया।

  • भारतीय वस्त्र उद्योग को नष्ट करने के लिए ब्रिटिश मिलों से तैयार कपड़े सस्ते दामों में भारत भेजे गए।
  • भारतीय शिल्प और दस्तकारी उद्योगों को भारी करों और प्रतिस्पर्धा के कारण खत्म कर दिया गया।

4. संचार और परिवहन विकास

ब्रिटिश सरकार ने रेलवे, टेलीग्राफ और डाक व्यवस्था को विकसित किया, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य प्रशासन को मजबूत करना और ब्रिटिश व्यापार को बढ़ावा देना था।

  • रेलवे का निर्माण मुख्य रूप से ब्रिटिश माल की सुगम ढुलाई के लिए किया गया।
  • आधुनिक संचार व्यवस्था ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को मजबूत करने के लिए विकसित की गई।

5. नकदी फसल उत्पादन

अंग्रेजों ने किसानों को खाद्य फसलों के बजाय नकदी फसलें (जैसे नील, कपास, अफीम, चाय) उगाने के लिए मजबूर किया।

  • इससे देश में खाद्य संकट बढ़ा और भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हुई।
  • भारत में कई बार भीषण अकाल पड़े, लेकिन अंग्रेजों ने राहत देने के बजाय अनाज निर्यात कर दिया।

6. वित्तीय शोषण और धन का निकास (Drain of Wealth)

दादाभाई नौरोजी ने “धन का निष्कासन” (Drain of Wealth) सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार भारत का धन इंग्लैंड भेज रही थी।

  • करों के रूप में वसूला गया पैसा ब्रिटेन भेजा जाता था।
  • भारतीय सेना और प्रशासन का खर्च भी भारतीयों से ही वसूला जाता था।
  • भारतीय कच्चे माल को सस्ते में लेकर ब्रिटिश उद्योगों को समृद्ध किया गया और तैयार माल महंगे दामों में भारत में बेचा गया।

7. बैंकिंग और वित्तीय नीतियाँ

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय बैंकों और स्थानीय व्यापारिक संस्थानों को बढ़ावा नहीं दिया गया।

  • अंग्रेजों ने अपने बैंक स्थापित किए, जिससे भारतीय व्यापारियों पर उनकी निर्भरता बढ़ गई।
  • भारतीय व्यापारियों को ब्रिटिश कंपनियों के सामने कमजोर बना दिया गया।

निष्कर्ष

ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ पूरी तरह से भारत को उपनिवेश बनाए रखने और ब्रिटेन को आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिए बनाई गई थीं। इन नीतियों ने भारत की पारंपरिक अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया, किसानों को गरीबी में धकेल दिया और भारतीय उद्योगों को बर्बाद कर दिया। अंततः, इन नीतियों के कारण भारतीय समाज में असंतोष बढ़ा, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।

ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक आलोचना एवं ब्रिटिश शासन का आर्थिक प्रभाव

ब्रिटिश शासन के तहत भारत की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। अंग्रेजों की नीतियाँ पूरी तरह से भारत के संसाधनों का दोहन करने और अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिए बनाई गई थीं। इससे भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

1. ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक आलोचना

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के तहत भारत की आर्थिक नीतियों को इस तरह से संचालित किया गया कि वे केवल ब्रिटिश उद्योगों और व्यापार को लाभ पहुंचाएँ। इस संदर्भ में कुछ प्रमुख आर्थिक आलोचनाएँ इस प्रकार हैं:

(1) भारत का आर्थिक शोषण (Drain of Wealth)

  • दादाभाई नौरोजी ने “धन का निष्कासन” (Drain of Wealth) सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें बताया गया कि ब्रिटिश सरकार भारत से धन को ब्रिटेन भेज रही थी।
  • कर, व्यापार लाभ, वेतन और अन्य माध्यमों से भारत से निकाला गया धन ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने के लिए प्रयोग किया गया।
  • भारतीय मजदूरों और किसानों से अधिक उत्पादन करवाकर मुनाफा ब्रिटेन भेजा जाता था।

(2) भारतीय उद्योगों का विनाश

  • ब्रिटिश नीतियों के कारण भारतीय हस्तशिल्प और पारंपरिक उद्योग पूरी तरह बर्बाद हो गए।
  • ब्रिटेन में निर्मित सस्ते कपड़े और अन्य सामान भारतीय बाजार में भर दिए गए, जिससे भारतीय कारीगरों और बुनकरों की आजीविका समाप्त हो गई।
  • मशीनों से उत्पादित ब्रिटिश सामान भारतीय हस्तनिर्मित वस्तुओं से सस्ता होता था, जिससे भारत का स्वदेशी उत्पादन समाप्त हो गया।

(3) कृषि का व्यावसायीकरण और किसानों का शोषण

  • अंग्रेजों ने भारतीय किसानों को नकदी फसलें (जैसे नील, कपास, अफीम, चाय) उगाने के लिए बाध्य किया।
  • नकदी फसलों के कारण खाद्य उत्पादन में कमी आई, जिससे भयंकर अकाल पड़े और लाखों लोग भूख से मर गए।
  • कर वसूली की जमींदारी, रैयतवाड़ी और महलवाड़ी व्यवस्थाओं के कारण किसानों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा।

(4) करों की कठोर नीति

  • ब्रिटिश सरकार ने भारत में करों की दरें बहुत अधिक कर दीं, जिससे किसान और व्यापारी भारी आर्थिक संकट में आ गए।
  • भूमि कर की कठोर नीतियों के कारण किसानों को अपनी ज़मीनें बेचनी पड़ीं, जिससे वे भूमिहीन मजदूर बन गए।

(5) अनियंत्रित व्यापार नीतियाँ

  • भारत को एक “कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता” और ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं के “बाजार” में बदल दिया गया।
  • ब्रिटिश कंपनियों को विशेष छूट दी गई, जिससे भारतीय व्यापारियों को प्रतियोगिता में नुकसान हुआ।
  • अंग्रेजों ने अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए भारतीय व्यापारिक संगठनों को बढ़ने नहीं दिया।

(6) वित्तीय शोषण और ब्रिटिश बैंकों का प्रभाव

  • भारतीय बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों को विकसित नहीं होने दिया गया।
  • ब्रिटिश बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • रेलवे, डाक और टेलीग्राफ जैसी संरचनाएँ भारतीयों से अधिक कर वसूलकर बनाई गईं, लेकिन इनका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश व्यापार और प्रशासन को सुगम बनाना था।

2. ब्रिटिश शासन का आर्थिक प्रभाव

ब्रिटिश शासन के आर्थिक प्रभावों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(1) अल्पकालिक प्रभाव

  • ब्रिटिश शासन में व्यापारिक ढांचा बदला, लेकिन इसका लाभ केवल अंग्रेजों को मिला।
  • भारतीय उद्योगों के पतन के कारण बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी।
  • किसानों और मजदूरों का शोषण बढ़ा, जिससे उनका जीवन स्तर गिर गया।

(2) दीर्घकालिक प्रभाव

  • भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया बाधित हुई, जिससे देश पिछड़ा रह गया।
  • धन का बड़े पैमाने पर निष्कासन होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई।
  • खाद्य उत्पादन घटने से बार-बार अकाल और भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हुई।
  • भारतीय समाज में आर्थिक असमानता और सामाजिक असंतोष बढ़ा, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।

(3) स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

  • ब्रिटिश शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध भारतीय समाज में असंतोष पनपा।
  • महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन और अन्य आंदोलनों के माध्यम से आर्थिक बहिष्कार की नीति अपनाई गई।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश आर्थिक नीतियों की आलोचना की और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया।

निष्कर्ष

ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक नीतियाँ पूरी तरह से भारत के शोषण पर आधारित थीं। इन नीतियों के कारण भारत की पारंपरिक अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, कृषि व्यवस्था चरमरा गई और औद्योगिक विकास अवरुद्ध हो गया। ब्रिटिश शासन के अंत तक भारत एक गरीब और पिछड़ा हुआ देश बन चुका था। हालाँकि, इन शोषणकारी नीतियों ने भारतीयों को आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया, जिससे अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली।

Previous year question

प्रश्न 1: अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक भारत में अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों के विभिन्न पहलुओं की आलोचनात्मक जाँच करें। (UPSC Mains 2014)

प्रश्न 2: कई मायनों में, लॉर्ड डलहौजी आधुनिक भारत के संस्थापक थे। विस्तार से बताएँ। (UPSC Mains 2013)

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा कथन उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत पर औद्योगिक क्रांति के प्रभाव को सही ढंग से समझाता है? (UPSC Prelims 2020)

a भारतीय हस्तशिल्प बर्बाद हो गए।

b भारतीय कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में मशीनें लगाई गईं।

c देश के कई हिस्सों में रेलवे लाइनें बिछाई गईं।

d ब्रिटिश निर्माताओं के आयात पर भारी शुल्क लगाया गया।
उत्तर: (a)

प्रश्न 4: ‘1813 के चार्टर अधिनियम’ के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2019)

1 इसने चाय के व्यापार और चीन के साथ व्यापार को छोड़कर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार एकाधिकार को समाप्त कर दिया।
2 इसने कंपनी के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश क्राउन की संप्रभुता का दावा किया।
3 भारत के राजस्व पर अब ब्रिटिश संसद का नियंत्रण था।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा कथन सही है?

केवल 1 और 2
केवल 2 और 3
केवल 1 और 3
1, 2 और 3
उत्तर: (ए)

प्रश्न 5: आर्थिक रूप से, 19वीं शताब्दी में भारत में ब्रिटिश शासन के परिणामों में से एक था (यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2018)

a भारतीय हस्तशिल्प के निर्यात में वृद्धि
b भारतीय स्वामित्व वाली फैक्ट्रियों की संख्या में वृद्धि
c भारतीय कृषि का व्यावसायीकरण
d शहरी आबादी में तेजी से वृद्धि
उत्तर: (a)

FAQ

1. ब्रिटिश आर्थिक नीतियों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: ब्रिटिश आर्थिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया। भारत को केवल कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और ब्रिटिश सामान के बाजार के रूप में इस्तेमाल किया गया, जिससे भारतीय उद्योग खत्म हो गए, कृषि व्यवस्था चरमरा गई और व्यापक गरीबी फैल गई।

2. ‘Drain of Wealth’ का क्या अर्थ है?

3. ब्रिटिश औद्योगिक नीतियों से भारतीय कारीगरों को क्या नुकसान हुआ?

ब्रिटिश मिलों में बने सस्ते कपड़ों से भारतीय हस्तशिल्प और बुनकरों की आजीविका समाप्त हो गई।, भारतीय कारीगरों को करों से दबाया गया, जिससे वे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके।, भारतीय उद्योगों के पतन से बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी।

4. ब्रिटिश सरकार ने भारत में रेलवे और संचार व्यवस्था क्यों विकसित की?

उत्तर: ब्रिटिश सरकार ने रेलवे, टेलीग्राफ और डाक प्रणाली का विकास मुख्य रूप से अपने प्रशासन और व्यापार को सुगम बनाने के लिए किया। इसका उद्देश्य भारतीयों की भलाई नहीं, बल्कि ब्रिटिश वस्तुओं और सेना की आवाजाही को आसान बनाना था।

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