British education system in india in hindi

Table of Contents

British education system in india in hindi

ब्रिटिश शिक्षा नीति भारत में (British Education Policies in India)

ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपनी शिक्षा नीति को अपनी साम्राज्यवादी जरूरतों के अनुसार रूपांतरित किया। ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज में शिक्षा को नियंत्रित करने के लिए कई नीतियाँ बनाई, जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश शासन के प्रति आस्थावान बनाना और सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण करना था। इन नीतियों का भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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1. प्रारंभिक शिक्षा नीति (Early Educational Policies)

ब्रिटिशों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए शुरुआत में बहुत कम कदम उठाए थे। भारतीय समाज में पहले से गुरुकुल और मदरसे जैसी शिक्षा प्रणालियाँ थीं, लेकिन ब्रिटिशों ने इन्हें पश्चिमी शिक्षा के साथ प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया।

– 1813 का भारतीय शिक्षा अधिनियम (Indian Education Act of 1813)

इस अधिनियम के तहत ब्रिटिश सरकार ने ₹1 लाख का एक फंड आवंटित किया था ताकि भारतीयों के बीच शिक्षा का प्रचार किया जा सके। हालांकि, इस अधिनियम ने भारतीय भाषाओं में शिक्षा के प्रसार की बजाय अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रसार को बढ़ावा दिया।

– 1835 में मैकाले की शिक्षा नीति (Macaulay’s Education Policy of 1835)

लॉर्ड मैकाले ने 1835 में अपनी शिक्षा नीति प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा देने की बात की। उन्होंने भारतीय भाषाओं को तुच्छ मानते हुए अंग्रेजी को शिक्षा का मुख्य भाषा बनाने का प्रस्ताव रखा। उनका उद्देश्य था कि भारतीयों को अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी सभ्यता से परिचित कराया जाए ताकि वे ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार बनें।

2. शिक्षा के प्रकार और उद्देश्य (Types and Objectives of Education)

ब्रिटिश शासन के तहत शिक्षा का उद्देश्य मुख्य रूप से साम्राज्य के हितों की सेवा करना था। इसके तहत भारतीय समाज के अधिकांश वर्गों को शिक्षा से वंचित रखा गया। शिक्षा को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया था:

उच्च शिक्षा (Higher Education)

यह शिक्षा विशेष रूप से अंग्रेजी में थी और इसमें पश्चिमी दर्शन, साहित्य, और विज्ञान पर जोर दिया गया। ब्रिटिशों ने भारतीयों के लिए उच्च शिक्षा के संगठित संस्थान बनाए, जैसे कि कलकत्ता विश्वविद्यालय (Calcutta University) और बंबई विश्वविद्यालय (Bombay University)। यह शिक्षा भारतीयों को सिविल सेवाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से थी ताकि वे ब्रिटिश शासन में काम कर सकें।

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा (Primary and Secondary Education)

प्रारंभिक शिक्षा अधिकतर पारंपरिक और धार्मिक पाठ्यक्रमों पर आधारित थी, जो भारतीय समाज के गरीब वर्गों के लिए अपर्याप्त थी। ब्रितानी शासकों ने मूलभूत शिक्षा का प्रसार नहीं किया, और भारतीय जनता को संकीर्ण और औपचारिक शिक्षा से ही संतुष्ट रखा।

3. प्रमुख शिक्षा नीतियाँ (Major Education Policies)

– 1854 का रिफॉर्म ऐक्ट (The Wood’s Despatch of 1854)

यह वूड्स डेस्पैच भारत में शिक्षा सुधार की सबसे महत्वपूर्ण नीति मानी जाती है। इसमें यह सुझाव दिया गया था कि भारत में स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण किया जाए और पारंपरिक शिक्षा के स्थान पर पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए। इस नीति का उद्देश्य भारतीयों को बुद्धिजीवियों के रूप में तैयार करना था जो ब्रिटिश साम्राज्य की कार्य प्रणाली को समझ सकें और उसका पालन कर सकें।

– 1861 का सिविल सर्विस परीक्षा सुधार (Civil Service Reforms of 1861)

ब्रिटिश शासन ने सिविल सेवा में प्रवेश के लिए शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया। हालांकि, यह शिक्षा नीति केवल उन लोगों के लिए थी जो अंग्रेजी समझते थे और इसने भारतीयों के लिए सिविल सेवाओं में काम करने के अवसरों को सीमित कर दिया।

– 1882 का गोकले सुधार (Gokhale’s Reforms of 1882)

लॉर्ड गोकले के सुधारों ने भारतीयों के लिए प्रारंभिक शिक्षा के अधिकारों में सुधार किया और भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा तय की। हालांकि, इसने पूरी तरह से भारत के गांवों और दूरदराज के इलाकों में शिक्षा का प्रसार नहीं किया।

– 1904 का अंग्रेजी शिक्षा नीति सुधार (English Education Policy Reform of 1904)

इस नीति में वित्तीय संसाधनों के वितरण में परिवर्तन किया गया और शिक्षा के लिए बजट बढ़ाया गया। इस नीति का उद्देश्य अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी शिक्षा को अधिक व्यापक और गहरी बनाने का था।

4. भारतीय शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव (Impact of British Education System)

सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव (Social and Cultural Changes)

ब्रिटिश शिक्षा नीति ने भारतीयों में पश्चिमी संस्कृति और आधुनिकता का प्रभाव डाला। इसके कारण भारतीयों की सोच और दृष्टिकोण में बदलाव आया। भारतीय समाज में सामाजिक सशक्तिकरण और सुधार आंदोलनों का आरंभ हुआ, जैसे सत्याग्रह, ब्राह्म समाज, और आर्य समाज

भारतीय शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता (Level and Quality of Indian Education)

ब्रिटिश शिक्षा नीति ने कृषि और उद्योग में भारतीयों की रुचि को नष्ट किया और उन्हें शासकीय नौकरियों के लिए तैयार किया। हालांकि, इस नीति के कारण एक बुद्धिजीवी वर्ग विकसित हुआ, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बना।

अंग्रेजी भाषा का प्रभाव (Influence of English Language)

ब्रिटिशों ने अंग्रेजी को भारत की शिक्षा प्रणाली का मूल आधार बना दिया, जो आज भी भारतीय शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हालांकि यह भारतीयों को उपनिवेशीकरण के प्रति जागरूक करता था, लेकिन इससे भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रसार भी हुआ।

निष्कर्ष (Conclusion)

ब्रिटिशों की शिक्षा नीति भारत के लिए द्वैतीयक और संकीर्ण थी, जिसका उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य की कुलीनता को बनाए रखना था। हालांकि इस नीति ने कुछ सकारात्मक प्रभाव भी डाले, जैसे कि उच्च शिक्षा का प्रसार और आधुनिक शिक्षा का विकास, लेकिन इसने भारतीय समाज के मूलभूत और पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया। ब्रिटिश शिक्षा नीति ने भारतीय समाज में सामाजिक चेतना, आर्थिक जागरूकता, और राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहित किया, जो अंततः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने।

ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का भारत पर प्रभाव (Impact of British Education System in India)

ब्रिटिश शिक्षा नीति का भारतीय समाज पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा। इसके माध्यम से जहां कुछ सकारात्मक बदलाव हुए, वहीं इसके कुछ नकरात्मक प्रभाव भी थे, जिनका भारतीय समाज और संस्कृति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा।

सकारात्मक प्रभाव (Positive Impact)

  1. पश्चिमी शिक्षा का प्रसार
    ब्रिटिश शिक्षा नीति ने पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नया दृष्टिकोण दिया। इसने भारतीयों को आधुनिक सोच और समाज में बदलाव की दिशा में प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में नई विचारधाराएँ और सोचने की शैली का विकास हुआ।
  2. उच्च शिक्षा की स्थापना
    ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में उच्च शिक्षा के लिए कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जैसे कलकत्ता विश्वविद्यालय (Calcutta University), बंबई विश्वविद्यालय (Bombay University) और मद्रास विश्वविद्यालय (Madras University)। इन विश्वविद्यालयों ने भारतीयों को व्यावसायिक शिक्षा और सिविल सेवाओं के लिए प्रशिक्षित किया।
  3. बुद्धिजीवी वर्ग का उदय
    ब्रिटिश शिक्षा नीति ने बुद्धिजीवियों का एक नया वर्ग तैयार किया, जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन और समाज सुधार आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें दयानंद सरस्वती, राम मोहन राय, और स्वामी विवेकानंद जैसे विचारक शामिल थे, जिन्होंने भारतीय समाज में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
  4. अंग्रेजी भाषा का प्रसार
    ब्रिटिशों ने अंग्रेजी को भारत की शिक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया। इससे अंतर्राष्ट्रीय संचार में आसानी हुई और भारतीयों को वैश्विक स्तर पर विज्ञान, साहित्य और राजनीति के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। आज भी अंग्रेजी भारत की एक प्रमुख भाषा है, जो वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति को मजबूत करती है।

नकरात्मक प्रभाव (Negative Impact)

  1. भारतीय भाषाओं की उपेक्षा
    ब्रिटिश शिक्षा नीति ने भारतीय भाषाओं को तुच्छ समझा और अंग्रेजी को प्राथमिकता दी। इसने भारतीय भाषाओं के विकास को बाधित किया और भारतीय समाज की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर किया। भारतीय साहित्य और संस्कृतियों के अध्ययन को सीमित किया गया।
  2. कृषि और उद्योग में उपेक्षा
    ब्रिटिश शिक्षा नीति ने कृषि और स्थानीय उद्योगों पर ध्यान देने की बजाय भारतीयों को सिविल सेवाओं के लिए तैयार किया। इससे भारतीय समाज में आर्थिक पिछड़ापन बढ़ा और औद्योगिक विकास में अवरोध आया।
  3. सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा
    ब्रिटिश शिक्षा ने भारतीय समाज में सामाजिक भेदभाव को और बढ़ाया, क्योंकि उच्च शिक्षा केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध थी जो अंग्रेजी जानते थे। इससे भारतीय समाज में एक सामाजिक-आर्थिक वर्गीकरण उत्पन्न हुआ, जिसमें केवल कुछ विशेष वर्गों को अवसर प्राप्त थे।
  4. संस्कृति और परंपराओं का ह्रास
    ब्रिटिश शिक्षा नीति ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा और पश्चिमी सभ्यता को श्रेष्ठ माना। इसने भारतीय समाज को अपनी मूल पहचान से दूर किया और पश्चिमी विचारों की ओर झुका दिया।

निष्कर्ष (Conclusion)

ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का भारतीय समाज पर मिश्रित प्रभाव पड़ा। जहां इसने आधुनिकता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया, वहीं इसने भारतीय भाषाओं, संस्कृति, और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान भी पहुँचाया। भारतीयों को अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से वैश्विक दृष्टिकोण प्राप्त हुआ, लेकिन सामाजिक भेदभाव और सांस्कृतिक ह्रास ने समाज में विभाजन और असमानता को जन्म दिया। इसके बावजूद, इस शिक्षा प्रणाली ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को बल प्रदान किया और अंततः स्वतंत्रता प्राप्ति के रास्ते को प्रशस्त किया।

भारत में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली पर PYQs

प्रश्न 1: वेलेस्ली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की क्योंकि (UPSC प्रारंभिक परीक्षा 2020)

a) उन्हें लंदन में निदेशक मंडल द्वारा ऐसा करने के लिए कहा गया था

b) वे भारत में प्राच्य शिक्षा में रुचि को पुनर्जीवित करना चाहते थे

c) वे विलियम कैरी और उनके सहयोगियों को रोजगार प्रदान करना चाहते थे

d) वे भारत में प्रशासनिक उद्देश्य के लिए ब्रिटिश नागरिकों को प्रशिक्षित करना चाहते थे

उत्तर: (d)

प्रश्न 2: भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान शैक्षणिक संस्थानों के संदर्भ में, निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: (UPSC प्रारंभिक परीक्षा 2018)

संस्था                                       संस्थापक

बनारस में संस्कृत कॉलेज        विलियम जोन्स

कलकत्ता मदरसा                     वारेन हेस्टिंग्स

फोर्ट विलियम कॉलेज             आर्थर वेलेस्ली

ऊपर दी गई कौन सी जोड़ी सही है/हैं?

a) 1 और 2

b) केवल 2

c) 1 और 3

d) केवल 3

ANS. b

FAQ

1. ब्रिटिश शासन से पहले भारत में शिक्षा व्यवस्था कैसी थी?

ब्रिटिश शासन से पहले भारत में गुरुकुल, मदरसे, पाठशालाओं और टोल (संस्कृत स्कूल) जैसी परंपरागत शिक्षा प्रणाली थी।

2. ब्रिटिश शासन में भारत में औपचारिक शिक्षा की शुरुआत कब हुई?

ब्रिटिश शासन में औपचारिक शिक्षा की शुरुआत 1813 के चार्टर एक्ट से हुई, जिसमें ईसाई मिशनरियों को शिक्षा के लिए फंड देने की अनुमति दी गई।

3. भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत किस गवर्नर जनरल के कार्यकाल में हुई?

लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-1835) के कार्यकाल में अंग्रेजी शिक्षा की नींव रखी गई।

4. भारत में पहला विश्वविद्यालय कब और कहाँ स्थापित किया गया?

1857 में कोलकाता, बॉम्बे (मुंबई) और मद्रास (चेन्नई) में तीन विश्वविद्यालय स्थापित किए गए।

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