British Policies in India notes
ब्रिटिश प्रशासन और शासन (British Administration and Governance)
ब्रिटिश शासन ने भारतीय उपमहाद्वीप में एक केंद्रीकृत और सख्त प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा करना और भारतीय संसाधनों का शोषण करना था। भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में कई प्रमुख परिवर्तन किए गए थे, जो भारतीय समाज, राजनीति, और अर्थव्यवस्था पर गहरे प्रभाव डालने वाले थे।
1. ब्रिटिश शासन का प्रारंभ और प्रशासनिक ढांचा (Beginning of British Rule and Administrative Structure)
ब्रिटिश शासन का प्रारंभ ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा हुआ था, लेकिन 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने सीधे तौर पर भारत पर शासन करना शुरू किया। 1858 में भारत को ब्रिटिश राज के रूप में आधिकारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना दिया गया।
- गवर्नर जनरल: ब्रिटिश शासन में गवर्नर जनरल का पद सर्वोच्च था। गवर्नर जनरल को ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्त किया जाता था और वह भारत का प्रमुख शासक होता था।
- सेंट्रल सरकार: गवर्नर जनरल के नेतृत्व में केंद्रीय प्रशासन की स्थापना की गई, जिसमें मंत्रिमंडल, प्रशासनिक अधिकारी, और सैन्य बल शामिल थे।
- ब्रिटिश मंत्रिमंडल: ब्रिटिश भारत के मामलों पर चर्चा करने और निर्णय लेने के लिए एक ब्रिटिश मंत्रिमंडल गठित किया गया था, जिसमें ब्रिटिश अधिकारियों और भारतीय प्रतिनिधियों का समावेश था।
2. ब्रिटिश प्रशासन की संरचना (Structure of British Administration)
ब्रिटिश शासन ने भारतीय प्रशासन में कई संरचनात्मक बदलाव किए थे। भारतीय प्रशासन में निम्नलिखित प्रमुख स्तंभ थे:
- गवर्नर जनरल का कार्यालय: गवर्नर जनरल का कार्यालय ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता था। यह दिल्ली (1857 के बाद) में स्थित था और इसके तहत कई विभाग और सहायक अधिकारी काम करते थे।
- प्रोविंसियल प्रशासन: भारत को विभिन्न प्रांतों (Provinces) में विभाजित किया गया था, और प्रत्येक प्रांत का एक प्रांतीय गवर्नर होता था, जिसे राज्यपाल कहा जाता था। प्रत्येक प्रांत में एक प्रशासनिक ढांचा था, जिसमें कलेक्टर और जज शामिल थे, जो सरकारी नीतियों का पालन सुनिश्चित करते थे।
- स्थानीय प्रशासन: भारतीय गांवों और कस्बों में प्रशासनिक कार्य जमींदारों और राजस्व अधिकारियों द्वारा संचालित किया जाता था। इन अधिकारियों के माध्यम से ब्रिटिशों ने भारतीय जनता पर कराधान और कानून लागू किया।
3. ब्रिटिश प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of British Administration)
ब्रिटिश शासन के तहत प्रशासन में कई प्रमुख विशेषताएँ थीं जो भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डालती थीं:
- केंद्रीकरण: ब्रिटिश शासन में सत्ता का केंद्रीकरण किया गया था, जिससे सभी महत्वपूर्ण निर्णय और नीतियाँ गवर्नर जनरल और उसके मंत्रिमंडल द्वारा लिए जाते थे।
- न्यायिक प्रणाली: ब्रिटिशों ने भारतीय न्यायिक प्रणाली को नया रूप दिया। कोर्ट्स और जजों के माध्यम से ब्रिटिश शासन ने भारतीयों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।
- राजस्व प्रणाली: ब्रिटिशों ने राजस्व संग्रहण के लिए कठोर नीतियाँ अपनाई। किसानों से उच्च कर वसूला गया और भारतीय भूमि पर कब्ज़ा करने के लिए जमीन कानूनों में बदलाव किए गए।
- सैनिक शक्ति: ब्रिटिश शासन ने भारतीय सैन्य शक्ति का संगठित रूप अपनाया। ब्रिटिश सेना ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी शक्ति स्थापित की और भारतीय शासकों के खिलाफ युद्धों में सफलता प्राप्त की।
4. शिक्षा और सामाजिक सुधार (Education and Social Reforms)
ब्रिटिशों ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों के लिए कई नीतियाँ बनाई, जिनका उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश संस्कृति और साम्राज्यवादी दृष्टिकोण से अवगत कराना था।
- नई शिक्षा प्रणाली: ब्रिटिश शासन ने अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की और मैकाले की नई शिक्षा नीति (1835) लागू की। इसके तहत, अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया और भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की गई।
- सामाजिक सुधार: ब्रिटिशों ने कुछ सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया, जैसे सती प्रथा की समाप्ति और बाल विवाह के खिलाफ कानून। हालांकि, इन सुधारों का उद्देश्य मुख्य रूप से भारतीय समाज को नियंत्रित करना था।
5. ब्रिटिश शासन के प्रशासनिक दुराचार (Administrative Corruption under British Rule)
ब्रिटिश शासन में भ्रष्टाचार भी आम था। सरकारी अधिकारियों और ब्रिटिश प्रशासनिक कर्मचारियों द्वारा भारतीय जनता से अत्यधिक भ्रष्टाचार और शोषण किया गया।
- राजस्व अधिकारियों का भ्रष्टाचार: सरकारी अधिकारियों द्वारा किसानों से जबरदस्ती वसूली की जाती थी और कभी-कभी उन्हें झूठे आरोपों में फंसाकर संपत्ति से वंचित कर दिया जाता था।
- नौकरशाही में भ्रष्टाचार: ब्रिटिश प्रशासन में अधिकतर पदों पर ब्रिटिश अधिकारियों की नियुक्ति होती थी, जो अपनी सत्तावादी नीतियों के तहत काम करते थे।
6. भारत में भारतीयों की भूमिका (Role of Indians in British Administration)
ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को प्रशासन के निचले स्तरों पर काम करने के लिए नियुक्त किया, लेकिन उच्च प्रशासनिक पदों पर ब्रिटिशों का वर्चस्व था। भारतीयों को नौकरशाही में अधिकतर क्लर्क या सहायक की भूमिका में रखा जाता था।
- भारतीय नागरिक सेवा: ब्रिटिश प्रशासन में भारतीयों के लिए इंडियन सिविल सर्विस के अंतर्गत अवसर थे, लेकिन इसमें प्रवेश के लिए अंग्रेजी में अच्छा ज्ञान और ब्रिटिश परीक्षा प्रणाली की जरूरत थी, जो सामान्य भारतीयों के लिए कठिन थी।
निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रिटिश शासन का प्रशासन भारत में एक केंद्रीकृत, शोषणात्मक और प्रभावी व्यवस्था थी। यह शासन भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर गहरा प्रभाव डालने वाला था। ब्रिटिशों ने अपने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करने के लिए भारतीय शासकों, संसाधनों और जनता का शोषण किया। इसके बावजूद, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में कई सामाजिक और प्रशासनिक बदलाव हुए, जिनका प्रभाव स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय समाज पर पड़ा।
ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ (British Economic Policies)
ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरे प्रभाव डालने वाली थीं। इन नीतियों का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के लाभ के लिए भारतीय संसाधनों का शोषण करना और भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी अधीनता में रखना था।
1. औपनिवेशिक शोषण (Colonial Exploitation):
ब्रिटिश शासन ने भारत को एक कच्चे माल का आपूर्तिकर्ता और बाजार के रूप में बदल दिया। भारत के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे कच्चे माल, खजूर, ऊनी वस्त्र और धान का शोषण किया गया। इन सामग्रियों का उपयोग ब्रिटेन में औद्योगिक उत्पादन के लिए किया जाता था, जिससे भारतीय कारीगरों और किसानों को नुकसान हुआ।
2. राजस्व नीतियाँ (Revenue Policies):
ब्रिटिशों ने अपनी राजस्व वसूली प्रणाली के तहत किसानों से अत्यधिक कर वसूले, जो उनके लिए अत्यधिक बोझ बन गए। जमीन राजस्व (Land Revenue) का निर्धारण अत्यधिक उच्च था, और किसानों को अपनी ज़मीन बचाने के लिए कठोर तरीकों से राजस्व भुगतान करना पड़ता था। इसके कारण कई किसान कर्जदार हो गए और कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें खुद की ज़मीन खोनी पड़ी।
3. उद्योगों का विनाश (Destruction of Industries):
ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय कारीगरों और शिल्पकारों के पारंपरिक उद्योगों को ध्वस्त कर दिया गया। भारतीय हस्तशिल्प और वस्त्र उद्योग ब्रिटिश वस्त्र उद्योग से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाए, जिसके कारण भारत में वस्त्र उद्योग का पतन हुआ। ब्रिटिशों ने भारतीय उद्योगों को नष्ट कर दिया ताकि ब्रिटेन का औद्योगिक उत्पादन बढ़ सके।
4. व्यापार नीतियाँ (Trade Policies):
ब्रिटिशों ने भारतीय व्यापार पर कड़ी नज़र रखी और इसे अपने फायदे के लिए नियंत्रित किया। भारत में स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा देने के बजाय, ब्रिटिशों ने अपनी उपनिवेशिक नीतियों के तहत भारतीय व्यापारियों को ब्रिटिश व्यापारियों के साथ जोड़ दिया। भारतीय बाजारों में ब्रिटिश उत्पादों का वर्चस्व था और भारतीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
5. बुनियादी ढांचा (Infrastructure):
ब्रिटिशों ने भारत में कुछ आवश्यक बुनियादी ढांचा जैसे रेलवे, सड़कें और पत्तन बनाए, लेकिन इनका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश व्यापार को सुविधा प्रदान करना था। रेलवे का निर्माण मुख्य रूप से कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुंचाने के लिए किया गया था, जिससे ब्रिटेन को फायदे का सौदा हुआ।
ब्रिटिश सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियाँ (British Social and Cultural Policies)
ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज और संस्कृति पर भी गहरे प्रभाव डाले। उनकी नीतियों का उद्देश्य भारतीयों को एक अधीन, नियंत्रित और ब्रिटिश साम्राज्य की संस्कृति के अनुसार ढालना था।
1. शिक्षा नीति (Education Policy):
ब्रिटिशों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में कई बदलाव किए। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का प्रचार किया और भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की। मैकाले की शिक्षा नीति (1835) के तहत अंग्रेजी को भारतीयों के लिए एक प्रमुख शिक्षा का माध्यम बनाया गया। इसका उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश विचारधारा और संस्कृति से अवगत कराना था।
- भारतीयों को अंग्रेजी में प्रशिक्षित किया गया, ताकि वे ब्रिटिश नौकरशाही में काम कर सकें, लेकिन भारतीय पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति को अनदेखा किया गया।
- उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटिश विश्वविद्यालयों और कालेजों की स्थापना की गई, जो केवल साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देते थे।
2. भारतीय समाज में सुधार (Social Reforms in Indian Society):
ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज में कुछ सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया, जिनका उद्देश्य समाज में व्याप्त अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियाँ और सती प्रथा जैसी प्रथाओं को समाप्त करना था।
- सती प्रथा को 1829 में लॉर्ड विलियम बैटिकर ने प्रतिबंधित किया।
- बाल विवाह को रोकने के लिए 1929 में हिरालाल दीक्षित विधेयक पास किया गया।
- कुलीन जातिवाद और अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन इन सुधारों का असल उद्देश्य ब्रिटिश शासन को मजबूत करना था, न कि भारतीय समाज का वास्तविक उत्थान।
3. भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact on Indian Culture):
ब्रिटिश शासन ने भारतीय संस्कृति को अत्यधिक प्रभावित किया। उन्होंने भारतीय साहित्य, कला, और परंपराओं को उपग्रह (subordinate) बना दिया और पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा दिया।
- भारतीय कला और शिल्प में ब्रिटिश शैली का प्रभाव बढ़ा, और भारतीय स्थापत्य कला को पश्चिमी शैली से बदल दिया गया।
- भारतीय समाज में ब्रिटिश संस्कृति के प्रसार ने पारंपरिक भारतीय संस्कृति, जैसे संस्कृत साहित्य और हिंदू धर्म को कमजोर किया।
4. धार्मिक नीति (Religious Policy):
ब्रिटिश शासन की धार्मिक नीति का उद्देश्य भारतीय समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करना था। उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच मतभेदों का लाभ उठाते हुए ब्रिटिश साम्राज्य की स्थिरता बनाए रखी।
- उन्होंने हिंदू–मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा दिया और मुस्लिम समुदाय को क़ौमी प्रतिनिधित्व देने के लिए मुस्लिम लीग को मजबूत किया।
- धार्मिक सुधारों का उद्देश्य धार्मिक आस्थाओं और प्रथाओं में ब्रिटिश विचारधारा का समावेश करना था।
5. नस्लीय भेदभाव (Racial Discrimination):
ब्रिटिशों ने भारतीयों को निचला दर्जा दिया और नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा दिया। उन्होंने भारतीयों को ब्रिटिश नागरिकों से अलग रखा और उन्हें नीच वर्ग माना।
- भारतीयों के लिए अलग विधान सभा और आवासीय क्षेत्रों की व्यवस्था की गई, जहां ब्रिटिश और भारतीयों को एक साथ रहने की अनुमति नहीं थी।
निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियाँ भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरे और दूरगामी प्रभाव डालने वाली थीं। इन नीतियों का मुख्य उद्देश्य भारत के संसाधनों का शोषण करना और ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की सेवा करना था। वही, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियाँ भारतीय समाज को ब्रिटिश शैली में ढालने के प्रयास थीं, जो भारतीयों के लिए कई नई चुनौतियाँ और संघर्ष लेकर आईं। इसके बावजूद, इन नीतियों ने भारतीय समाज में जागरूकता और स्वतंत्रता संग्राम की नींव भी रखी, जिसने बाद में स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।
भारत में ब्रिटिश नीतियाँ UPSC PYQs
प्रश्न 1: जाँच करें कि औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगर उद्योग के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे पंगु बना दिया। (UPSC मुख्य परीक्षा 2017)
प्रश्न 2: अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक भारत में अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों के विभिन्न पहलुओं की आलोचनात्मक जाँच करें। (UPSC मुख्य परीक्षा 2014)
प्रश्न 3: आर्थिक रूप से 19वीं शताब्दी में भारत में ब्रिटिश शासन के परिणामों में से एक था (UPSC प्रारंभिक परीक्षा 2018)
a भारतीय हस्तशिल्प के निर्यात में वृद्धि
b भारतीय स्वामित्व वाली फैक्ट्रियों की संख्या में वृद्धि
c भारतीय कृषि का व्यावसायीकरण
d शहरी आबादी में तेजी से वृद्धि
उत्तर: (C)