British rule in india in hindi
ब्रिटिश राज का पृष्ठभूमि (Background of British Raj in India)
ब्रिटिश राज, जो भारत में 1858 से 1947 तक था, एक ऐतिहासिक काल था जब ब्रिटेन ने भारतीय उपमहाद्वीप को औपनिवेशिक रूप से शासित किया। ब्रिटिश राज के प्रारंभ से पहले, भारत विभिन्न छोटे और बड़े राज्यों का मिश्रण था। ब्रिटिशों ने भारत में व्यापार और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए कई युद्धों और रणनीतिक समझौतों का सहारा लिया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में व्यापार का प्रवेश 1600 में हुआ, लेकिन 18वीं शताब्दी के अंत तक कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक सत्ता भी हासिल करना शुरू कर दिया। 1757 में प्लासी की लड़ाई में सिराज-उद-दौला की हार और कंपनी की विजय ने ब्रिटिशों को बंगाल में मजबूत पकड़ दी, जो बाद में पूरे भारत में फैल गई। इसके बाद ब्रिटिशों ने मीर कासिम, मराठों, सिखों और अन्य शक्तियों के साथ कई युद्ध किए, जिससे उनकी शक्ति बढ़ी और वे धीरे-धीरे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर हावी हो गए।
ब्रिटिश राज का औपचारिक रूप से 1858 में भारत में स्थापित हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने मुट्ठी भर ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों से भारत का नियंत्रण लेकर उसे शासन किया। यह घटना 1857 के भारतीय विद्रोह (जिसे भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) के बाद हुई, जो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक चेतावनी थी। इसके परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और प्रशासनिक बदलाव हुआ।
दक्षिण भारत में ब्रिटिशों की प्रारंभिक सफलता (Early Success of British Rulers in the South)
ब्रिटिशों ने दक्षिण भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए और कई शक्तियों से युद्ध किए। दक्षिण भारत में ब्रिटिशों की प्रारंभिक सफलता के कुछ महत्वपूर्ण पहलू इस प्रकार थे:
1. निजाम के खिलाफ संघर्ष:
ब्रिटिशों की दक्षिण भारत में पहली प्रमुख सफलता निजाम-ए-दकन के खिलाफ थी। 18वीं शताब्दी में निजाम की सत्ता थी, और ब्रिटिशों ने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए निजाम से कई युद्ध लड़े। सातवा युद्ध (1767-1769) में ब्रिटिशों ने निजाम के साथ गठबंधन किया और एक नए राजनीतिक समीकरण की स्थापना की।
2. मराठों के खिलाफ संघर्ष:
ब्रिटिशों ने मराठों के खिलाफ भी संघर्ष किया। पहला और दूसरा एंग्लो-मैरेथा युद्ध (1775-1782 और 1803-1805) में ब्रिटिशों ने मराठा साम्राज्य को पराजित किया और अपने अधिकारों का विस्तार किया। इन संघर्षों के दौरान, ब्रिटिशों ने अपनी सैन्य ताकत और रणनीतिक समझदारी का भरपूर उपयोग किया।
3. हैदराबाद राज्य में ब्रिटिश प्रवेश:
ब्रिटिशों ने हैदराबाद के निजामों से समझौते किए और 18वीं शताब्दी के अंत तक हैदराबाद पर ब्रिटिश प्रभाव बढ़ा लिया। 1800 में, ब्रिटिशों ने निजाम को अपनी सुरक्षा के बदले भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से में नियंत्रण प्रदान किया।
4. अंग्रेजों की सशस्त्र ताकत और राजनैतिक समझौतों का लाभ:
ब्रिटिशों ने दक्षिण भारत में टिपू सुलतान और मैसूर साम्राज्य जैसे शक्तिशाली राज्य से भी युद्ध किए। तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1790-1792) और चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799) में ब्रिटिशों ने टिपू सुलतान को हराया और मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत कर लिया। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिशों ने दक्षिण भारत में अपनी शक्ति को मजबूत किया और मैसूर, हैदराबाद, और मराठों के क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
5. अंग्रेजों का विस्तार कर्नाटका और तमिलनाडु में:
ब्रिटिशों ने कर्नाटका, तमिलनाडु और अन्य क्षेत्रों में स्थानीय राजाओं के साथ राजनीतिक समझौतों और सैन्य संघर्षों के माध्यम से अपने अधिकार स्थापित किए। इन क्षेत्रों में प्रमुख युद्धों में सांगरय और क्लूज की लड़ाइयाँ शामिल थीं। इन संघर्षों के माध्यम से, ब्रिटिशों ने इन क्षेत्रों में अपने वर्चस्व को स्वीकार कराया।
निष्कर्ष:
दक्षिण भारत में ब्रिटिशों की प्रारंभिक सफलता उनके सैन्य कौशल, रणनीतिक समझौतों, और कई स्थानीय शासकों से गठबंधनों के कारण संभव हुई। उन्होंने निजाम, मराठा, मैसूर और अन्य शक्तियों के खिलाफ कई संघर्ष किए और धीरे-धीरे दक्षिण भारत में अपनी सत्ता स्थापित की। इन शुरुआती संघर्षों ने ब्रिटिश राज के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में एक मजबूत बुनियाद तैयार की।
बंगाल का कब्ज़ा (Occupation of Bengal)
ब्रिटिशों ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी सत्ता स्थापित करने की शुरुआत बंगाल से की। बंगाल का कब्ज़ा ब्रिटिश साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह भारत का सबसे समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र था।
1. प्लासी की लड़ाई (1757):
ब्रिटिशों का बंगाल में प्रभाव बढ़ाने की शुरुआत प्लासी की लड़ाई (1757) से हुई। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला को हराया और उसकी सत्ता को समाप्त किया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल पर ब्रिटिशों का नियंत्रण स्थापित हो गया। इस विजय ने ब्रिटिशों को बंगाल की समृद्धि और संसाधनों तक पहुँच प्रदान की और साथ ही भारत के अन्य हिस्सों पर अपने प्रभाव को बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया।
2. बंगाल की समृद्धि और व्यापार:
बंगाल भारत का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था और इसके बंदरगाहों, जैसे कोलकाता (तब कलकत्ता) का उपयोग ब्रिटिशों ने व्यापार के लिए किया। इसके बाद ब्रिटिशों ने बंगाल को अपने साम्राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया और व्यापार, राजस्व वसूलने, और सामरिक दृष्टि से इसे अहम माना। बंगाल में कृषि और औद्योगिकीकरण के विकास के साथ ब्रिटिशों ने अपनी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को सुदृढ़ किया।
3. ब्रिटिश शासन का विस्तार:
बंगाल में अपनी सफलता के बाद ब्रिटिशों ने अन्य क्षेत्रों में भी अपनी सत्ता फैलानी शुरू की। उन्होंने धीरे-धीरे बंगाल, उड़ीसा, बिहार, और असम पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। ब्रिटिशों ने यहाँ के स्थानीय राजाओं और शासकों से समझौते किए, गठबंधन किए और कई संघर्षों में भाग लिया, ताकि भारत के अन्य हिस्सों में अपनी उपस्थिति बढ़ा सकें।
ब्रिटिश साम्राज्य के तहत क्षेत्र का विस्तार (Expansion of Territories under British Rule in India)
ब्रिटिशों ने अपनी सत्ता को भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों तक फैलाया। इसके लिए उन्होंने सैन्य संघर्ष, राजनीतिक समझौते, और साम्राज्यवादी नीति का सहारा लिया। ब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारतीय क्षेत्रों का विस्तार निम्नलिखित प्रमुख घटनाओं और संघर्षों के माध्यम से हुआ:
1. सिख साम्राज्य और पंजाब का कब्ज़ा:
ब्रिटिशों ने सिख साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए अंग्रेज-सिख युद्ध (1845-46) लड़ा और अंततः 1849 में पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। इस संघर्ष में सिखों की शक्ति कमजोर हो गई, और ब्रिटिशों ने पंजाब, लाहौर और अन्य क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।
2. मराठा साम्राज्य का पतन:
ब्रिटिशों ने मराठों के साथ कई युद्ध लड़े, विशेष रूप से एंग्लो-मैरेठा युद्ध (1775-1818)। इसके परिणामस्वरूप मराठा साम्राज्य का विघटन हुआ और ब्रिटिशों ने मराठा राज्यों को अपने अधीन कर लिया। यह संघर्ष ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण साबित हुआ और भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित किया।
3. मैसूर युद्ध:
ब्रिटिशों ने टीपू सुलतान के नेतृत्व वाले मैसूर राज्य के खिलाफ युद्ध लड़े। तीसरा और चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1790-1799) में ब्रिटिशों ने टीपू सुलतान को हराया और मैसूर पर अपना अधिकार स्थापित किया। इसके बाद ब्रिटिशों ने मैसूर को पूरी तरह से अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया।
4. बिहार और उड़ीसा पर कब्ज़ा:
बंगाल में अपनी शक्ति स्थापित करने के बाद ब्रिटिशों ने बिहार और उड़ीसा में भी अपना प्रभुत्व बढ़ाया। उन्होंने स्थानीय शासकों को हराया और इन क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया।
5. दक्षिण भारत का कब्ज़ा:
ब्रिटिशों ने दक्षिण भारत में भी निजाम-ए-दकन और टीपू सुलतान जैसी शक्तियों के खिलाफ युद्ध लड़ा। इसके बाद उन्होंने निजाम और अन्य क्षेत्रीय शासकों के साथ समझौते किए और दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में अपना शासन स्थापित किया।
6. बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश का विस्तार:
ब्रिटिशों ने बंगाल के साथ-साथ बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा के अधिकांश हिस्सों में अपना प्रभाव स्थापित किया। ये क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के मुख्य प्रशासनिक केंद्र बन गए।
7. भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश प्रभुत्व:
ब्रिटिशों ने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों को अपने शासन के अधीन किया। इसमें उत्तर भारत, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत, और पश्चिमी भारत के महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल थे।
निष्कर्ष:
ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए कई युद्धों और संघर्षों का सहारा लिया। बंगाल पर कब्ज़ा ब्रिटिशों के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह उनके साम्राज्य के विस्तार और भारतीय उपमहाद्वीप पर लंबे समय तक शासन करने की नींव बनी। इसके बाद ब्रिटिशों ने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों पर भी अपनी सत्ता कायम की, और धीरे-धीरे पूरे भारत में अपना नियंत्रण स्थापित किया।
ब्रिटिश शासन के तहत प्रशासन का नियंत्रण (Control of Administration under British Rule)
ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपना प्रशासन स्थापित करने के लिए एक मजबूत और केंद्रीकृत व्यवस्था बनाई। भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन का प्रशासन मुख्यतः ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश राज द्वारा नियंत्रित था।
1. ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन (East India Company Administration):
- ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में शासन करना शुरू किया। इसके बाद, कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया।
- कंपनी ने ब्रिटिश व्यापारिक हितों को प्राथमिकता दी और व्यापारिक गतिविधियों के साथ-साथ सैन्य अभियान भी चलाए।
- इसके प्रशासन में गवर्नर जनरल और ब्रिटिश अधिकारियों की प्रमुख भूमिका थी, जो विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय रजवाड़ों से समझौते करते हुए अपनी सत्ता मजबूत करते थे।
- कंपनी का प्रशासन भारतीय जनता के लिए अत्यधिक कठोर था, और इसने मुख्यतः ब्रिटिशों के लाभ के लिए नीतियाँ बनाई।
2. ब्रिटिश राज का प्रशासन (British Raj Administration):
- 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया और सीधे ब्रिटिश राज की स्थापना की।
- ब्रिटिश राज के तहत भारत का प्रशासन पूरी तरह से ब्रिटिश मंत्रियों और गवर्नर जनरल के नियंत्रण में था।
- ब्रिटिश प्रशासन ने भारतीय भूमि, संपत्ति और संसाधनों का शोषण किया और भारतीय समाज की पारंपरिक व्यवस्था को नजरअंदाज किया।
- ब्रिटिशों ने भारत में एक केंद्रीकृत प्रशासन प्रणाली को अपनाया, जिसमें कलेक्टर, जज, और सैन्य अधिकारी सभी महत्वपूर्ण पदों पर होते थे।
1857 से पहले ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध (Resistance to British Rule before 1857)
ब्रिटिशों के खिलाफ भारत में प्रतिरोध की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी। 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला प्रमुख संघर्ष था, लेकिन इससे पहले भी कई विद्रोह और संघर्ष हुए थे।
1. बंगाल का प्रतिरोध (Resistance in Bengal):
- प्लासी की लड़ाई (1757) के बाद बंगाल में ब्रिटिशों के खिलाफ विरोध बढ़ने लगा। सिराज–उद–दौला और बाद में उनके समर्थकों ने ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष किया।
- बंगाल में जागीरदारों और किसानों ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई बार विद्रोह किया, विशेष रूप से राजस्व वसूली की नीति के खिलाफ।
2. मराठों का प्रतिरोध (Resistance by Marathas):
- मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों के खिलाफ युद्धों की एक श्रृंखला शुरू की, जिन्हें एंग्लो–मैरेठा युद्ध (1775-1818) कहा जाता है। मराठा साम्राज्य का उद्देश्य ब्रिटिशों को भारत से बाहर निकालना था, लेकिन अंत में वे हार गए।
3. सिखों का प्रतिरोध (Resistance by Sikhs):
- सिखों के खिलाफ संघर्ष में ब्रिटिशों ने सिख साम्राज्य को हराया और पंजाब पर कब्जा किया। सिखों ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कई युद्ध किए, जिनमें सबसे प्रमुख एंग्लो–सिख युद्ध (1845-46) था।
4. आदिवासी प्रतिरोध (Tribal Resistance):
- आदिवासी क्षेत्रों में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुए। उदाहरण के तौर पर, कोल विद्रोह (1831-32) और मंडला विद्रोह (1832) जैसे संघर्षों ने ब्रिटिशों के खिलाफ आदिवासी समुदायों की असहमति को दर्शाया।
ब्रिटिश सफलता के कारण (Causes of British Success in India)
ब्रिटिशों की सफलता के कई कारण थे, जिनकी वजह से उन्होंने भारत में अपनी शक्ति स्थापित की और उसे लंबी अवधि तक बनाए रखा।
1. ब्रिटिश सैन्य शक्ति (British Military Power):
- ब्रिटिशों ने भारतीय युद्धों में आधुनिक सैन्य तकनीक का प्रयोग किया, जो भारतीय शासकों और सेनाओं से कहीं अधिक मजबूत थी।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास एक अच्छी प्रशिक्षित और सुसज्जित सेना थी, जो भारतीय सशस्त्र सेनाओं से कहीं अधिक सक्षम थी।
2. भारतीय शासकों में आपसी मतभेद (Division among Indian Rulers):
- भारतीय शासकों के बीच आपसी मतभेद और राजनीतिक असहमति ने ब्रिटिशों को सफलता दिलाई। अधिकांश भारतीय रजवाड़ों और राज्यों के बीच एकजुटता नहीं थी, और यह ब्रिटिशों के लिए एक बड़ा लाभ था।
- ब्रिटिशों ने राजनीतिक जोड़–तोड़ और संघर्षों का फायदा उठाया और विभिन्न शासकों से समझौते किए, जिनसे उन्हें स्थानीय स्तर पर सहयोग मिला।
3. आर्थिक और व्यापारिक लाभ (Economic and Trade Advantages):
- ब्रिटिशों ने भारत को अपने औपनिवेशिक व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बना लिया। उन्होंने भारतीय संसाधनों का शोषण किया और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया।
- वाणिज्यिक नेटवर्क, बंदरगाहों और उद्योगों के माध्यम से ब्रिटिशों ने अपनी शक्ति को स्थापित किया और भारतीय बाजारों पर अपना नियंत्रण रखा।
4. ब्रिटिश प्रशासनिक प्रणाली (British Administrative System):
- ब्रिटिशों ने एक केंद्रीकृत और प्रभावी प्रशासन स्थापित किया। इसमें रजिस्ट्रेशन, कानूनी प्रणाली और सशस्त्र बल का अच्छे से उपयोग किया गया।
- नौकरशाही में ब्रिटिश अधिकारियों की नियुक्ति से शासन की निरंतरता बनी रही।
5. भारतीय समाज और संस्कृति की समझ (Understanding of Indian Society and Culture):
- ब्रिटिशों ने भारतीय समाज और संस्कृति का विश्लेषण किया और भारतीयों के आपसी संघर्ष का लाभ उठाया। उन्होंने भारतीयों के बीच जातिवाद और धार्मिक विभाजन का फायदा उठाया, जिससे समाज में एकता का अभाव था।
निष्कर्ष (Conclusion):
ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपने शासन को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति, राजनीतिक चालाकी, और भारतीय शासकों के बीच विभाजन का फायदा उठाया। भारतीय समाज और संस्कृति का गहन अध्ययन करके ब्रिटिशों ने अपने प्रभुत्व को मजबूत किया, जबकि भारतीयों ने संघर्षों और प्रतिरोधों के बावजूद अपनी स्वतंत्रता की राह में कई कठिनाइयों का सामना किया।
प्रश्न 1: ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति के उन प्रमुख विचारों को रेखांकित करें जिनके कारण पंजाब पर कब्ज़ा किया गया। (UPSC Mains 2017)
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