Buddhist Councils in hindi

Table of Contents

Buddhist Councils, Differences between Jainism and Buddhism

प्रथम बौद्ध संघ (483 ईसा पूर्व)

स्थान:

  • राजगृह (वर्तमान राजगीर, बिहार) के सप्तपर्णी गुफा में।

अध्यक्षता:

  • महाकश्यप (महाकस्सप)।

उद्देश्य:

  • गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके उपदेशों और शिक्षाओं का संकलन।
  • बौद्ध संघ में अनुशासन और नियमों को एक रूप में स्थापित करना।

मुख्य घटनाएं:

  1. धम्म (धर्म) का संकलन:
    • बुद्ध के उपदेशों को “सुत्त पिटक” (सूत्र पिटक) के रूप में संरक्षित किया गया।
  2. विनय का संकलन:
    • संघ के अनुशासन और नियमों को “विनय पिटक” के रूप में संकलित किया गया।

परिणाम:

  • इस संघ ने बौद्ध धर्म के मौलिक सिद्धांतों और अनुशासन को सुरक्षित रखा।
  • बौद्ध धर्म को संगठित रूप में संरक्षित करने की दिशा में यह पहला प्रयास था।
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द्वितीय बौद्ध संघ (383 ईसा पूर्व)

स्थान:

  • वैशाली (वर्तमान बिहार)।

अध्यक्षता:

  • सभापति: सबकामी (संबूतर)।

उद्देश्य:

  • बौद्ध संघ में बढ़ते विवादों और नियमों के उल्लंघन को सुलझाना।
  • संघ के सदस्यों के लिए कड़े अनुशासन को फिर से लागू करना।

मुख्य विवाद:

  • बौद्ध भिक्षुओं के एक समूह ने दस नियमों (दस अनुशासनों) को लेकर ढील की मांग की थी।
  • यह विवाद “विनय” (संघ के अनुशासन) के पालन से संबंधित था।

दस विवादित नियम:

  • दोपहर के बाद भोजन करना।
  • शराब का सेवन करना।
  • सोने-चांदी (धन) को स्वीकार करना।
  • इन जैसे अन्य नियमों में ढील की मांग की गई थी।

परिणाम:

  • इन नियमों को लेकर सहमति नहीं बन सकी।
  • बौद्ध संघ में दो प्रमुख समूह बन गए:
    1. स्थविरवाद (थेरवाद): पारंपरिक विचारों का समर्थन।
    2. महासंघिक: उदार दृष्टिकोण अपनाने वाले।

महत्व:

  • द्वितीय बौद्ध संघ ने बौद्ध धर्म के भीतर विभाजन की शुरुआत की।
  • इससे आगे चलकर थेरवाद और महायान जैसे दो प्रमुख शाखाओं का विकास हुआ।

तृतीय बौद्ध संगीति (247 ईसा पूर्व)

स्थान:

  • पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार)।

अध्यक्षता:

  • मोग्गलिपुत्त तिस्स।

समय:

  • सम्राट अशोक के शासनकाल में।

उद्देश्य:

  1. बौद्ध संघ में बढ़ते मतभेदों और अनुशासनहीनता को समाप्त करना।
  2. बौद्ध धर्म की शुद्धता और एकरूपता को बनाए रखना।
  3. संघ से भ्रामक विचारों और विधर्मियों को निकालना।

मुख्य घटनाएं:

  1. आभिधम्म पिटक का संकलन:
    • इस संगीति में बौद्ध ग्रंथ “आभिधम्म पिटक” का संकलन किया गया।
  2. धर्म प्रचार:
    • सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्मदूतों को भारत और विदेशों (श्रीलंका, मध्य एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया) में भेजा।
    • अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया।

महत्व:

  • इस संगीति ने बौद्ध धर्म को एक वैश्विक धर्म बनाने की नींव रखी।
  • बौद्ध संघ को शुद्ध और संगठित किया गया।

चतुर्थ बौद्ध संगीति (72 ईस्वी)

स्थान:

  • कुंडलवन, कश्मीर।

अध्यक्षता:

  • महाथेर वसुमित्र।
  • उपाध्यक्ष: अश्वघोष।

समय:

  • सम्राट कनिष्क के शासनकाल में।

उद्देश्य:

  1. बौद्ध धर्म के भीतर महायान और हीनयान के विचारों को स्पष्ट करना।
  2. बौद्ध धर्म के ग्रंथों का संकलन और व्याख्या करना।

मुख्य घटनाएं:

  1. महायान और हीनयान का विभाजन:
    • इस संगीति में बौद्ध धर्म दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित हुआ:
      • महायान: उदार और व्यापक दृष्टिकोण।
      • हीनयान (थेरवाद): पारंपरिक और रूढ़िवादी।
  2. ग्रंथों का संकलन:
    • त्रिपिटक का संस्कृत में अनुवाद और विस्तृत व्याख्या की गई।
    • महायान ग्रंथों का संकलन किया गया।

महत्व:

  • इस संगीति ने महायान शाखा के उदय को सुनिश्चित किया।
  • बौद्ध धर्म के दर्शन और विचारधारा में विविधता आई।

अन्य प्रमुख बौद्ध संघ (Other Buddhist Councils)

1. पांचवीं बौद्ध संगीति (1871 ईस्वी):

  • स्थान: मांडले, बर्मा (म्यांमार)।
  • अध्यक्षता: मिंडोन मिंट।
  • उद्देश्य: बौद्ध ग्रंथों की पुनः समीक्षा और संरक्षण।
  • महत्व: त्रिपिटक की सभी शिक्षाओं को संगठित रूप से संग्रहीत किया गया।

2. छठी बौद्ध संगीति (1954 ईस्वी):

  • स्थान: रंगून (यांगून), बर्मा।
  • उद्देश्य: बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का विश्व स्तर पर प्रचार।
  • महत्व: बौद्ध धर्म को एक वैश्विक धर्म के रूप में प्रस्तुत किया गया।

निष्कर्ष

बौद्ध संगीतियां बौद्ध धर्म के संरक्षण, संगठन और प्रचार में महत्वपूर्ण रही हैं। इन संगीतियों के माध्यम से न केवल बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को सुरक्षित रखा गया, बल्कि इसे विभिन्न संस्कृतियों और भौगोलिक क्षेत्रों में फैलाने का कार्य भी हुआ। इन संघों ने बौद्ध धर्म को एक जीवंत और सार्वभौमिक धर्म के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।

जैन धर्म और बौद्ध धर्म के बीच अंतर (Differences between Jainism and Buddhism)

जैन धर्म और बौद्ध धर्म, दोनों भारत में प्राचीन धार्मिक और दार्शनिक परंपराएं हैं, जो समान काल में विकसित हुईं। हालांकि, इन दोनों के सिद्धांत, उद्देश्य और दृष्टिकोण में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।

1. संस्थापक (Founder)

  • जैन धर्म:
    • संस्थापक तीर्थंकर महावीर (24वें तीर्थंकर)।
    • जैन धर्म का उद्भव ऋषभदेव से जुड़ा है, जो पहले तीर्थंकर थे।
  • बौद्ध धर्म:
    • संस्थापक गौतम बुद्ध।
    • बुद्ध को “शाक्यमुनि” कहा जाता है।

2. मुख्य लक्ष्य (Ultimate Goal)

  • जैन धर्म:
    • आत्मा की शुद्धि और मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति।
    • आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करना।
  • बौद्ध धर्म:
    • निर्वाण की प्राप्ति, जो तृष्णा और दुःख का अंत है।
    • आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करता है (अनात्मवाद)।

3. ईश्वर की अवधारणा (Concept of God)

  • जैन धर्म:
    • जैन धर्म में ईश्वर की कोई अवधारणा नहीं है।
    • जैन धर्म में तीर्थंकरों को आदर्श रूप में पूजा जाता है, लेकिन वे ईश्वर नहीं हैं।
  • बौद्ध धर्म:
    • बौद्ध धर्म भी ईश्वर की अवधारणा को अस्वीकार करता है।
    • गौतम बुद्ध को एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में माना जाता है, न कि ईश्वर के रूप में।

4. आत्मा (Soul)

  • जैन धर्म:
    • आत्मा का अस्तित्व स्वीकार किया गया है।
    • हर जीव में आत्मा होती है और आत्मा अमर है।
  • बौद्ध धर्म:
    • आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करता है (अनात्मवाद)।
    • व्यक्ति केवल स्कंधों (शरीर, भावनाएं, चेतना आदि) का समूह है।

5. अहिंसा (Non-Violence)

  • जैन धर्म:
    • अहिंसा का कठोर पालन किया जाता है।
    • किसी भी प्रकार के जीव-हत्या को पाप माना जाता है।
  • बौद्ध धर्म:
    • अहिंसा को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन इसका पालन जैन धर्म की तुलना में कम कठोर है।
    • आवश्यकता पड़ने पर अहिंसा का पालन लचीला हो सकता है।

6. सिद्धांत (Philosophy)

  • जैन धर्म:
    • स्यादवाद और अनेकांतवाद पर आधारित है।
    • सत्य को बहुपक्षीय माना जाता है।
  • बौद्ध धर्म:
    • चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है।
    • सत्य का स्वरूप वस्तुनिष्ठ है।

7. कर्म और पुनर्जन्म (Karma and Rebirth)

  • जैन धर्म:
    • कर्म को सूक्ष्म भौतिक कण माना गया है, जो आत्मा से जुड़ते हैं।
    • आत्मा कर्मों से बंधी रहती है और इन्हें समाप्त कर मोक्ष प्राप्त करती है।
  • बौद्ध धर्म:
    • कर्म को मानसिक और नैतिक क्रियाओं का परिणाम माना गया है।
    • पुनर्जन्म के चक्र को प्रतित्यसमुत्पाद (निर्भरता का सिद्धांत) से समझाया गया है।

8. ध्यान और तपस्या (Meditation and Austerity)

  • जैन धर्म:
    • कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य पर विशेष जोर दिया गया है।
    • तपस्या को आत्मा की शुद्धि का साधन माना जाता है।
  • बौद्ध धर्म:
    • ध्यान और मानसिक अनुशासन पर जोर दिया गया है।
    • मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए कठोर तपस्या और भोग से बचने की सलाह दी गई है।

9. अनुयायियों का जीवन (Lifestyle of Followers)

  • जैन धर्म:
    • जैन साधु-साध्वियों के लिए कठोर नियम और संयम।
    • श्वेतांबर और दिगंबर दो मुख्य शाखाएं।
  • बौद्ध धर्म:
    • भिक्षुओं और गृहस्थों दोनों के लिए सरल जीवन का पालन।
    • थेरवाद, महायान और वज्रयान तीन मुख्य शाखाएं।

10. धार्मिक ग्रंथ (Religious Texts)

  • जैन धर्म:
    • 12 अंग (आगम ग्रंथ)।
    • जैन धर्म के ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए।
  • बौद्ध धर्म:
    • त्रिपिटक (सुत्त पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक)।
    • बौद्ध धर्म के ग्रंथ पाली और संस्कृत में लिखे गए।

निष्कर्ष

जैन धर्म और बौद्ध धर्म में कुछ समानताएं हैं, जैसे अहिंसा, सांसारिक दुःखों का निवारण और तपस्या पर जोर, लेकिन इनके दृष्टिकोण और सिद्धांतों में मौलिक अंतर हैं। जैन धर्म आत्मा की शुद्धि और मोक्ष पर केंद्रित है, जबकि बौद्ध धर्म अज्ञान और तृष्णा के अंत के माध्यम से निर्वाण प्राप्त करने पर केंद्रित है। दोनों धर्म अपने समय के समाज में सुधार लाने और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार करने में सफल रहे।

FAQ

1. बौद्ध संगीति क्या है?

बौद्ध संगीति वे सभाएँ हैं जहाँ भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को संकलित, व्याख्या और संरक्षित किया गया। इनका आयोजन बुद्ध के निर्वाण के बाद उनके अनुयायियों द्वारा किया गया।

2. बौद्ध संगीति का उद्देश्य क्या था?

बौद्ध संगीति का उद्देश्य बुद्ध की शिक्षाओं को संरक्षित करना, अनुयायियों के बीच मतभेदों को हल करना और धर्म के प्रसार के लिए सिद्धांतों को व्यवस्थित करना था।

3. चतुर्थ बौद्ध संगीति क्यों महत्वपूर्ण है?

चतुर्थ संगीति में बौद्ध धर्म को दो मुख्य शाखाओं में विभाजित किया गया: महायान (Great Vehicle) हीनयान (Theravada - Small Vehicle)

4. जैन धर्म और बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन हैं?

जैन धर्म: इसके 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर (599-527 ईसा पूर्व) इसके प्रमुख प्रचारक माने जाते हैं। बौद्ध धर्म: गौतम बुद्ध (563-483 ईसा पूर्व) इसके संस्थापक हैं।

5. इन दोनों धर्मों का मुख्य उद्देश्य क्या है?

जैन धर्म: आत्मा की शुद्धि और मोक्ष (पुनर्जन्म से मुक्ति)। बौद्ध धर्म: दुखों से मुक्ति और निर्वाण।

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