Civil disobedience movement in hindi

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Civil disobedience movement in hindi

नागरिक अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि (Background of Civil Disobedience Movement)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा नेतृत्व किए गए एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों द्वारा अहिंसक प्रतिरोध का प्रतीक बना। यह आंदोलन 1930 में शुरू हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य भारतीयों द्वारा ब्रिटिश कानूनों और शासन के खिलाफ सीधा विरोध करना था, विशेष रूप से उन क़ानूनों के खिलाफ जो भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन करते थे।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन के कारण:

  1. नमक कानून का विरोध
    ब्रिटिश सरकार ने भारत में नमक उत्पादन और व्यापार पर कड़ी कर लगाई थी, जिससे भारतीयों को नमक बनाने और उसे बेचना अवैध करार दिया गया था। गांधी जी ने इस कानून के खिलाफ आंदोलन करने का निर्णय लिया।
  2. स्वतंत्रता संग्राम की तेज़ी
    1920 और 1930 के दशक में कांग्रेस का नेतृत्व गांधी जी के हाथों में था, जिन्होंने देशवासियों को और अधिक संगठित करके ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
  3. आर्थिक शोषण और अन्याय
    ब्रिटिश शासन ने भारतीयों का शोषण किया था, जिसमें भूमि करों और अन्य आर्थिक नीतियों का अधिक बोझ भारतीयों पर डाला गया था। इन समस्याओं से उबरने के लिए गांधी जी ने एक व्यापक आंदोलन की योजना बनाई।
  4. स्वराज की मांग
    गांधी जी ने स्वराज की मांग की थी, यानी भारतीयों को अपनी राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए गांधी जी ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।
Civil disobedience movement 1930 notes
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गांधी जी की ग्यारह माँगें (Gandhi’s Eleven Demands)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन के शुरुआत से पहले गांधी जी ने ब्रिटिश शासन से ग्यारह प्रमुख माँगें की थीं, जो भारतीय समाज और जनता के लिए महत्वपूर्ण थीं। ये माँगें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सीधा विरोध और भारतीयों के अधिकारों की बहाली की दिशा में उठाए गए कदम थे।

1. नमक कानून का निरसन (Abolition of Salt Tax):

  • गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर को समाप्त करने की माँग की। नमक एक आवश्यक वस्तु था और इस पर कर लगाना भारतीयों के साथ अन्याय था।

2. शराब और मांसाहारी खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध (Prohibition on Alcohol and Meat Consumption):

  • गांधी जी ने शराब और मांसाहार की बिक्री और खपत पर कड़ा प्रतिबंध लगाने की माँग की। उन्होंने इसे भारतीय समाज की नैतिकता और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना था।

3. भूमि करों में कमी (Reduction in Land Revenue):

  • उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारतीय किसानों पर लगाए गए भारी भूमि करों में कमी की माँग की। भूमि करों ने भारतीय किसानों को आर्थिक रूप से दबा रखा था।

4. न्यायालयों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व (Indian Representation in the Judiciary):

  • गांधी जी ने ब्रिटिश न्यायालयों में भारतीयों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की माँग की। उस समय न्यायपालिका पर पूरी तरह से ब्रिटिश अधिकारियों का नियंत्रण था।

5. भारतीय उद्योगों के लिए समर्थन (Support for Indian Industries):

  • उन्होंने भारतीय उद्योगों के लिए अधिक आर्थिक सहायता और संरक्षण की माँग की। ब्रिटिश शासन ने भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुँचाया था, और भारतीय उत्पादों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने की आवश्यकता थी।

6. भारतीयों की नौकरियों में नियुक्ति (Employment of Indians in Government Jobs):

  • गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर देने की माँग की, ताकि भारतीयों को अपने देश के प्रशासन में शामिल किया जा सके।

7. भारतीय शिक्षा के सुधार (Reforms in Indian Education):

  • उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सुधार की माँग की, ताकि भारतीयों को बेहतर और सस्ती शिक्षा मिल सके।

8. विदेशी वस्त्रों पर प्रतिबंध (Boycott of Foreign Goods):

  • गांधी जी ने भारतीयों से विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने की अपील की, ताकि भारतीय वस्त्र उद्योग को बढ़ावा मिल सके।

9. भारतीयों पर लगाए गए उत्पीड़नकारी करों का विरोध (Opposition to Oppressive Taxes on Indians):

  • गांधी जी ने उन करों का विरोध किया जो भारतीयों पर बेतहाशा लगाए गए थे, जैसे मालगुजारी, पानी कर और अन्य कर, जो गरीब भारतीयों के जीवन को कठिन बना रहे थे।

10. ब्रिटिश सरकार की संविदानिक नीतियों का विरोध (Opposition to British Constitutional Policies):

  • उन्होंने ब्रिटिश शासन की संविदानिक नीतियों का विरोध किया, जिन्हें भारतीयों के लिए नुकसानदायक और उनके राजनीतिक अधिकारों के खिलाफ माना गया था।

11. स्वतंत्रता की माँग (Demand for Self-Rule):

  • गांधी जी ने भारतीयों को स्वराज, यानी आत्मनिर्भरता और राजनीतिक स्वतंत्रता की माँग की, ताकि भारत ब्रिटिश शासन से मुक्त हो सके।

निष्कर्ष

गांधी जी द्वारा दी गई ग्यारह माँगें भारतीयों के हित में थीं और उन्होंने इन माँगों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को संगठित करने का प्रयास किया। इन माँगों ने भारतीय समाज में जागरूकता और विरोध की भावना को बढ़ावा दिया, जिससे नागरिक अवज्ञा आंदोलन को एक व्यापक जन आंदोलन का रूप मिला। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था और इसके परिणामस्वरूप भारतीयों में स्वतंत्रता की प्राप्ति की दिशा में और अधिक उत्साह और प्रतिबद्धता उत्पन्न हुई।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत (Launch of Civil Disobedience Movement)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) महात्मा गांधी द्वारा 1930 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ नेतृत्व किया गया था। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश कानूनों और नीतियों का अहिंसक तरीके से उल्लंघन करना था, खासकर उन कानूनों का, जो भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन करते थे। गांधी जी ने इस आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च से की, जब उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक यात्रा की, ताकि नमक कानून का उल्लंघन किया जा सके।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ था। गांधी जी ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होने और कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रेरित किया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को नई गति मिली।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन का टाइमलाइन (Civil Disobedience Movement Timeline)

1. 12 मार्च 1930 – दांडी मार्च की शुरुआत (Launch of Dandi March)

  • महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा शुरू की। उनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किए गए नमक कानून का उल्लंघन करना था।
  • गांधी जी के साथ लगभग 78 अनुयायी थे, और यह यात्रा 24 दिनों में पूरी हुई।

2. 6 अप्रैल 1930 – दांडी पर नमक कानून का उल्लंघन (Violation of Salt Laws at Dandi)

  • 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने दांडी पहुंचकर समुद्र तट से नमक उठाया और नमक कानून का उल्लंघन किया। इस कृत्य ने ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी और भारतीयों में जोश और उत्साह का संचार किया।

3. अप्रैल जुलाई 1930 – भारतभर में प्रदर्शन (Protests Across India)

  • गांधी जी की दांडी यात्रा के बाद, पूरे भारत में नमक कानून और अन्य ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रदर्शनों की लहर चल पड़ी। लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया।

4. मई 1930 – महात्मा गांधी की गिरफ्तारी (Arrest of Mahatma Gandhi)

  • गांधी जी और उनके अनुयायी इस आंदोलन में शामिल होने के कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए। गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन और भी तेज़ हो गया, क्योंकि भारतीयों ने उन्हें “आधिकारिक नेता” के रूप में देखा।

5. जून 1930 – कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन (National Level Protests by Congress)

  • कांग्रेस ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर फैलाया। विभिन्न हिस्सों में स्थानीय नेता इस आंदोलन का नेतृत्व करने लगे और अंग्रेजी शासन के खिलाफ अनेक विरोध प्रदर्शन हुए।

6. 1930-1931 – गांधीइरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact)

  • 1931 में ब्रिटिश सरकार और गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच गांधी-इरविन समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से नमक कानून हटाने और गिरफ्तार किए गए नेताओं को छोड़ने की बात की। इसके बदले में गांधी जी ने आंदोलन को रोकने का निर्णय लिया।

7. 1932 – सिविल अवज्ञा आंदोलन का पुनरारंभ (Re-start of Civil Disobedience Movement)

  • गांधी-इरविन समझौते के बावजूद ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के अधिकारों को पूरी तरह से नहीं माना और आंदोलन के दबाव के बावजूद कई कड़े कदम उठाए। इस कारण गांधी जी ने 1932 में नागरिक अवज्ञा आंदोलन को पुनः शुरू किया।

8. 1934 – आंदोलन की समाप्ति (End of the Movement)

  • 1934 में गांधी जी ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन को समाप्त कर दिया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन को चुनौती देने में महत्वपूर्ण था, लेकिन फिर भी भारतीयों को स्वतंत्रता की प्राप्ति नहीं हो पाई।

निष्कर्ष

नागरिक अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक भूमिका निभाई। गांधी जी ने अहिंसा के सिद्धांत को लागू करते हुए ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को संगठित किया। दांडी मार्च और नमक कानून का उल्लंघन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई, और यह आंदोलन भारतीयों के संघर्ष को और तेज़ कर दिया। गांधी जी की कड़ी गिरफ्तारी और आंदोलन की वापसी ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की शक्ति का अहसास कराया।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन का वापसी (Withdrawal of Civil Disobedience Movement)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक तरीके से विरोध करना था। हालांकि, यह आंदोलन अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद, 1931 में गांधी-इरविन समझौते के कारण अस्थायी रूप से समाप्त कर दिया गया था।

वापसी का कारण:

  • गांधीइरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact): 1931 में ब्रिटिश सरकार और गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत:
    • ब्रिटिश सरकार ने नमक कानून और कुछ अन्य कड़े कानूनों में ढील देने का वादा किया।
    • गिरफ्तार किए गए नेताओं को रिहा किया गया।
    • कांग्रेस ने आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया, जबकि समझौते के तहत गांधी जी ने इस आंदोलन को बंद करने का निर्णय लिया।
  • गांधी जी का यह निर्णय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतिक दिशा का हिस्सा था, क्योंकि उन्होंने इस समझौते से ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की ताकत का एहसास कराया। हालांकि, बाद में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के अधिकारों को पूरी तरह से मान्यता नहीं दी, और 1932 में आंदोलन फिर से शुरू करने का निर्णय लिया।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भागीदारी (Civil Disobedience Movement Participation)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भारतीय जनता ने व्यापक स्तर पर भाग लिया और यह आंदोलन भारतीय समाज के हर वर्ग से जुड़ा हुआ था। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को अहिंसक तरीके से चलाने की अपील की, और भारतीयों ने इसको भरपूर समर्थन दिया।

आंदोलन में भाग लेने वाले प्रमुख समूह:

  1. कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता जैसे जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस आदि ने इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  2. किसान और मजदूर वर्ग: किसानों और मजदूरों ने भी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, विशेष रूप से भूमि करों और अन्य शोषणकारी नीतियों के खिलाफ।
  3. महिलाएं: महिलाओं ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सरोजिनी नायडू जैसे प्रमुख नेताओं ने महिलाओं को प्रेरित किया और कई महिलाओं ने जेल जाने का साहस दिखाया।
  4. व्यापारी और उद्योगपति: व्यापारियों ने विदेशी सामान का बहिष्कार किया और भारतीय उद्योगों के लिए समर्थन दिखाया।
  5. विद्यार्थी वर्ग: छात्रों ने भी इस आंदोलन में भाग लिया, और कई विश्वविद्यालयों और स्कूलों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए।

महत्वपूर्ण घटनाएं:

  • दांडी मार्च: गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा शुरू की, जहां उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन किया।
  • नमक कानून का उल्लंघन: दांडी में नमक बनाकर और उसे बेचकर गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन किया। यह कदम पूरे देश में एक बड़े आंदोलन का रूप ले गया।

नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन (Civil Disobedience Movement Assessment)

नागरिक अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह आंदोलन भारतीयों द्वारा अहिंसक तरीके से ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठाया गया सबसे बड़ा कदम था और इसने भारतीय समाज में जागरूकता और एकता की भावना को बढ़ावा दिया।

सकारात्मक मूल्यांकन:

  1. ब्रिटिश शासन पर दबाव: इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की शक्ति का एहसास कराया और उन्हें राजनीतिक रूप से सक्रिय किया।
  2. आंतरराष्ट्रीय ध्यान: गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ। ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध ने दुनिया भर में भारतीय संघर्ष को एक नई दिशा दी।
  3. भारतीय एकता और जागरूकता: आंदोलन ने भारतीयों को जाति, धर्म और क्षेत्रीय भेदभाव से परे जाकर एकजुट किया। लाखों भारतीयों ने इसमें भाग लिया, जिससे एकता और राष्ट्रीय चेतना का निर्माण हुआ।
  4. महात्मा गांधी का नेतृत्व: गांधी जी के नेतृत्व में इस आंदोलन ने भारतीय जनता को अहिंसा, सत्य, और शांति के सिद्धांतों के प्रति जागरूक किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष के लिए नैतिक मार्ग अपनाया।

नकारात्मक मूल्यांकन:

  1. असफलता के कारण: गांधी-इरविन समझौते के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के अधिकारों को पूरी तरह से नहीं माना और आंदोलन की मूल मांगें पूरी नहीं हुईं।
  2. आंदोलन की वापसी: जब आंदोलन को अचानक रोक दिया गया, तो भारतीय जनता में निराशा का माहौल बना और यह स्थिति आंदोलन की गति को धीमा करने के रूप में देखी गई।
  3. दमन और हिंसा: इस आंदोलन के दौरान कई जगहों पर पुलिस और सैनिकों द्वारा हिंसा का सहारा लिया गया, जिससे कई निर्दोष लोग मारे गए और आंदोलन में आक्रोश बढ़ा।

निष्कर्ष:

नागरिक अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी। हालांकि आंदोलन के दौरान कुछ विफलताएँ थीं, फिर भी इसने भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष की भावना को और मजबूत किया और ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की शक्ति का अहसास कराया।

FAQ

1. सविनय अवज्ञा आंदोलन क्या था?

उत्तर: सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का अहिंसक तरीके से उल्लंघन करना था। इसका मुख्य प्रतीक दांडी मार्च था, जिसमें नमक कानून तोड़ा गया।

2. सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण क्या था?

उत्तर: ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानूनों और विशेष रूप से नमक कर का विरोध करने के लिए यह आंदोलन शुरू किया गया। नमक, जो आम जनता की आवश्यकता थी, उस पर कर लगाना भारतीयों के लिए अन्यायपूर्ण था।

3. क्या सविनय अवज्ञा आंदोलन सफल रहा?

उत्तर: आंशिक रूप से, क्योंकि इसने ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया, लेकिन तत्काल स्वतंत्रता नहीं दिला सका।

4. सविनय अवज्ञा आंदोलन से हमें क्या सीख मिलती है?

अहिंसा और सत्याग्रह अत्यंत प्रभावी हथियार हैं।, संगठित और दृढ़ संकल्पित संघर्ष से बड़े से बड़े शासन को भी झुकाया जा सकता है।, जनता की एकता से अन्यायपूर्ण नीतियों को चुनौती दी जा सकती है।

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