Decolonisation in hindi

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उपनिवेशवाद का अंत कब शुरू हुआ? (When Did the Process of Decolonisation Begin?)

उपनिवेशवाद के अंत (डिकोलोनाइजेशन) की प्रक्रिया मुख्य रूप से द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के बाद शुरू हुई, जब औपनिवेशिक शक्तियों की राजनीतिक, आर्थिक, और सैन्य स्थिति कमजोर हो गई। हालांकि, इसका आधार प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद ही तैयार होना शुरू हो गया था।

मुख्य चरण:

  1. प्रथम विश्व युद्ध के बाद (1919):
    • युद्ध के बाद यूरोपीय शक्तियाँ कमजोर हुईं और कई उपनिवेशों में राष्ट्रवादी आंदोलनों ने गति पकड़ी।
    • लीग ऑफ नेशंस द्वारा कुछ क्षेत्रों में मंडेट प्रणाली लागू की गई, जो उपनिवेशों के स्व-शासन की दिशा में एक कदम था।
  1. बीच का दौर (1920-1930 के दशक):
    • इस दौरान भारत, चीन, और अफ्रीका में स्वतंत्रता संग्राम तेज हुआ।
    • महात्मा गांधी और नेहरू जैसे नेताओं ने अहिंसक आंदोलनों के माध्यम से भारत में ब्रिटिश शासन को चुनौती दी।
    • इंडोनेशिया, वियतनाम, और अन्य एशियाई देशों में भी इसी तरह की लड़ाइयाँ लड़ी गईं।
  1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद (1945):
    • युद्ध ने ब्रिटेन, फ्रांस, और अन्य उपनिवेशी ताकतों को आर्थिक और सैन्य रूप से कमजोर कर दिया।
    • संयुक्त राष्ट्र ने आत्मनिर्णय (Self-determination) के अधिकार को बढ़ावा दिया, जिससे उपनिवेशों की स्वतंत्रता की माँग को बल मिला।
    • 1947 में भारत और पाकिस्तान की स्वतंत्रता, और 1949 में इंडोनेशिया की स्वतंत्रता ने उपनिवेशवाद के अंत की शुरुआत को चिह्नित किया।
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डिकोलोनाइजेशन क्या है? (What is Decolonisation?)

डिकोलोनाइजेशन (Decolonisation) का अर्थ है उपनिवेशों को औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र करना और उन्हें स्वशासन प्रदान करना। यह प्रक्रिया राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक स्तर पर होती है, जिसमें उपनिवेश अपनी पहचान और संप्रभुता स्थापित करते हैं।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. स्वतंत्रता प्राप्ति (Independence):
    • उपनिवेश अपने औपनिवेशिक शासकों से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करते हैं।
    • उदाहरण: भारत (1947), घाना (1957), अल्जीरिया (1962)।
  1. सांस्कृतिक स्वतंत्रता (Cultural Independence):
    • उपनिवेश अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित करते हैं और औपनिवेशिक प्रभाव को समाप्त करने का प्रयास करते हैं।
  1. आर्थिक स्वायत्तता (Economic Autonomy):
    • उपनिवेश आर्थिक निर्भरता से मुक्त होने का प्रयास करते हैं और अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं।

डिकोलोनाइजेशन के कारण:

  1. द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव: औपनिवेशिक ताकतों की कमजोरी।
  2. राष्ट्रवादी आंदोलनों का उदय: महात्मा गांधी, हो ची मिन्ह, और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया।
  3. संयुक्त राष्ट्र और आत्मनिर्णय का सिद्धांत: उपनिवेशों को स्व-शासन का अधिकार।
  4. शीत युद्ध का प्रभाव: अमेरिका और सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध किया।

निष्कर्ष:

डिकोलोनाइजेशन एक ऐतिहासिक प्रक्रिया थी, जिसने एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका के देशों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करके स्वतंत्र राष्ट्रों में बदल दिया। इसने न केवल इन देशों की राजनीतिक स्थिति बदली, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित किया।

उपनिवेशवाद के अंत की प्रक्रिया (The Process of Decolonisation)

उपनिवेशवाद के अंत (Decolonisation) की प्रक्रिया वह ऐतिहासिक परिवर्तन थी, जिसमें उपनिवेशी राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर संप्रभु राष्ट्र बने। यह प्रक्रिया 19वीं सदी के अंत से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक चली, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे सबसे अधिक गति मिली।

उपनिवेशवाद के अंत की प्रक्रिया के चरण:

  1. राष्ट्रवाद का उदय:
    • उपनिवेशों में राष्ट्रवादी आंदोलनों का उदय हुआ। स्थानीय नेताओं और आंदोलनों ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
    • उदाहरण: भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन।
  1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का प्रभाव:
    • यूरोपीय शक्तियों की सैन्य और आर्थिक कमजोरी।
    • संयुक्त राष्ट्र द्वारा आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन।
    • एशिया और अफ्रीका के कई देशों में स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुए।
  1. औपनिवेशिक शक्तियों का पतन:
    • ब्रिटेन, फ्रांस, और अन्य यूरोपीय देशों ने अपनी औपनिवेशिक नीति में परिवर्तन किया।
    • कई देशों ने शांतिपूर्ण या हिंसक तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त की।
    • उदाहरण: भारत (1947), घाना (1957), अल्जीरिया (1962)।
  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन और शीत युद्ध का प्रभाव:
    • नव स्वतंत्र देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया और अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र बनाया।

फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अंत में अंतर (Differences Between French and British Decolonisation)

पहलू फ्रांसीसी डिकोलोनाइजेशन ब्रिटिश डिकोलोनाइजेशन
प्रक्रिया अधिकतर हिंसक संघर्षों से स्वतंत्रता मिली। अधिकांश मामलों में शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से स्वतंत्रता दी गई।
मुख्य उदाहरण अल्जीरिया, वियतनाम। भारत, घाना, नाइजीरिया।
औपनिवेशिक दृष्टिकोण फ्रांस ने अपने उपनिवेशों को “मां देश” का हिस्सा माना और उन्हें अपने में समाहित करने का प्रयास किया। ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशों को एक अलग इकाई माना और स्वायत्तता देने की नीति अपनाई।
स्वतंत्रता आंदोलन की प्रकृति उपनिवेशों में सशस्त्र संघर्ष और क्रांतिकारी आंदोलनों का नेतृत्व। शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलनों और संवैधानिक उपायों का सहारा।
संक्रमण की अवधि लंबी और कठिन। तुलनात्मक रूप से तेज और संगठित।
संयुक्त राष्ट्र का प्रभाव फ्रांस ने अक्सर अंतरराष्ट्रीय दबाव का विरोध किया। ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानकों को अपनाया।
पश्चऔपनिवेशिक प्रभाव फ्रांस ने अपने पूर्व उपनिवेशों में सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की कोशिश की। ब्रिटेन ने कॉमनवेल्थ के माध्यम से अपने पूर्व उपनिवेशों के साथ संबंध बनाए रखे।

निष्कर्ष:

फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अंत के तरीकों में स्पष्ट अंतर था। फ्रांसीसी प्रक्रिया अधिक संघर्षपूर्ण थी, जबकि ब्रिटिश प्रक्रिया अधिक शांतिपूर्ण रही। हालांकि, दोनों ही प्रक्रियाओं ने दुनिया में औपनिवेशिक युग के अंत और नए राष्ट्रों के उदय को चिह्नित किया।

FAQ

1. डिकोलोनाइज़ेशन (Decolonisation) क्या है?

उत्तर: डिकोलोनाइज़ेशन एक प्रक्रिया है जिसमें कोई देश या क्षेत्र विदेशी शासन से मुक्त होकर स्वतंत्रता प्राप्त करता है। यह औपनिवेशिक शक्तियों के प्रभाव और नियंत्रण से मुक्त होने की प्रक्रिया को दर्शाता है।

2. डिकोलोनाइज़ेशन की शुरुआत कब और कैसे हुई?

उत्तर: डिकोलोनाइज़ेशन मुख्य रूप से 20वीं शताब्दी में हुआ, विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के बाद। इस प्रक्रिया में कई देशों ने ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन और अन्य यूरोपीय देशों के शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की।

3. भारत में डिकोलोनाइज़ेशन कब हुआ?

उत्तर: भारत ने 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए अहिंसात्मक आंदोलनों का परिणाम था।

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