Directive Principles of State Policy in hindi

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Directive Principles of State Policy in hindi

राज्य के नीति निर्देशक तत्व | Directive Principles of State Policy – DPSP

परिचय

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP) भारतीय संविधान के भाग-4 (अनुच्छेद 36 से 51) में उल्लिखित हैं। ये तत्व सरकार को सामाजिक-आर्थिक न्याय और कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की स्थापना के लिए मार्गदर्शन देते हैं।

📌 मुख्य विशेषताएँ:

  • DPSP गैर-न्यायसंगत (Non-Justiciable) हैं, यानी इन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • ये आधिकारिक निर्देश हैं, जिन्हें सरकार को लागू करने का प्रयास करना चाहिए।
  • इनकी प्रेरणा आयरिश संविधान (Ireland) से ली गई है।
  • इनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।

🔹 DPSP और मौलिक अधिकारों में अंतर

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) DPSP (राज्य के नीति निर्देशक तत्व)
भाग-3 (अनुच्छेद 12-35) में दिए गए हैं। भाग-4 (अनुच्छेद 36-51) में दिए गए हैं।
न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (Justiciable)। न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं (Non-Justiciable)।
नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हैं। राज्य को सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए मार्गदर्शन देते हैं।
नकारात्मक अधिकार – सरकार को कुछ कार्यों से रोकते हैं। सकारात्मक निर्देश – सरकार को कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

🔹 नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण

DPSP को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है:

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1️ समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Principles)

📌 ये तत्व सामाजिक और आर्थिक समानता को सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निर्देश देते हैं।

अनुच्छेद विषय
अनुच्छेद 38 सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देना।
अनुच्छेद 39 संपत्ति और संसाधनों का समान वितरण, आजीविका के समान अवसर।
अनुच्छेद 39A गरीबों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना।
अनुच्छेद 41 रोजगार, शिक्षा और लोक सहायता की व्यवस्था।
अनुच्छेद 42 श्रमिकों के लिए मानवतावादी कार्य-स्थितियाँ और मातृत्व राहत।
अनुच्छेद 43 श्रमिकों को उचित वेतन और जीवन स्तर।
अनुच्छेद 43A श्रमिकों को प्रबंधन में भागीदारी देने के लिए प्रेरित करना।
अनुच्छेद 47 पोषण और स्वास्थ्य सुधार को बढ़ावा देना।

📌 महत्व:

  • समाज में आर्थिक असमानता को कम करना।
  • गरीब और कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना।

2️ गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)

📌 ये सिद्धांत महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हैं और ग्रामीण विकास, पंचायती राज और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देते हैं।

अनुच्छेद विषय
अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों की स्थापना।
अनुच्छेद 43 कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना।
अनुच्छेद 46 अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों की सुरक्षा।
अनुच्छेद 47 शराब और नशीले पदार्थों पर रोक।
अनुच्छेद 48 गौ-हत्या पर प्रतिबंध और कृषि व पशुपालन को बढ़ावा देना।

📌 महत्व:

  • ग्रामीण भारत के विकास के लिए आवश्यक।
  • स्वदेशी उद्योगों और कुटीर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।

3️ उदारवादी-राजनीतिक सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles)

📌 ये सिद्धांत आधुनिक लोकतंत्र और समाज के नैतिक विकास पर केंद्रित हैं।

अनुच्छेद विषय
अनुच्छेद 44 संपूर्ण भारत के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC)
अनुच्छेद 45 6 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना (अब अनुच्छेद 21A में मौलिक अधिकार बना)।
अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन का वैज्ञानिक विकास।
अनुच्छेद 48A पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों की सुरक्षा।
अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय स्मारकों की सुरक्षा।
अनुच्छेद 50 न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग करना।
अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना।

📌 महत्व:

  • सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करता है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है।

🔹 DPSP को प्रभावी बनाने के लिए संवैधानिक संशोधन

📌 42वां संविधान संशोधन (1976)

  • अनुच्छेद 39A, 43A और 48A जोड़े गए।
  • “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय” को और मजबूत किया गया।

📌 86वां संविधान संशोधन (2002)

  • अनुच्छेद 45 में बदलाव कर 6-14 वर्ष तक के बच्चों की निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21A) में बदला।

📌 97वां संविधान संशोधन (2011)

  • सहकारी समितियों (Co-operative Societies) को बढ़ावा देने के लिए अनुच्छेद 43B जोड़ा गया।

🔹 DPSP और न्यायिक व्याख्या

हालाँकि DPSP न्यायसंगत नहीं हैं, लेकिन न्यायपालिका ने कई बार इन्हें मौलिक अधिकारों के समान महत्व दिया है

📌 केशवानंद भारती केस (1973):

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा मौलिक अधिकार और DPSP का संतुलन है।”

📌 मिनर्वा मिल्स केस (1980):

  • मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक बताया।

📌 गोलकनाथ केस (1967):

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार सर्वोच्च हैं और DPSP उन्हें नहीं हटा सकते।

🔍 निष्कर्ष

📌 DPSP भारत को “कल्याणकारी राज्य” (Welfare State) बनाने की दिशा में मार्गदर्शक हैं।
📌 हालांकि ये न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन ये सरकार की नीतियों का आधार बनते हैं।
📌 DPSP को लागू करने से भारत में सामाजिक समानता, न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत किया जा सकता है।

UPSC में संभावित प्रश्न:

  1. “राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) की विशेषताएँ और उनका महत्व स्पष्ट करें।”
  2. “DPSP और मौलिक अधिकारों की तुलना करें।”
  3. “समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की संवैधानिक बाधाएँ और लाभ पर चर्चा करें।”

FAQ

Q1: राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) क्या हैं?

✅ उत्तर: राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) भारतीय संविधान के भाग 4 (अनुच्छेद 36-51) में दिए गए हैं। ये सरकार को कल्याणकारी राज्य (Welfare State) बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, लेकिन न्यायालय में प्रवर्तनीय (Enforceable) नहीं होते।

Q2: DPSP का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: DPSP का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देना, समाज में समानता लाना और देश में कल्याणकारी राज्य स्थापित करना है।

Q3: DPSP न्यायालय में लागू क्यों नहीं किए जा सकते?

उत्तर: DPSP सरकार के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, लेकिन कानूनी बाध्यता नहीं रखते। न्यायालय इन्हें लागू करने का आदेश नहीं दे सकता, लेकिन सरकार को इन्हें अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

Q4: DPSP को संविधान में कहाँ से लिया गया है?

उत्तर: DPSP की अवधारणा आयरलैंड के संविधान से ली गई है, जो स्पेनिश संविधान से प्रेरित थी।

Q5: DPSP और मौलिक अधिकारों में क्या अंतर है?

उत्तर:

बिंदु DPSP (राज्य के नीति निदेशक तत्व) मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
प्रवर्तनीयता न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं न्यायालय में प्रवर्तनीय
स्वरूप सरकार के लिए मार्गदर्शक नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
संविधान में स्थान भाग 4 (अनुच्छेद 36-51) भाग 3 (अनुच्छेद 12-35)
उदाहरण समान नागरिक संहिता (अनुच्छेद 44), निःशुल्क शिक्षा (अनुच्छेद 45) जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19)

Q6: DPSP को कितने प्रकारों में बांटा गया है?

उत्तर: DPSP को तीन प्रकारों में बांटा गया है:

1️⃣ समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Principles) – सामाजिक समानता और न्याय पर ज़ोर (जैसे अनुच्छेद 39: संसाधनों का समान वितरण)।
2️⃣ गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles) – गांधीजी के विचारों पर आधारित (जैसे अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का सशक्तिकरण)।
3️⃣ उदारवादी-राजनीतिक सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles) – प्रशासनिक और कानूनी सुधारों पर ज़ोर (जैसे अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता)।

Q7: DPSP के कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेद कौन से हैं?

उत्तर:

🔹 अनुच्छेद 38: सामाजिक न्याय और कल्याणकारी राज्य।
🔹 अनुच्छेद 39: समान वेतन, संसाधनों का समान वितरण।
🔹 अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों को बढ़ावा देना।
🔹 अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)।
🔹 अनुच्छेद 45: 6 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा।
🔹 अनुच्छेद 47: पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार।
🔹 अनुच्छेद 48A: पर्यावरण और वन्य जीवों की रक्षा।

Q8: क्या DPSP को मौलिक अधिकारों से ऊपर रखा जा सकता है?

उत्तर: नहीं, मौलिक अधिकारों को संविधान का मूल ढांचा (Basic Structure) माना जाता है, इसलिए DPSP उनके खिलाफ नहीं जा सकते। लेकिन मिनर्वा मिल्स केस (1980) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि DPSP और मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन आवश्यक है

Q9: क्या DPSP को लागू करने के लिए सरकार ने कोई कदम उठाए हैं?

उत्तर: हाँ, सरकार ने कई DPSP को लागू करने के लिए कानून बनाए हैं, जैसे:

अनुच्छेद 45: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009।
अनुच्छेद 47: नशाबंदी कानून (कुछ राज्यों में लागू)।
अनुच्छेद 48A: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986।

Q10: DPSP का संविधान संशोधन के माध्यम से क्या विस्तार हुआ है?

उत्तर: 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से कुछ नए DPSP जोड़े गए, जैसे:

अनुच्छेद 39A – निःशुल्क कानूनी सहायता।
अनुच्छेद 43A – श्रमिकों की भागीदारी।
अनुच्छेद 48A – पर्यावरण संरक्षण।

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