Dissolution of Soviet Union summary

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Dissolution of Soviet Union summary

सोवियत संघ (USSR) की स्थापना (Establishment of USSR)

सोवियत संघ (USSR) का गठन 1922 में हुआ था, और यह दुनिया का पहला समाजवादी राज्य था। इसकी स्थापना रूस में अक्टूबर क्रांति (1917) के बाद हुई थी, जब बोल्शेविक पार्टी के नेता व्लादिमीर लेनिन ने ज़ारशाही और पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त कर दिया। अक्टूबर क्रांति के परिणामस्वरूप, रूस में समाजवादी शासन की स्थापना हुई और उसे “सोवियत संघ” (Soviet Union) का नाम दिया गया।

सोवियत संघ की स्थापना के प्रमुख कारण:

  1. अक्टूबर क्रांति (1917): रूस में अक्टूबर क्रांति के दौरान, बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में श्रमिकों और किसानों ने ज़ार निकोलस II की तानाशाही और पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया। इसके परिणामस्वरूप रूस में साम्यवादी शासन की नींव पड़ी।
  2. मार्क्सवाद-लेनिनवाद: व्लादिमीर लेनिन ने कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों को रूस की परिस्थितियों में लागू किया। उन्होंने पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष करते हुए एक समाजवादी समाज की स्थापना की योजना बनाई, जिसमें श्रमिक वर्ग और किसानों को सत्ता में लाया गया।
  3. साम्राज्यवादी नीतियाँ: प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद, रूस में भारी असंतोष था। रूस के युद्ध में भाग लेने के कारण देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याएँ थीं। बोल्शेविकों ने इन समस्याओं का समाधान समाजवादी दृष्टिकोण से करने का दावा किया और व्यापक समर्थन प्राप्त किया।
  4. गृहयुद्ध (1917-1922): अक्टूबर क्रांति के बाद, रूस में नागरिक युद्ध छिड़ गया, जिसमें बोल्शेविक (लाल सेना) और एंटी-बोल्शेविक (सफेद सेना) के बीच संघर्ष हुआ। बोल्शेविकों की विजय ने उनका शासन स्थापित किया और सोवियत संघ की नींव रखी।

सोवियत संघ की स्थापना (1922):

1922 में, रूस और उसके सहयोगी क्षेत्रों ने मिलकर सोवियत संघ की स्थापना की। सोवियत संघ में कुल 15 गणराज्य थे, जिनमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, और अन्य केंद्रीय एशियाई देशों का समावेश था। लेनिन के नेतृत्व में, सोवियत संघ ने समाजवादी आर्थिक और राजनीतिक संरचनाओं की स्थापना की, और इसे एक केंद्रीकृत राज्य के रूप में गठित किया।

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सोवियत संघ के विघटन के कारण (Factors that Led to the Dissolution of the Soviet Union)

सोवियत संघ का विघटन 1991 में हुआ, जब इसकी सत्ता ढह गई और 15 स्वतंत्र गणराज्य अस्तित्व में आए। इस विघटन के पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक कारण थे।

1. आर्थिक संकट (Economic Crisis):

  • योजना आधारित अर्थव्यवस्था: सोवियत संघ की केंद्रीकृत योजना आधारित अर्थव्यवस्था लंबे समय से समस्याओं का सामना कर रही थी। उत्पादन और आपूर्ति की कमी, भ्रष्टाचार, और अत्यधिक सरकारी नियंत्रण ने आर्थिक विकास को धीमा कर दिया।
  • अफगान युद्ध (1979-1989): अफगानिस्तान में सोवियत संघ का सैन्य हस्तक्षेप आर्थिक रूप से बहुत भारी था। युद्ध की वजह से सोवियत संघ के संसाधनों की अत्यधिक खपत हुई और इसने वित्तीय संकट को और बढ़ा दिया।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: पश्चिमी देशों के साथ चल रही आर्थिक प्रतिस्पर्धा, विशेष रूप से अमेरिका के साथ, ने सोवियत संघ को आर्थिक दबाव में डाला। विशेषकर, अमेरिका ने स्टार वार्स (Star Wars) कार्यक्रम के तहत सैन्य खर्चों में वृद्धि की, जिससे सोवियत संघ के लिए आर्थिक स्थिति और भी कठिन हो गई।

2. गोरबाचेव की सुधार नीतियाँ (Gorbachev’s Reforms):

  • पेरोस्त्रोइका (Perestroika): मिखाइल गोरबाचेव ने 1985 में सत्ता संभालने के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार करने के लिए पेरोस्त्रोइका (आर्थिक पुनर्गठन) नीति शुरू की। हालांकि, यह नीति सोवियत संघ की संरचनात्मक समस्याओं का समाधान करने में विफल रही, और आर्थिक संकट और बढ़ गया।
  • ग्लासनोस्ट (Glasnost): गोरबाचेव ने ग्लासनोस्ट (खुलापन) की नीति अपनाई, जिसके तहत मीडिया और राजनीतिक गतिविधियों में अधिक स्वतंत्रता दी गई। इससे समाज में असंतोष और स्वतंत्रता की मांग बढ़ी, जो संघ के विघटन का कारण बनी।

3. राष्ट्रीयतावाद और स्वतंत्रता की भावना (Nationalism and the Demand for Independence):

  • सोवियत संघ में कई जातीय समूहों और राष्ट्रों ने स्वतंत्रता की मांग की। यूक्रेन, बाल्टिक राज्य (एस्तोनिया, लातविया, लिथुआनिया), और काकेशस क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में राष्ट्रीयतावादी आंदोलन तेज हो गए थे।
  • गोरबाचेव की नीतियाँ इस असंतोष को दबाने में विफल रहीं, और कई गणराज्य स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगे।

4. राजनीतिक असंतोष (Political Discontent):

  • सोवियत संघ की एकदलीय व्यवस्था और राजनीतिक नियंत्रण ने नागरिकों में असंतोष पैदा किया। गोरबाचेव की सुधार नीतियाँ भी राजनीतिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं ला सकी, और जनता के बीच सरकार के प्रति विश्वास कम होने लगा।
  • 1990 में, गोरबाचेव की पदच्युत होने की कोशिश ने एक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया, जिससे सोवियत संघ की राजनीति में अस्थिरता पैदा हुई।

5. अगस्त 1991 का तख्तापलट (August 1991 Coup):

  • अगस्त 1991 में, सोवियत संघ के कुछ सख्त नेताओं ने गोरबाचेव के खिलाफ एक तख्तापलट की कोशिश की। हालांकि, यह असफल रहा, लेकिन इससे गोरबाचेव की सत्ता कमजोर हो गई और स्वतंत्रता की मांग में और तेज़ी आई।

6. बाहरी दबाव (External Pressure):

  • सोवियत संघ पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ा था। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ को राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक रूप से चुनौती दी थी, जिससे सोवियत संघ पर आंतरिक और बाहरी दबाव बढ़ा।

7. स्वतंत्र राष्ट्रों का उदय (Emergence of Independent Nations):

  • सोवियत संघ के विभिन्न हिस्सों ने 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा की और स्वतंत्र गणराज्य के रूप में अस्तित्व में आए। 15 स्वतंत्र राष्ट्रों ने सोवियत संघ से बाहर निकलने की घोषणा की और इस प्रकार 26 दिसम्बर 1991 को सोवियत संघ का आधिकारिक विघटन हुआ।

निष्कर्ष:

सोवियत संघ का विघटन एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें आर्थिक संकट, राजनीतिक असंतोष, गोरबाचेव की सुधार नीतियाँ, और राष्ट्रीयतावादी आंदोलनों का एक महत्वपूर्ण योगदान था। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ, 15 नए स्वतंत्र देशों का उदय हुआ और यह घटना वैश्विक राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।

सोवियत संघ के विघटन की ओर ले जाने वाली घटनाएँ (Events Leading to the Soviet Disintegration)

सोवियत संघ का विघटन 1991 में हुआ था, और इसके पीछे कई घटनाएँ और कारक थे। इन घटनाओं ने धीरे-धीरे सोवियत संघ को कमजोर किया और अंततः उसे तोड़ दिया।

1. गोरबाचेव का उदय और सुधार नीतियाँ (Gorbachev’s Rise and Reform Policies):

  • मिखाइल गोरबाचेव 1985 में सोवियत संघ के महासचिव बने। उन्होंने सोवियत संघ की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए पेरोस्त्रोइका (आर्थिक पुनर्गठन) और ग्लासनोस्ट (खुलापन) नीतियाँ शुरू की।
  • पेरोस्त्रोइका का उद्देश्य सोवियत अर्थव्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना था, लेकिन यह नीति कामयाब नहीं हुई। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में और गिरावट आई।
  • ग्लासनोस्ट ने समाज में खुलेपन की भावना को बढ़ावा दिया, जिससे राजनीतिक असंतोष और आलोचना सामने आने लगी।

2. राष्ट्रीयतावाद और क्षेत्रीय असंतोष (Nationalism and Regional Discontent):

  • सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्य, जैसे यूक्रेन, लातविया, एस्टोनिया, और आर्मेनिया, स्वतंत्रता की मांग करने लगे थे। ग्लासनोस्ट और पेरोस्त्रोइका ने इन राष्ट्रीयतावादी आंदोलनों को और भी प्रोत्साहित किया।
  • कई राज्यों ने स्वायत्तता की माँग की, और यह स्थिति धीरे-धीरे संघ के विघटन की ओर बढ़ी।

3. आर्थिक संकट (Economic Crisis):

  • सोवियत संघ की केंद्रीकृत योजना आधारित अर्थव्यवस्था दीर्घकालिक समस्याओं से जूझ रही थी। महंगे सैन्य खर्च, तकनीकी पिछड़ापन, और कच्चे माल की कमी ने आर्थिक संकट को बढ़ाया।
  • अफगान युद्ध (1979-1989) के कारण भी आर्थिक दबाव बढ़ा, क्योंकि युद्ध ने बड़े पैमाने पर संसाधनों की खपत की और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया।

4. 1991 का अगस्त तख्तापलट (August 1991 Coup):

  • 1991 में, कुछ सख्त सोवियत नेताओं ने गोरबाचेव के खिलाफ तख्तापलट करने की कोशिश की। इस तख्तापलट का उद्देश्य गोरबाचेव के सुधारों को रोकना था।
  • हालांकि यह तख्तापलट असफल रहा, लेकिन इससे गोरबाचेव की स्थिति कमजोर हुई और सोवियत संघ के अंदर अस्थिरता बढ़ी।
  • तख्तापलट के बाद, कई गणराज्यों ने सोवियत संघ से अलग होने की प्रक्रिया तेज कर दी।

5. बर्लिन दीवार का पतन (Fall of the Berlin Wall) और शीत युद्ध का अंत:

  • 1989 में बर्लिन दीवार का पतन और शीत युद्ध का अंत हुआ, जिससे यूरोप में राजनीतिक स्थिति बदल गई।
  • पूर्वी यूरोप में साम्यवादी शासन का पतन हुआ और कई देशों ने लोकतांत्रिक सुधार किए। इसने सोवियत संघ पर दबाव बढ़ाया और उसके नेताओं को असहज किया।

6. बास्किन घोषणापत्र और गणराज्यों की स्वतंत्रता (Declaration of Independence by Republics):

  • 1991 में, यूक्रेन, बाल्टिक राज्य (लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया), और अन्य गणराज्य स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। सोवियत संघ में असंतोष इतना बढ़ गया था कि अब इन गणराज्यों के लिए अलग होना आसान हो गया था।
  • 1991 में वीलेनिया समझौता (Belovezh Accords) ने सोवियत संघ को औपचारिक रूप से समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।

7. सोवियत संघ का औपचारिक विघटन (Official Dissolution of the Soviet Union):

  • 26 दिसंबर 1991 को, सोवियत संघ का औपचारिक रूप से विघटन हो गया। 15 स्वतंत्र गणराज्य अस्तित्व में आए, जिनमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, और अन्य देश शामिल थे।
  • गोरबाचेव ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने स्वतंत्र रूस के नेता के रूप में कार्यभार संभाला।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम (Consequences of the Dissolution of the Soviet Union)

सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप वैश्विक और क्षेत्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आए। इसके प्रभावों का सामना न केवल सोवियत संघ के पूर्व सदस्य देशों को करना पड़ा, बल्कि यह पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला घटना थी।

1. रूस और अन्य स्वतंत्र गणराज्य का उदय (Rise of Russia and Other Independent Republics):

  • सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस ने प्रमुख शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखा। बोरिस येल्तसिन ने रूस की स्वतंत्रता की घोषणा की और उसे एक बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
  • अन्य 14 गणराज्यों ने भी स्वतंत्रता प्राप्त की और वे अब स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आए।

2. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव (Changes in International Politics):

  • सोवियत संघ का विघटन शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था। अब केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ही वैश्विक सुपरपावर के रूप में रह गया।
  • शीत युद्ध का अंत और सोवियत संघ का विघटन नए अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे रहे थे। नाटो (NATO) और यूरोपीय संघ (European Union) जैसे पश्चिमी संगठन अधिक प्रभावी हुए, जबकि रूस और उसके सहयोगी देशों को नए चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

3. आर्थिक संकट और पुनर्निर्माण (Economic Crisis and Reconstruction):

  • रूस और अन्य नए स्वतंत्र देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। संविधानिक और राजनीतिक स्थिरता की कमी ने आर्थिक संकट को और बढ़ाया।
  • रूस में तत्कालीन आर्थिक संकट के कारण संसाधनों की कमी, महंगाई और बेरोज़गारी का सामना करना पड़ा।

4. जातीय संघर्ष और संघर्षों का उभार (Ethnic Conflicts and Rise of Struggles):

  • सोवियत संघ के विघटन के साथ ही विभिन्न जातीय संघर्ष और गृहयुद्धों का उभार हुआ। उदाहरण स्वरूप, आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच संघर्ष, चेचेन संघर्ष और यूक्रेन संघर्ष ने इन क्षेत्रों को अस्थिर कर दिया।
  • कई देशों में जातीय पहचान, भाषा और संस्कृति के आधार पर संघर्ष होने लगे।

5. वैश्विक सुरक्षा में अस्थिरता (Instability in Global Security):

  • सोवियत संघ के विघटन ने वैश्विक सुरक्षा को प्रभावित किया, क्योंकि अब रूस और अन्य नए स्वतंत्र देशों के पास परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ गई थी।
  • इसके साथ ही, क्षेत्रीय युद्धों और संघर्षों के नए खतरे उत्पन्न हुए, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए चुनौती बने।

6. रूस का पुनर्निर्माण और राजनीतिक स्थिरता (Russia’s Reconstruction and Political Stability):

  • रूस को अपने राजनीतिक ढांचे को फिर से स्थापित करना पड़ा, और यह प्रक्रिया बहुत कठिन रही। येल्तसिन के शासन में कई राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की कोशिश की गई, लेकिन भ्रष्टाचार और अस्थिरता ने उनकी सफलता में बाधा डाली।
  • बाद में, व्लादिमीर पुतिन के शासन में रूस ने राजनीतिक स्थिरता प्राप्त की, लेकिन यह भी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कुछ हद तक आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखता था।

निष्कर्ष:

सोवियत संघ का विघटन एक ऐतिहासिक और निर्णायक घटना थी, जिसने न केवल सोवियत संघ के अंदर बल्कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों का सिलसिला शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव, नए संघर्ष, और क्षेत्रीय अस्थिरता देखने को मिली। साथ ही, रूस और अन्य स्वतंत्र राज्यों को पुनर्निर्माण और स्थिरता की प्रक्रिया में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

FAQ

1. सोवियत संघ का विघटन कब हुआ?

सोवियत संघ (USSR) का विघटन 26 दिसंबर 1991 को हुआ, जब यह 15 स्वतंत्र गणराज्यों में विभाजित हो गया।

2. मिखाइल गोर्बाचेव की भूमिका क्या थी?

गोर्बाचेव ने ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (आर्थिक पुनर्गठन) की नीतियाँ शुरू कीं। ये सुधार सोवियत संघ को मजबूत करने के लिए थे, लेकिन इससे अस्थिरता बढ़ी और अंततः विघटन हो गया।

3. किस संधि से सोवियत संघ का आधिकारिक विघटन हुआ?

8 दिसंबर 1991 को बेलावेझा समझौते (Belavezha Accords) पर रूस, यूक्रेन और बेलारूस के नेताओं ने हस्ताक्षर किए, जिससे सोवियत संघ का अंत हो गया।

4. सोवियत संघ के विघटन के बाद कौन-कौन से नए देश बने?

उत्तर: सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 स्वतंत्र देश बने: रूस, यूक्रेन, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, जॉर्जिया, मोल्दोवा, लिथुआनिया, लातविया, एस्तोनिया,

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