Extremist Phase of Indian National Congress notes
भारत में उग्रवाद (Extremism) के उदय के कारण (Factors Leading to the Rise of Extremism in India)
भारत में उग्रवाद (Extremism) का उदय 19वीं और 20वीं शताब्दी के अंत में हुआ, जब भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के भीतर कुछ नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अधिक सशक्त और निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की। उग्रवाद का मुख्य उद्देश्य केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करना नहीं था, बल्कि भारतीय समाज और राजनीति में बदलाव लाना भी था। इस आंदोलन के उदय के पीछे कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं का सम्मिलन था।
1. ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियां और अत्याचार (British Policies and Oppression)
- अत्यधिक कर और शोषण (Excessive Taxation and Exploitation): ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों और श्रमिकों पर अत्यधिक कर लगाया, जिससे किसानों का जीवन दयनीय हो गया। ब्रिटिश व्यापारिक नीतियों ने भारतीय कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया और भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से उपनिवेशीकरण कर लिया।
- उपनिवेशी शोषण (Colonial Exploitation): ब्रिटिश शासकों ने भारत के संसाधनों का शोषण किया, और भारतीय जनता को केवल अपने साम्राज्य के लिए संसाधन उपलब्ध कराने वाले एक उपनिवेश के रूप में देखा। इससे भारतीयों के बीच असंतोष और नाराजगी बढ़ी।
- सांस्कृतिक और धार्मिक अपमान (Cultural and Religious Humiliation): ब्रिटिश शासन ने भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं का लगातार अपमान किया। इसे लेकर भारतीय समाज में असंतोष फैलने लगा और इसने उग्रवादी विचारों को बढ़ावा दिया।
2. कांग्रेस के कार्यों में असंतोष (Discontent with Congress’s Moderates)
- मध्यमपंथियों की नीतियां (Policies of the Moderates): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरुआती नेताओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की राह अपनाई। हालांकि, कुछ भारतीयों को यह असंतोषजनक लगने लगा कि कांग्रेस ब्रिटिश सरकार से अधिक रियायतें प्राप्त करने में सफल नहीं हो पा रही थी।
- अधिकारों की सीमित प्राप्ति (Limited Gains from the British Government): कांग्रेस के धीरे-धीरे सुधार की मांगें पूरी होने के बावजूद, आम जनता को अपनी समस्याओं का हल नहीं दिखाई दे रहा था। इससे भारतीय समाज में उग्रवाद को बढ़ावा मिला।
3. 1905 का बंगाल विभाजन (Partition of Bengal, 1905)
- बंगाल विभाजन: ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल का विभाजन 1905 में किया गया, जिसका उद्देश्य भारतीयों के बीच धार्मिक और जातीय विभाजन को बढ़ावा देना था। यह विभाजन भारतीय समाज के बीच असहमति और अशांति का कारण बना, और इससे उग्रवादियों को अपनी गतिविधियों को बढ़ावा देने का अवसर मिला।
- रचनात्मक और राजनीतिक असंतोष (Political and Creative Discontent): बंगाल विभाजन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में उग्रवादी तत्वों ने अपनी भूमिका निभाई। इसे भारतीयों की एकजुटता के खिलाफ एक गंभीर कदम के रूप में देखा गया।
4. ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष (General Discontent Against British Rule)
- लोकतांत्रिक अधिकारों की कमी (Lack of Democratic Rights): भारतीयों को ब्रिटिश शासन में अपने राजनीतिक अधिकारों का पूरी तरह से अभाव था। किसी भी प्रकार के लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की कमी ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक आक्रामक बना दिया।
- भारतीय समाज में असमानता (Social Inequality in Indian Society): ब्रिटिश शासन के तहत समाज में असमानताएँ बढ़ी। ब्रिटिश अधिकारी और भारतीय नवाबों के बीच एक गहरी खाई थी, और आम भारतीय वर्ग को इस शोषण और असमानता का सामना करना पड़ा। इससे उग्रवाद के विचारों को बल मिला।
5. उग्रवादियों का नेतृत्व (Leadership of Extremists)
- लोकमान्य तिलक का नेतृत्व (Leadership of Bal Gangadhar Tilak): तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका नारा “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” उग्रवादियों के लिए एक प्रेरणा बना। तिलक ने भारतीयों को खुद के अधिकारों के लिए खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।
- वीर सावरकर और चंद्रशेखर आज़ाद (Veer Savarkar and Chandra Shekhar Azad): सावरकर ने अपने क्रांतिकारी विचारों से भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे युवा नेताओं ने उग्रवादी आंदोलन में भाग लिया और क्रांतिकारी कार्यों को अंजाम दिया।
6. सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता (Social and Cultural Awareness)
- राष्ट्रीयता का जागरण (Rise of Nationalism): भारत में राष्ट्रीयता का विकास हुआ और भारतीय जनता को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की समझ बढ़ी। इस जागरूकता ने उग्रवादियों को एकत्र किया, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त होने के लिए संघर्ष किया।
- सामाजिक असमानता और जातिवाद (Social Inequality and Casteism): भारतीय समाज में जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और सामाजिक असमानता ने भारतीयों को क्रोधित किया और उग्रवाद की ओर प्रेरित किया।
7. ब्रिटिश प्रशासन के दमनात्मक उपाय (Repressive British Measures)
- आधिकारिक दमन (Official Repression): ब्रिटिश सरकार ने भारतीय आंदोलनों के दमन के लिए कई कठोर उपायों को अपनाया। दमनात्मक क़ानून, गांधीजी के आंदोलन को कुचलने के लिए सामूहिक गिरफ्तारियाँ, और समाजवादियों और क्रांतिकारियों की शहादत ने भारतीय जनता को और अधिक आक्रोशित किया, और इससे उग्रवादियों को समर्थन मिला।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत में उग्रवाद का उदय विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों के परिणामस्वरूप हुआ। ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करने के लिए भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों ने आक्रामक और सशस्त्र विधियों को अपनाया। इन आंदोलनों में प्रमुख रूप से बल गंगाधर तिलक, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, और वीर सावरकर जैसे नेताओं का योगदान था। हालांकि, इन उग्रवादी आंदोलनों ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई, लेकिन इन्हें अधिकतर भारतीय जनता द्वारा अस्वीकार किया गया और ब्रिटिश शासन के प्रति एक नकारात्मक दृष्टिकोण को ही बढ़ावा दिया।
उग्रवादी युग (Extremist Phase) 1905-1920
उग्रवादी युग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण था, जो 1905 से लेकर 1920 तक चला। इस युग का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अधिक सशक्त और निर्णायक संघर्ष करना था। इस समय भारतीय राजनीति में उग्रवादी नेताओं का प्रभाव बढ़ा, जिन्होंने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। इस युग में कई प्रमुख घटनाएँ और आंदोलनों ने जन्म लिया, जिनका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1. बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) – 1905
ब्रिटिश सरकार द्वारा 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया, जिसे “फूट डालो और राज करो” की नीति के तहत किया गया। इसका उद्देश्य बंगाल के हिन्दू और मुसलमानों के बीच दरार डालना था, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य को नियंत्रित करना आसान हो सके। इस विभाजन ने भारतीय समाज में गहरी अशांति फैलाई और इसके विरोध में भारत भर में व्यापक प्रदर्शन हुए।
बंगाल विभाजन के खिलाफ उग्रवादी नेताओं ने स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) का नेतृत्व किया। इस आंदोलन ने भारतीयों में स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करने और ब्रिटिश माल का बहिष्कार करने की भावना को बढ़ावा दिया।
2. उग्रवादी नेताओं का उदय (Rise of Extremist Leaders)
इस दौर में कई प्रमुख उग्रवादी नेता उभरे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। इन नेताओं ने गांधीजी के अहिंसक आंदोलन को छोड़कर, सशस्त्र संघर्ष और क्रांतिकारी विधियों को अपनाया। इनमें प्रमुख थे:
- बाल गंगाधर तिलक: तिलक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा दिया। उन्होंने भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया और उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति पाने के लिए प्रेरित किया। उनकी पुस्तक “गिता रहस्य” और “केसरी” (पत्रिका) ने भारतीयों में राष्ट्रीयता का संचार किया।
- लाला लाजपत राय: लाला लाजपत राय ने पंजाब में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया। उन्हें अंग्रेजों ने लाठी चार्ज करके घायल किया, जो बाद में उनकी मृत्यु का कारण बना।
- बिपिन चंद्र पाल: बिपिन चंद्र पाल ने भी भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया और उन्होंने स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया।
3. स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement)
स्वदेशी आंदोलन 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ शुरू हुआ था। यह आंदोलन ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करने और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से था। इस आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट किया और ब्रिटिश सामान का बहिष्कार करने की व्यापक अपील की। इसमें “बॉयकॉट” और “स्वदेशी सामान” के उपयोग की नीतियां अपनाई गईं। यह आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे भारत में फैल गया।
4. उग्रवादी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य (Main Objective of the Extremist Movement)
उग्रवादी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था:
- ब्रिटिश शासन का विरोध और भारत को स्वतंंत्रता दिलाना।
- स्वराज्य (Self-rule) की मांग करना, जो तिलक का प्रमुख नारा था।
- ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष को बढ़ावा देना।
इस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दो ध्रुव विकसित हुए थे – एक मध्यमपंथी (Moderates) और दूसरा उग्रपंथी (Extremists)। उग्रवादी नेताओं का मानना था कि ब्रिटिश शासन को केवल अहिंसक विरोध से नहीं, बल्कि सशस्त्र संघर्ष और जन जागरूकता से ही समाप्त किया जा सकता है।
5. लाहौर कांग्रेस (Lahore Congress) – 1909
1909 में लाहौर कांग्रेस में कांग्रेस पार्टी के भीतर उग्रवादी और मध्यमपंथी नेताओं के बीच मतभेद स्पष्ट हो गए। इस समय तक मध्यमपंथियों के पास कांग्रेस पर अधिक प्रभाव था, लेकिन उग्रपंथियों ने अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आंदोलनों का समर्थन किया। इस कांग्रेस सत्र में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को संदेश दिया कि अगर वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करेंगे, तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी।
6. रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) – 1919
1919 में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित किया, जिसे “ब्लैक एक्ट” भी कहा गया। इस एक्ट के तहत भारतीयों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाला जा सकता था और उन्हें लंबी सजा दी जा सकती थी। इस काले कानून के खिलाफ महात्मा गांधी ने विरोध प्रदर्शन किया और अहमदाबाद और चंपारण जैसे स्थानों पर सत्याग्रह किया।
7. 1919 का जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)
अप्रैल 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीयों का गुस्सा और बढ़ा दिया। जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवा दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए। इस घटना ने पूरे भारत में उग्रवादियों और क्रांतिकारियों को एक नई प्रेरणा दी।
निष्कर्ष (Conclusion)
उग्रवादी युग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ दिया। इस युग ने भारतीयों को स्वराज्य की अवधारणा के प्रति जागरूक किया और उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संगठित संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उग्रवादी नेताओं की विचारधारा और कार्यों ने भारतीय समाज में क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी, जिससे आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम को तेज़ी मिली।
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