मध्यकाल में भारत पर विदेशी आक्रमण
विदेशी आक्रमणों के कारण और सिंध पर विजय:
विदेशी आक्रमणों के कारण
- राजनीतिक अस्थिरता: भारतीय उपमहाद्वीप में छोटे-छोटे राज्यों के बीच राजनीतिक अस्थिरता और आपसी संघर्ष ने विदेशी आक्रमणकारियों को अवसर प्रदान किया। मौर्य और गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में कोई मजबूत केन्द्रीय शक्ति नहीं थी।
- साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा: अरब, तुर्क और मंगोल जैसे विदेशी आक्रमणकारियों का उद्देश्य अपने साम्राज्य का विस्तार करना और भारत के आर्थिक संसाधनों पर कब्जा करना था।
- धार्मिक उद्देश्यों: इस्लामी आक्रमणकारियों ने धार्मिक प्रचार और जिहाद की भावना से प्रेरित होकर भारत पर आक्रमण किए।
- भौगोलिक निकटता: भारत की सीमाओं की कमजोरी, जैसे उत्तर-पश्चिमी दर्रे (खैबर और बोलन दर्रा), विदेशी आक्रमणों के लिए प्रवेश द्वार बने।
- आर्थिक समृद्धि: भारत की अपार धन-सम्पत्ति, जैसे सोना, चांदी, और मसालों ने आक्रमणकारियों को आकर्षित किया।
सिंध पर अरबों का आक्रमण और विजय
पृष्ठभूमि:
सिंध पर अरबों का आक्रमण उमय्यद खलीफा के समय हुआ। यह घटना मुख्यतः 7वीं शताब्दी के अंत और 8वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई। भारत और अरब के बीच पहले से व्यापारिक संबंध थे, लेकिन राजनीतिक और सैन्य संपर्क मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से स्थापित हुआ।
मुख्य कारण:
- व्यापारी हितों की रक्षा: अरब व्यापारियों के जहाजों पर समुद्री डकैतों द्वारा हमला और उनके रक्षक की असफलता एक प्रमुख कारण था। राजा दाहिर को दोषी ठहराया गया।
- सामरिक महत्व: सिंध का भौगोलिक स्थान (अरब सागर के निकट) रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था।
- धार्मिक उद्देश्यों: इस्लाम के विस्तार और जिहाद के प्रचार के तहत सिंध पर विजय करना अरबों के लिए महत्वपूर्ण था।
- आर्थिक कारण: सिंध अपने समृद्ध व्यापारिक बंदरगाहों और उर्वर भूमि के लिए प्रसिद्ध था।
आक्रमण और विजय:
- मोहम्मद बिन कासिम का नेतृत्व: मोहम्मद बिन कासिम, जो उमय्यद खलीफा का सेनापति था, ने 712 ई. में सिंध पर आक्रमण किया।
- राजा दाहिर का प्रतिरोध: सिंध के शासक राजा दाहिर ने विदेशी आक्रमणकारियों का साहसपूर्वक सामना किया, लेकिन उनकी सेना कमजोर थी। 712 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर को हराकर सिंध पर कब्जा कर लिया।
- प्रशासनिक सुधार: विजय के बाद, मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध में इस्लामी शासन की स्थापना की और स्थानीय प्रजा के प्रति सहिष्णु नीति अपनाई। उन्होंने ब्राह्मणों और किसानों को संरक्षण दिया।
प्रभाव:
- सांस्कृतिक प्रभाव: इस्लामी सभ्यता और भारतीय परंपराओं के बीच एक सांस्कृतिक मेल-जोल हुआ।
- धार्मिक परिवर्तन: इस्लाम का प्रसार सिंध और उसके आसपास के क्षेत्रों में तेजी से हुआ।
- आर्थिक परिवर्तन: अरबों ने सिंध के व्यापारिक केंद्रों को अपने व्यापार नेटवर्क में जोड़ा।
- सैन्य प्रभाव: अरबों की विजय ने उत्तर-पश्चिम भारत के अन्य क्षेत्रों पर आक्रमण के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
निष्कर्ष:
सिंध पर अरबों की विजय न केवल भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, बल्कि यह भारत में इस्लामी शासन की शुरुआत का संकेत भी थी। विदेशी आक्रमणों के कारणों और उनके परिणामों को समझना यूपीएससी की तैयारी में एक महत्वपूर्ण पहलू है।
तुर्कों का भारत पर आक्रमण
भारत पर तुर्कों का आक्रमण 11वीं और 12वीं शताब्दी में हुआ। इन आक्रमणों ने भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक ढांचे को गहराई से प्रभावित किया।
1. गज़नवी वंश का आक्रमण
- महमूद गज़नवी (971-1030 ई.):
महमूद गज़नवी ने 1000-1027 ई. के बीच भारत पर 17 बार आक्रमण किए। उनका मुख्य उद्देश्य भारत की धन-संपत्ति लूटना और इस्लाम का प्रचार करना था।- 1018 ई. में उन्होंने मथुरा, कन्नौज और थानेसर पर आक्रमण किया।
- 1025 ई. में उन्होंने गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटा।
- उनका लक्ष्य भारत में साम्राज्य स्थापित करना नहीं, बल्कि आर्थिक और धार्मिक लाभ प्राप्त करना था।
2. मोहम्मद ग़ोरी का आक्रमण
- मोहम्मद ग़ोरी (1149-1206 ई.):
ग़ोरी ने भारत में स्थायी साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया।- 1175 ई. में उसने मुल्तान और सिंध पर कब्जा किया।
- 1191 ई. में तराइन की पहली लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने उसे हराया।
- 1192 ई. में तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली और अजमेर पर कब्जा किया।
- ग़ोरी की विजय ने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी, जिसे उनके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने आगे बढ़ाया।
मंगोलों का भारत पर आक्रमण
1. मंगोल आक्रमण के कारण
- मंगोलों के नेता चंगेज़ खान (1162-1227 ई.) ने एशिया और यूरोप के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया।
- उनके साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा, आर्थिक लाभ और भारत की समृद्धि ने उन्हें आक्रमण के लिए प्रेरित किया।
2. प्रारंभिक मंगोल आक्रमण (13वीं शताब्दी)
- 1221 ई. में चंगेज़ खान ने ख्वारिज्म साम्राज्य के खिलाफ युद्ध के दौरान भारत की सीमा तक प्रवेश किया।
- सिंध के शासक इल्तुतमिश ने कूटनीतिक नीति अपनाई और मंगोलों के आक्रमण को टालने में सफल रहे।
3. बलबन और मंगोल आक्रमण
- दिल्ली सल्तनत के दौरान, मंगोल आक्रमणकारियों ने कई बार उत्तर-पश्चिमी भारत पर हमले किए।
- बलबन (1266-1287 ई.) ने मंगोलों का सामना करने के लिए एक मजबूत सेना तैयार की और सीमाओं की रक्षा की।
बाद के मंगोल हमले (13वीं–14वीं शताब्दी)
1. अलाउद्दीन खिलजी के समय
- अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) के शासनकाल में मंगोलों ने कई बार आक्रमण किए।
- 1299 ई. में मंगोल नेता कुतलुग ख्वाजा ने दिल्ली पर हमला किया, लेकिन खिलजी ने उसे हराया।
- अलाउद्दीन ने सीमाओं की रक्षा के लिए एक मजबूत सैन्य व्यवस्था बनाई और सिंध तथा पंजाब में किलेबंदी करवाई।
2. मोहम्मद बिन तुगलक के समय
- मोहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) के शासनकाल में भी मंगोल आक्रमण हुए।
- तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित कर मंगोल आक्रमण से बचने की कोशिश की।
3. तैमूर का आक्रमण (1398 ई.)
- तैमूर, जो मंगोलों से प्रभावित तुर्क नेता था, ने भारत पर 1398 ई. में आक्रमण किया।
- उसने दिल्ली में भयानक लूटपाट और नरसंहार किया।
- तैमूर का आक्रमण दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बना और भारत में अस्थिरता का दौर शुरू हुआ।
प्रभाव
- राजनीतिक: तुर्क और मंगोल आक्रमणों के बाद भारत में इस्लामी शासन स्थापित हुआ।
- आर्थिक: मंगोल और तैमूर जैसे आक्रमणकारियों ने भारत की समृद्धि को बुरी तरह प्रभावित किया।
- सांस्कृतिक: तुर्कों और मंगोलों के आक्रमण ने भारतीय और इस्लामी संस्कृति के बीच एक नया मेल-जोल शुरू किया।
- सैन्य: भारतीय शासकों को सीमाओं की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देना पड़ा।
निष्कर्ष
तुर्क और मंगोल आक्रमणों ने भारतीय इतिहास को गहराई से प्रभावित किया। तुर्कों ने स्थायी इस्लामी शासन की नींव रखी, जबकि मंगोल और तैमूर के आक्रमण भारत में विनाश और सांस्कृतिक परिवर्तन का कारण बने। यूपीएससी की तैयारी में इन आक्रमणों के कारण, प्रभाव और ऐतिहासिक महत्व को समझना आवश्यक है।
तैमूरी आक्रमण और दिल्ली पर कब्जा (1398 ई.)
तैमूर का परिचय
- तैमूर लंग (1336-1405 ई.), मध्य एशिया के समरकंद का शासक था। वह खुद को चंगेज़ खान और तुर्क वंश का उत्तराधिकारी मानता था।
- उसने मध्य एशिया, फारस, इराक और सीरिया के बड़े हिस्सों पर विजय प्राप्त की और 1398 ई. में भारत पर आक्रमण किया।
तैमूर के आक्रमण के कारण
- धन–संपत्ति की लालसा: भारत की अपार संपदा ने तैमूर को आकर्षित किया।
- धार्मिक उद्देश्य: उसने खुद को “इस्लाम का संरक्षक” घोषित किया और गैर-मुस्लिम राज्यों पर आक्रमण को जिहाद के रूप में देखा।
- राजनीतिक अस्थिरता: दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश कमजोर हो चुका था, और सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद तुगलक राजनीतिक रूप से अस्थिर था।
- सैन्य महत्त्वाकांक्षा: तैमूर भारत पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य को विस्तार देना चाहता था।
दिल्ली पर कब्जा (1398 ई.)
- तैमूर ने सिंध और पंजाब के रास्ते भारत पर आक्रमण किया।
- उसकी सेना ने हरियाणा और उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में भारी लूटपाट और विनाश किया।
- 17 दिसंबर 1398 ई. को तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया और सुल्तान महमूद तुगलक को पराजित किया।
- दिल्ली में व्यापक नरसंहार और लूटपाट हुई। लाखों लोगों को मारा गया और शहर तबाह हो गया।
प्रभाव
- दिल्ली सल्तनत की कमजोर स्थिति: तैमूर के आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत को बुरी तरह कमजोर कर दिया।
- आर्थिक संकट: तैमूर की लूटपाट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया।
- राजनीतिक अस्थिरता: तैमूर के आक्रमण के बाद देश में कई छोटे-छोटे राज्य उभर आए।
- मुगल साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त: तैमूर का वंशज बाबर बाद में भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रख सका।
बाबर का भारत पर आक्रमण और मुगल साम्राज्य की स्थापना
बाबर का परिचय
- बाबर (1483-1530 ई.) तैमूर का वंशज था। उसका असली नाम ज़हीरुद्दीन मोहम्मद था।
- वह मध्य एशिया के फरगना का शासक था, लेकिन समरकंद को खोने के बाद भारत पर आक्रमण की योजना बनाई।
भारत पर आक्रमण के कारण
- राजनीतिक अस्थिरता: दिल्ली सल्तनत में लोदी वंश कमजोर हो चुका था, और उत्तर भारत में कोई मजबूत केंद्रीय शक्ति नहीं थी।
- धन और संसाधनों की लालसा: भारत की समृद्धि ने बाबर को आकर्षित किया।
- पंजाब के निमंत्रण: पंजाब के शासक दौलत खान लोदी और मेवाड़ के राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ आमंत्रित किया।
- पैतृक दावा: बाबर ने तैमूर के वंशज होने के नाते भारत पर अधिकार जताया।
प्रमुख आक्रमण
- पानीपत की पहली लड़ाई (1526 ई.)
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- बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच लड़ी गई।
- बाबर ने तोपों और आधुनिक युद्ध तकनीकों का इस्तेमाल किया।
- लोदी की हार के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया।
- खानवा की लड़ाई (1527 ई.)
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- बाबर और राणा सांगा के बीच लड़ी गई।
- बाबर ने “गाज़ी” की उपाधि लेकर इसे धार्मिक युद्ध घोषित किया।
- राणा सांगा की हार ने बाबर को उत्तर भारत का अजेय शासक बना दिया।
- चंदेरी की लड़ाई (1528 ई.)
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- बाबर ने मालवा के मेदिनी राय को हराया।
- घाघरा की लड़ाई (1529 ई.)
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- बाबर ने बंगाल और बिहार के अफगान शासकों को पराजित किया।
बाबर के भारत पर विजय के प्रभाव
- मुगल साम्राज्य की स्थापना: पानीपत की जीत ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
- सैन्य नवाचार: बाबर ने तोपों और आधुनिक युद्ध रणनीतियों का प्रयोग किया।
- सांस्कृतिक प्रभाव: बाबर के आगमन से भारत में फारसी कला, साहित्य और स्थापत्य को बढ़ावा मिला।
- राजनीतिक एकीकरण: बाबर ने भारत के बिखरे हुए राज्यों को एक मजबूत साम्राज्य में संगठित करने की नींव रखी।
निष्कर्ष
तैमूर का आक्रमण और बाबर की विजय भारत के इतिहास में निर्णायक घटनाएं थीं। तैमूर ने दिल्ली सल्तनत को कमजोर किया, जबकि बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना कर एक नए युग की शुरुआत की। यूपीएससी की तैयारी में इन आक्रमणों के कारण, घटनाओं और प्रभावों को समझना महत्वपूर्ण है।
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