Land revenue system in british india in hindi
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति (Land Revenue Policy of British in India)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने भारत के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने के साथ-साथ भारतीय किसानों और समाज के आर्थिक ढांचे को भी पूरी तरह से बदल दिया। इस नीति का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के लिए राजस्व प्राप्त करना था, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय किसानों पर भारी करों का बोझ बढ़ गया। ब्रिटिशों ने अपनी साम्राज्यवादी जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार की भूमि कर नीतियाँ लागू की, जिनका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा।
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति के प्रमुख रूप (Major Forms of Land Revenue Policies)
1. रैयतवाड़ी प्रणाली (Ryotwari System)
यह प्रणाली मुख्यतः दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में लागू की गई थी। इस प्रणाली में किसानों को भूमि के मालिक के रूप में मान्यता दी गई थी और उन्हें सीधे सरकार को कर चुकाना पड़ता था।
- मुख्य विशेषताएँ:
- भूमि का मालिकाना हक किसानों के पास था।
- कर की राशि को किसान अपनी ज़मीन की उत्पादकता के आधार पर अदा करते थे।
- रैयतवाड़ी प्रणाली में सरकार ने भूमि कर को निश्चित और नियमित किया, जो किसानों की हालत को और भी कठिन बना देता था।
2. जमींदारी प्रणाली (Zamindari System)
यह प्रणाली बंगाल, उत्तर भारत, बिहार और उड़ीसा में लागू की गई। इस प्रणाली के तहत जमींदारों को भूमि के स्वामी के रूप में स्थापित किया गया और उन्होंने किसानों से भूमि का पट्टा लिया।
- मुख्य विशेषताएँ:
- जमींदारों को भूमि का मालिक माना गया और वे किसानों से राजस्व एकत्र करते थे।
- जमींदारों के लिए यह एक संचयी प्रणाली थी, जिसमें वे सरकार को राजस्व देने के बाद अतिरिक्त आय प्राप्त करते थे।
- किसानों को जमींदारों के शोषण का सामना करना पड़ता था, क्योंकि जमींदारों ने अक्सर किसानों से अधिक कर वसूला।
3. महलवाड़ी प्रणाली (Mahalwari System)
यह प्रणाली मुख्यतः उत्तर पश्चिमी भारत और गंगा घाटी के इलाकों में लागू की गई थी। इसमें गाँवों या महल को करदाता के रूप में मान्यता दी जाती थी और कर को गाँव या महल के पूरे समुदाय से लिया जाता था।
- मुख्य विशेषताएँ:
- कर का भुगतान गाँवों के सामूहिक रूप से होता था।
- यह प्रणाली अधिक सामूहिक जिम्मेदारी पर आधारित थी।
- इसके तहत किसानों और जमींदारों के बीच सामूहिक समझौतों के माध्यम से कर वसूला जाता था।
भूमि कर नीति के प्रभाव (Impact of Land Revenue Policies)
1. किसानों पर आर्थिक बोझ
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने भारतीय किसानों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ डाला। इन नीतियों के तहत किसानों से अत्यधिक कर वसूला जाता था, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। किसानों को उत्पादकता के बावजूद भूमि कर का भारी भुगतान करना पड़ता था।
2. भूखमरी और विद्रोह
कृषि क्षेत्र में उथल-पुथल और करों के बोझ के कारण कई जगहों पर भूखमरी और अशांति का माहौल बन गया। जैसे, बंगाल का अकाल (1770) इसका एक उदाहरण है, जिसमें लाखों लोग भूख के कारण मर गए। इसके साथ ही कई किसान विद्रोह (जैसे चंपारण, काकतीय, आदि) भी हुए, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे।
3. जमींदारों और पूंजीपतियों का उत्थान
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने जमींदारों और पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाया, जबकि छोटे और मध्यवर्गीय किसान विनाश के कगार पर आ गए। जमींदारों के पास भूमि का कब्जा था, जो उन्हें राजस्व का अधिक हिस्सा दिलवाता था।
4. कृषि उत्पादन में गिरावट
भूमि कर नीति के कारण किसानों पर अत्यधिक करों का बोझ पड़ा, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई। किसानों को उत्पादन बढ़ाने के बजाय कर चुकाने पर अधिक ध्यान देना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप, कृषि में निवेश कम हुआ और खेती के तकनीकी तरीके में सुधार नहीं हो सका।
5. साम्राज्यवादी हितों को बढ़ावा
ब्रिटिश सरकार ने भूमि कर को एक स्रोत के रूप में देखा, जिससे साम्राज्य के लिए राजस्व अर्जित किया जा सके। इसके माध्यम से भारत से संपत्ति का शोषण किया गया और ब्रिटिश शासन को मजबूत किया गया।
निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने भारतीय किसानों पर गहरा आर्थिक दबाव डाला और भारतीय कृषि क्षेत्र को नष्ट किया। जहां एक ओर इस नीति ने ब्रिटिश सरकार के लिए राजस्व जुटाने में मदद की, वहीं दूसरी ओर इसने भारतीय किसानों को गरीबी, शोषण, और संघर्ष में डाल दिया। इन नीतियों ने भारतीय समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ बढ़ाईं, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण कारण बनीं।
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति के प्रभाव (Implications of Land Revenue Policy of British)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति का भारतीय समाज, कृषि, और अर्थव्यवस्था पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ा। यह नीति मुख्यतः भारतीय किसानों को शोषित करने और ब्रिटिश साम्राज्य के लिए राजस्व अर्जित करने का एक तरीका थी। इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
1. भारतीय किसानों पर आर्थिक दबाव (Economic Burden on Farmers)
ब्रिटिश भूमि कर नीति ने भारतीय किसानों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ डाला।
- राजस्व वसूली का तरीका इतना कठोर था कि किसान अपने उत्पादन से अधिक कर चुकाने में असमर्थ थे।
- किसानों को कर्ज के जाल में फँसाया गया और अक्सर उनके खेत बेचने की नौबत आई।
- यह नीति भारतीय किसानों को गरीबी और आर्थिक संकट में धकेलने का कारण बनी।
2. कृषि उत्पादन में गिरावट (Decline in Agricultural Production)
भूमि करों के अत्यधिक बोझ ने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया।
- निवेश की कमी, संवर्धन की अपर्याप्तता और प्राकृतिक आपदाओं के कारण कृषि में गिरावट आई।
- भूमि सुधार की कमी के कारण किसानों के पास तकनीकी उपकरण, उर्वरक या जल संसाधनों की कमी थी।
- इस स्थिति के परिणामस्वरूप भारत की कृषि उत्पादकता में गिरावट आई और देश में भुखमरी का संकट उत्पन्न हुआ।
3. सामाजिक असमानताएँ (Social Inequalities)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने सामाजिक असमानताएँ बढ़ाईं।
- जमींदारों और भूमि मालिकों को भारी लाभ हुआ, जबकि किसान और मजदूर कठिन परिस्थितियों में जीने को मजबूर हो गए।
- किसान शोषण के शिकार हो गए क्योंकि उन्हें ज़मींदारों से अत्यधिक कर चुकाने पड़ते थे।
- सामाजिक वर्गों के बीच में गहरी खाई उत्पन्न हुई, जो बाद में किसान विद्रोहों और राष्ट्रीय आंदोलनों का कारण बनीं।
4. विद्रोह और संघर्ष (Rebellions and Struggles)
ब्रिटिश भूमि कर नीति ने भारतीय समाज में असंतोष और विद्रोह को जन्म दिया।
- कई किसान आंदोलन और विद्रोह जैसे चंपारण आंदोलन (1917), काकतीय विद्रोह (1857) और रायचूर विद्रोह (1830) सामने आए, जो भूमि कर नीति के खिलाफ थे।
- किसानों ने अपने अधिकारों और जीवन यापन की परिस्थितियों के लिए संघर्ष किया।
- यह आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने, क्योंकि भारतीय जनता ने महसूस किया कि ब्रिटिश शासकों के खिलाफ संघर्ष केवल स्वतंत्रता तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए भी था।
5. भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव (Long-term Impact on Indian Economy)
ब्रिटिश भूमि कर नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को साम्राज्यवादी हितों के अधीन कर दिया।
- स्थानीय उद्योगों और कृषि प्रणाली का शोषण किया गया, जिससे भारत आर्थिक दृष्टि से पीछे रह गया।
- कृषि निर्यात पर जोर दिया गया, जिससे भारतीय बाजारों में उत्पादन के लिए सीमित संसाधन बच गए।
- ब्रिटिश सरकार ने राजस्व के लिए कृषि क्षेत्र का दोहन किया, जिससे किसानों का जीवन और मूल्य घटता गया।
6. जमींदारी व्यवस्था का प्रभाव (Impact of Zamindari System)
ब्रिटिशों ने जमींदारी व्यवस्था को लागू किया, जिसमें जमींदारों को भूमि का मालिक मानते हुए उन्हें कर वसूलने का अधिकार दिया गया।
- जमींदारों ने किसानों से अत्यधिक कर वसूला, जो किसानों की खुशहाली के लिए हानिकारक था।
- किसानों की स्थिति में सुधार के बजाय जमींदारों के शोषण से किसानों का उत्पीड़न और बढ़ा।
- जमींदारी प्रणाली ने सामाजिक विभाजन को बढ़ावा दिया और अत्यधिक भेदभाव को जन्म दिया।
7. आर्थिक शोषण और साम्राज्यवादी हित (Economic Exploitation and Imperialist Interests)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति का मुख्य उद्देश्य था राजस्व प्राप्त करना और साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति करना।
- इस नीति ने भारतीय संसाधनों का साम्राज्यवादी शोषण किया, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य को लाभ हुआ और भारतीय जनता को कर्ज और गरीबी का सामना करना पड़ा।
- यह नीति भारतीयों के लिए समानता और स्वतंत्रता की राह में एक बड़ी बाधा बन गई थी।
निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रिटिशों की भूमि कर नीति ने भारत के कृषि और सामाजिक ढांचे को स्थायी रूप से प्रभावित किया। इस नीति के कारण भारतीय किसानों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ा, कृषि उत्पादन में गिरावट आई, और सामाजिक असमानताएँ बढ़ीं। इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में विद्रोह और संघर्ष का माहौल बना, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को बल प्रदान किया। इस नीति के दीर्घकालिक प्रभावों ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को साम्राज्यवादी शोषण के रास्ते में डाल दिया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार आंदोलनों को प्रेरणा मिली।
ब्रिटिश भूमि राजस्व प्रणाली पर PYQs
प्रश्न) अठारहवीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक भारत में अकालों में अचानक वृद्धि क्यों हुई? कारण बताइए। (UPSC Mains 2022)
प्रश्न) अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक भारत में अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों के विभिन्न पहलुओं की आलोचनात्मक जाँच करें। (UPSC Mains 2014)
प्रश्न) स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है? (UPSC Prelims 2019)
a) सीलिंग कानून पारिवारिक जोतों पर लक्षित थे न कि व्यक्तिगत जोतों पर।
b) भूमि सुधारों का मुख्य उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि भूमि उपलब्ध कराना था।
c) इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती प्रमुख रूप से खेती के रूप में होने लगी।
d) भूमि सुधारों ने सीलिंग सीमा में कोई छूट नहीं दी।
उत्तर: (b)
प्रश्न) निम्नलिखित में से कौन ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में रैयतवारी बंदोबस्त की शुरूआत से जुड़ा था? (यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2017)
लॉर्ड कॉर्नवालिस
अलेक्जेंडर रीड
थॉमस मुनरो
नीचे दिए गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1
b) केवल 1 और 3
c) केवल 2 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
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