List of Governors Generals of Bengal and India notes in hindi
बंगाल और भारत के गवर्नर–जनरल की सूची
- गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल (Governor-General of Bengal)
गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा स्थापित किया गया था। पहले यह बंगाल का गवर्नर हुआ करता था, लेकिन बाद में यह भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों को भी नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त कर गया।
गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल (1773 से 1833 तक):
- वॉरेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings)
-
- कार्यकाल: 1773-1785
- उन्होंने सबसे पहले गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल के रूप में काम किया और भारतीय प्रशासन में कई सुधार किए।
- फ्रांसिस ऐस्से (Sir John Macpherson)
-
- कार्यकाल: 1785-1786 (अंतरिम गवर्नर-जनरल)
- फ्रांसिस ऐस्से ने अस्थायी गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया, जबकि गवर्नर-जनरल की स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी।
- लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (Lord Cornwallis)
-
- कार्यकाल: 1786-1793
- उन्होंने बंगाल में प्रशासनिक और न्यायिक सुधार किए और “कोर्नवॉलिस न्यायिक सुधार” को लागू किया।
- लॉर्ड जॉर्ज सटन (Lord George Sutherland)
-
- कार्यकाल: 1793-1798
- प्रशासनिक सुधारों को लागू करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
- लॉर्ड वेल्सली (Lord Wellesley)
-
- कार्यकाल: 1798-1805
- उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्धों का नेतृत्व किया और “वेल्सली की नीति“ के तहत भारतीय राज्य सरकारों के खिलाफ ब्रिटिश शक्ति को मजबूत किया।
गवर्नर–जनरल ऑफ इंडिया (1833 से 1858 तक):
गवर्नर-जनरल ऑफ Bengal के पद का नाम बदलकर गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया रखा गया था, जब 1833 में चार्टर एक्ट लागू हुआ।
- लॉर्ड विलियम बेंटिक (Lord William Bentinck)
-
- कार्यकाल: 1828-1835
- उन्होंने भारत में कई सामाजिक सुधार किए, जैसे सती प्रथा को समाप्त करना और हिन्दी और उर्दू को सरकारी भाषा के रूप में प्रमोट करना।
- लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie)
-
- कार्यकाल: 1848-1856
- उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए “लॉर्ड डलहौजी की नीति“ को लागू किया, जिसमें भारतीय राज्यों का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल करना शामिल था।
भारत के गवर्नर–जनरल (1858 से 1947 तक)
1858 में भारत सरकार अधिनियम के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और ब्रिटिश क्राउन के तहत भारत का प्रशासन सीधे ब्रिटिश सरकार के हाथों में आ गया। इसके बाद गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती थी।
- लॉर्ड कैनिंग (Lord Canning)
-
- कार्यकाल: 1856-1862
- 1857 के विद्रोह के बाद उन्होंने ब्रिटिश शासन की पुनर्संरचना की। वे पहले गवर्नर-जनरल थे जब 1857 के बाद भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के अधीन हुआ।
- लॉर्ड एल्गिन (Lord Elgin)
-
- कार्यकाल: 1862-1863
- ब्रिटिश साम्राज्य के लाभ के लिए उन्होंने कई कड़े निर्णय लिए।
- लॉर्ड रिपन (Lord Ripon)
-
- कार्यकाल: 1880-1884
- उन्होंने भारतीयों के लिए कुछ सुधार किए, जैसे स्थानीय स्वराज (Local self-government) को बढ़ावा देना।
- लॉर्ड हार्डिंग (Lord Harding)
-
- कार्यकाल: 1910-1916
- उन्होंने 1911 में दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम के भारत आने का आयोजन किया।
- लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten)
-
- कार्यकाल: 1947
- वह अंतिम गवर्नर-जनरल थे, जिनके नेतृत्व में भारत को स्वतंत्रता मिली और भारत का विभाजन हुआ।
निष्कर्ष:
भारत में गवर्नर-जनरल का पद एक महत्वपूर्ण और सत्ता से भरा हुआ था। यह पद अंग्रेजों के शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति का प्रतीक था। गवर्नर-जनरलों ने ब्रिटिश शासन की नीति को लागू किया और भारत के प्रशासन में कई बड़े बदलाव किए।
गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल और भारत: कालक्रम, उपलब्धियां और सुधार
गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल (1773-1833)
रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 के तहत गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद बनाया गया। इस काल में गवर्नर-जनरल का कार्यक्षेत्र मुख्यतः बंगाल तक सीमित था, लेकिन उनकी नीतियों और सुधारों का प्रभाव पूरे भारत पर पड़ा।
1. वॉरेन हेस्टिंग्स (1773-1785)
- कालक्रम: बंगाल के पहले गवर्नर-जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- आधुनिक प्रशासन की नींव: कंपनी के शासन को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासनिक ढांचा तैयार किया।
- रेजिडेंसी सिस्टम: भारतीय राज्यों में ब्रिटिश रेजिडेंट की नियुक्ति की।
- सुधार: दीवानी और फौजदारी न्यायालयों में सुधार किया।
2. लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (1786-1793)
- कालक्रम: वॉरेन हेस्टिंग्स के बाद दूसरा प्रमुख गवर्नर-जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- परमानेंट सेटलमेंट (1793): जमींदारी व्यवस्था के तहत राजस्व संग्रहण को स्थिर किया।
- न्यायिक सुधार: भारतीयों को उच्च न्यायालय में स्थान देने से मना किया।
- सैन्य सुधार: सेना में अनुशासन लागू किया।
3. लॉर्ड वेल्सली (1798-1805)
- कालक्रम: ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का महत्वपूर्ण काल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- सब्सिडियरी एलायंस: भारतीय राज्यों को सहायक संधियों के माध्यम से ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
- मैसूर का पतन: चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799) में टीपू सुल्तान को हराया।
- फोर्ट विलियम कॉलेज: कलकत्ता में ब्रिटिश अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए कॉलेज की स्थापना।
4. लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-1823)
- कालक्रम: चार्टर एक्ट, 1813 के बाद पहला महत्वपूर्ण गवर्नर-जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- पिंडारी युद्ध: पिंडारियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की।
- अंग्रेजों का उत्तर भारत में प्रभाव: मराठों के खिलाफ तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध (1817-1818) में जीत।
- प्रशासनिक सुधार: भूमि कर प्रणाली में बदलाव किया।
गवर्नर–जनरल ऑफ इंडिया (1833-1858)
चार्टर एक्ट, 1833 के तहत गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया में बदल दिया गया, और इसे पूरे भारत के प्रशासन का अधिकार मिला।
1. लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-1835)
- कालक्रम: भारत के पहले गवर्नर-जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- सती प्रथा का अंत (1829): सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
- ठगी प्रथा का उन्मूलन: ठग समूहों के खिलाफ अभियान चलाया।
- शिक्षा सुधार: अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
- प्रशासनिक सुधार: भारतीय न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
2. लॉर्ड डलहौजी (1848-1856)
- कालक्रम: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रसिद्ध।
- मुख्य उपलब्धियां:
- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स: गोद लेने के अधिकार को समाप्त कर भारतीय राज्यों का विलय किया।
- रेलवे, टेलीग्राफ और डाक: भारत में आधुनिक परिवहन और संचार की शुरुआत की।
- शिक्षा सुधार: वुड्स डिस्पैच (1854) लागू किया।
- प्रशासनिक सुधार: सैन्य और राजस्व सुधार किए।
गवर्नर–जनरल और वायसराय (1858-1947)
भारत सरकार अधिनियम, 1858 के बाद गवर्नर-जनरल को वायसराय का दर्जा दिया गया।
1. लॉर्ड कैनिंग (1856-1862)
- कालक्रम: पहले वायसराय।
- मुख्य उपलब्धियां:
- 1857 का विद्रोह: विद्रोह के बाद भारत में ब्रिटिश शासन को पुनर्गठित किया।
- भारत सरकार अधिनियम, 1858: ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया।
2. लॉर्ड रिपन (1880-1884)
- कालक्रम: भारतीय सुधारों के लिए प्रसिद्ध।
- मुख्य उपलब्धियां:
- स्थानीय स्वराज: नगर पालिकाओं और जिला बोर्डों को स्वायत्तता दी।
- वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, 1882: प्रेस की स्वतंत्रता दी।
- शिक्षा सुधार: हंटर कमीशन (1882) की स्थापना की।
3. लॉर्ड कर्जन (1899-1905)
- कालक्रम: विवादास्पद सुधारों के लिए प्रसिद्ध।
- मुख्य उपलब्धियां:
- बंगाल विभाजन (1905): प्रशासनिक कारणों से बंगाल को विभाजित किया, जिसने व्यापक विरोध को जन्म दिया।
- पुरातत्व विभाग की स्थापना: भारतीय स्मारकों और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए।
- शिक्षा सुधार: विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 लागू किया।
4. लॉर्ड माउंटबेटन (1947)
- कालक्रम: भारत के अंतिम वायसराय।
- मुख्य उपलब्धियां:
- भारत का विभाजन: भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन।
- भारत की स्वतंत्रता: 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।
निष्कर्ष
गवर्नर-जनरल और वायसराय ने भारत में प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू किया। उनके कार्यों ने भारत में आधुनिक प्रशासन, शिक्षा और बुनियादी ढांचे की नींव रखी। हालांकि, कई नीतियों ने भारतीय समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी डाला और स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार की।
बंगाल के गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव (Robert Clive)
रॉबर्ट क्लाइव (1725-1774) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक प्रमुख अधिकारी थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें भारतीय इतिहास में बंगाल के प्रथम ब्रिटिश गवर्नर और प्लासी युद्ध के नायक के रूप में जाना जाता है।
प्रारंभिक जीवन और भारत आगमन
रॉबर्ट क्लाइव का जन्म 29 सितंबर 1725 को इंग्लैंड में हुआ था। उन्होंने 1744 में ईस्ट इंडिया कंपनी में एक लिपिक (Clerk) के रूप में अपनी सेवा शुरू की। जल्द ही उन्होंने भारतीय राजनीति और सैन्य मामलों में रुचि ली और अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण एक सैन्य अधिकारी के रूप में ख्याति प्राप्त की।
प्लासी का युद्ध (1757)
- पृष्ठभूमि: बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकालने का प्रयास किया, लेकिन अंग्रेजों की साजिशों और स्थानीय असंतोष के कारण नवाब कमजोर हो गया।
- युद्ध: 23 जून 1757 को क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों और सिराजुद्दौला की सेनाओं के बीच प्लासी का युद्ध हुआ।
- परिणाम:
- रॉबर्ट क्लाइव ने नवाब को हराकर बंगाल पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित किया।
- बंगाल के राजस्व का अधिकार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मिला।
- इस विजय के बाद अंग्रेजों की शक्ति उत्तर भारत में भी बढ़ने लगी।
बंगाल के गवर्नर के रूप में कार्यकाल (1757-1760)
1757 में प्लासी युद्ध के बाद रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं और नीतियां सामने आईं:
- दोहरी शासन प्रणाली (Dual Government):
-
- क्लाइव ने बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली लागू की। इसके तहत:
- प्रशासनिक अधिकार नवाब के पास थे।
- लेकिन राजस्व वसूली और राजनीतिक शक्ति ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में थी।
- यह व्यवस्था भ्रष्टाचार और शोषण को बढ़ावा देने वाली साबित हुई।
- क्लाइव ने बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली लागू की। इसके तहत:
- दीवानी अधिकार प्राप्ति (1765):
-
- क्लाइव ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व संग्रहण का अधिकार) प्राप्त किया।
- इससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारी आर्थिक लाभ हुआ और कंपनी भारत में प्रमुख शक्ति बन गई।
- सैन्य सुधार:
-
- बंगाल में ब्रिटिश सेना को संगठित और मजबूत किया।
- कंपनी की सैन्य शक्ति में वृद्धि के लिए उन्होंने स्थानीय भारतीय सैनिकों को भर्ती किया।
- भ्रष्टाचार का मुकाबला:
-
- क्लाइव ने कंपनी के अधिकारियों के बीच फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए।
- उन्होंने क्लाइव फंड की स्थापना की, जिसमें अधिकारियों की अतिरिक्त आय पर रोक लगाई गई।
द्वितीय आगमन और बंगाल के गवर्नर का कार्यकाल (1765-1767)
- 1765 में रॉबर्ट क्लाइव एक बार फिर बंगाल के गवर्नर बनकर आए।
- उन्होंने कंपनी के प्रशासन को सुदृढ़ किया और व्यापार पर नियंत्रण बढ़ाया।
- उनका मुख्य उद्देश्य था कंपनी के आर्थिक हितों की रक्षा और ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार।
क्लाइव की नीतियों के प्रभाव
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
-
- क्लाइव की नीतियों ने बंगाल की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
- भारी कर वसूली और व्यापार पर एकाधिकार के कारण किसानों और व्यापारियों का शोषण बढ़ा।
- राजनीतिक स्थायित्व:
-
- प्लासी और बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने भारत में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर ली।
- उनकी नीतियों ने अन्य भारतीय राज्यों को भी अंग्रेजों के अधीन आने पर मजबूर कर दिया।
- भारतीय समाज पर प्रभाव:
-
- क्लाइव की दोहरी शासन प्रणाली के कारण प्रशासन में अराजकता फैल गई।
- बंगाल में 1770 के भयंकर अकाल का एक बड़ा कारण कंपनी की शोषणकारी नीतियां थीं।
अंतिम जीवन और मृत्यु
- रॉबर्ट क्लाइव 1767 में इंग्लैंड लौट गए।
- उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अत्यधिक धन अर्जित करने के आरोप लगाए गए।
- मानसिक तनाव और आलोचनाओं के कारण 22 नवंबर 1774 को उन्होंने आत्महत्या कर ली।
निष्कर्ष
रॉबर्ट क्लाइव भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के मुख्य वास्तुकार माने जाते हैं। उनकी विजय और नीतियों ने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव रखी। हालांकि, उनकी नीतियां भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित हुईं। उनके कार्यकाल ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एक नए युग की शुरुआत की।
गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल: भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश शासन की शुरुआत
रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 के माध्यम से गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद बनाया गया। यह पद बंगाल, बिहार और उड़ीसा के साथ-साथ भारत के अन्य क्षेत्रों में ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित करने के लिए था। बंगाल के गवर्नर-जनरल का कार्यकाल 1773 से 1833 तक रहा, जब इसे गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया में परिवर्तित कर दिया गया।
गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल की सूची, उपलब्धियां और सुधार
1. वॉरेन हेस्टिंग्स (1773-1785)
- पहला गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- प्रशासनिक सुधार: बंगाल में न्यायिक और राजस्व प्रणाली को व्यवस्थित किया।
- रेजिडेंसी सिस्टम: भारतीय राज्यों में ब्रिटिश रेजिडेंट की स्थापना।
- पहला महाभियोग: भ्रष्टाचार के आरोपों में इंग्लैंड में उनके खिलाफ महाभियोग चलाया गया।
2. सर जॉन मैकफर्सन (1785-1786)
- कार्यकाल: अंतरिम गवर्नर-जनरल।
- उन्होंने प्रशासन को स्थिर रखने का प्रयास किया।
3. लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (1786-1793)
- मुख्य उपलब्धियां:
- परमानेंट सेटलमेंट: जमींदारी प्रथा के तहत भूमि राजस्व व्यवस्था को स्थिर किया।
- न्यायिक सुधार: प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयों के प्रवेश पर रोक लगाई।
- सैन्य सुधार: कंपनी की सेना को संगठित किया।
4. सर जॉन शोर (1793-1798)
- कार्यकाल: शांतिपूर्ण प्रशासन पर ध्यान केंद्रित।
- मुख्य योगदान:
- “नॉन-इंटरवेंशन पॉलिसी” अपनाई।
- राजस्व प्रशासन को मजबूत किया।
5. लॉर्ड वेल्सली (1798-1805)
- मुख्य उपलब्धियां:
- सब्सिडियरी एलायंस (सहायक संधि): भारतीय राज्यों को ब्रिटिश अधीनता में लाने का प्रयास।
- चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799): टीपू सुल्तान को हराकर मैसूर को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
- फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना (1800)।
6. सर जॉर्ज बार्लो (1805-1807)
- कार्यकाल: आर्थिक बचत पर जोर।
- नीतियों के कारण असंतोष और विद्रोह।
7. लॉर्ड मिंटो प्रथम (1807-1813)
- मुख्य योगदान:
- फ्रांसीसियों के खिलाफ ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा।
- 1813 का चार्टर एक्ट: व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को समाप्त किया।
8. लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-1823)
- मुख्य उपलब्धियां:
- पिंडारी युद्ध और तीसरा एंग्लो-मराठा युद्ध (1817-1818)।
- भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित।
- भूमि सुधार और राजस्व प्रणाली में बदलाव।
9. लॉर्ड एमहर्स्ट (1823-1828)
- मुख्य घटनाएं:
- पहले एंग्लो-बर्मी युद्ध (1824-1826)।
- असम और अराकान पर ब्रिटिश नियंत्रण।
10. लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-1833)
- अंतिम गवर्नर–जनरल ऑफ बंगाल।
- मुख्य सुधार:
- सती प्रथा का उन्मूलन (1829)।
- ठगी प्रथा का उन्मूलन।
- अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का प्रचार।
- स्थानीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहन।
निष्कर्ष
गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का कार्यकाल भारतीय प्रशासन के आधुनिक स्वरूप की नींव रखने वाला था। इन गवर्नर-जनरल्स की नीतियों और सुधारों ने ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति को मजबूत किया, लेकिन भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। 1833 के बाद, गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद समाप्त कर इसे गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया में बदल दिया गया।
गवर्नर–जनरल ऑफ इंडिया (1833-1858)
चार्टर एक्ट, 1833 के तहत गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का पद समाप्त कर इसे गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया में परिवर्तित कर दिया गया। इस पद का उद्देश्य पूरे भारत पर ब्रिटिश प्रशासन का प्रभावी नियंत्रण स्थापित करना था। गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया का कार्यकाल 1833 से 1858 तक रहा, जब भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया।
गवर्नर–जनरल ऑफ इंडिया की सूची, उपलब्धियां और सुधार
1. लॉर्ड विलियम बेंटिक (1833-1835)
- भारत के पहले गवर्नर–जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- सती प्रथा का उन्मूलन (1829): सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
- ठगी प्रथा का अंत: ठगों के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया।
- शिक्षा सुधार:
- अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया।
- कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना।
- न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं का उपयोग शुरू किया।
2. सर चार्ल्स मेटकॉफ (1835-1836)
- कार्यकाल: एक अंतरिम गवर्नर-जनरल।
- मुख्य उपलब्धियां:
- प्रेस की स्वतंत्रता: प्रेस पर लगे प्रतिबंधों को हटाया।
- “लिबरेटर ऑफ द इंडियन प्रेस” के रूप में जाने गए।
3. लॉर्ड ऑकलैंड (1836-1842)
- मुख्य घटनाएं:
- पहला एंग्लो–अफगान युद्ध (1839-1842): अफगानिस्तान में ब्रिटिश हस्तक्षेप विफल रहा।
- सिंधु नदी के जलमार्गों का विकास।
4. लॉर्ड एलेनबरो (1842-1844)
- मुख्य उपलब्धियां:
- अफगानिस्तान से वापसी: पहला अफगान युद्ध समाप्त किया।
- सिंध का अधिग्रहण (1843): चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में सिंध पर कब्जा।
- सोमनाथ मंदिर के ध्वज की ब्रिटेन वापसी।
5. लॉर्ड हार्डिंग प्रथम (1844-1848)
- मुख्य घटनाएं:
- पहला सिख युद्ध (1845-1846): सिखों को हराकर अंग्रेजों ने पंजाब के कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण किया।
- भारत में रेलवे और टेलीग्राफ की शुरुआत।
6. लॉर्ड डलहौजी (1848-1856)
- मुख्य उपलब्धियां:
- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स:
- गोद लेने के अधिकार को समाप्त कर कई भारतीय रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
- सतारा, झांसी, नागपुर और अवध का विलय।
- आधुनिक परिवहन और संचार:
- भारत में पहली रेलवे लाइन (1853) मुंबई से ठाणे तक शुरू हुई।
- टेलीग्राफ और डाक सेवाओं का विकास।
- शिक्षा सुधार:
- वुड्स डिस्पैच (1854): आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी।
- प्रशासनिक सुधार:
- विभिन्न क्षेत्रों में ब्रिटिश प्रशासन को मजबूत किया।
- भारतीय राज्यों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए सख्त नीतियां अपनाईं।
- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स:
7. लॉर्ड कैनिंग (1856-1858)
- अंतिम गवर्नर–जनरल ऑफ इंडिया।
- मुख्य घटनाएं:
- 1857 का विद्रोह:
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले बड़े विद्रोह का सामना किया।
- विद्रोह को दबाने के लिए कड़े कदम उठाए।
- भारत सरकार अधिनियम, 1858:
- ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया।
- गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर वायसराय का पद बनाया गया।
- 1857 का विद्रोह:
निष्कर्ष
गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया का कार्यकाल भारत में ब्रिटिश प्रशासन के विस्तार और आधुनिकीकरण का युग था। इस दौरान भारत में रेलवे, टेलीग्राफ और आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव पड़ी। हालांकि, अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों और आक्रामक विस्तारवाद ने भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। 1858 में इस पद को समाप्त कर वायसराय ऑफ इंडिया का पद बनाया गया, जो ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था।
प्रश्न और उनके उत्तर:
प्रीलिम्स प्रश्न:
Q1. उस समय जब नेपोलियन के प्रभाव से यूरोप के साम्राज्य टूट रहे थे, भारत में किस गवर्नर-जनरल ने ब्रिटिश झंडा ऊँचा रखा? [1999]
- उत्तर: (c) लॉर्ड वेलेजली
- व्याख्या:
- नेपोलियन के समय, यूरोप में कई साम्राज्य कमजोर हो रहे थे, लेकिन भारत में लॉर्ड वेलेजली ने ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत किया।
- उन्होंने सहायक संधि प्रणाली (Subsidiary Alliance) लागू की, जिसके तहत भारतीय रियासतें ब्रिटिश नियंत्रण में आ गईं।
- चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में उन्होंने टीपू सुल्तान को हराया और मैसूर पर ब्रिटिश अधिकार स्थापित किया।
Q2. ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र का अंतिम प्रमुख विस्तार किस गवर्नर-जनरल के समय में हुआ? [2000]
- उत्तर: (b) लॉर्ड डलहौजी
- व्याख्या:
- लॉर्ड डलहौजी के समय में डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (गोद की नीति) के तहत कई भारतीय रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
- सतारा, झांसी, नागपुर और अवध जैसे राज्यों को ब्रिटिश नियंत्रण में ले लिया गया।
- यह ब्रिटिश साम्राज्य का भारत में सबसे बड़ा क्षेत्रीय विस्तार था।
Q3. सिपाही विद्रोह (1857) के समय भारत का गवर्नर-जनरल कौन था? [2006]
- उत्तर: (a) लॉर्ड कैनिंग
- व्याख्या:
- लॉर्ड कैनिंग 1857 के विद्रोह के दौरान गवर्नर-जनरल थे।
- उन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए और भारत सरकार अधिनियम, 1858 के तहत ब्रिटिश शासन को ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया।
- इसके बाद उन्हें भारत का पहला वायसराय बनाया गया।
Q4. निम्नलिखित में से किस गवर्नर-जनरल ने भारत में “कवेनेंटेड सिविल सर्विस” की स्थापना की, जिसे बाद में “इंडियन सिविल सर्विस” के नाम से जाना गया? [2010]
- उत्तर: (c) लॉर्ड कॉर्नवालिस
- व्याख्या:
- लॉर्ड कॉर्नवालिस ने भारत में कवेनेंटेड सिविल सर्विस की स्थापना की।
- उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं को कुशल और संगठित बनाने के लिए सुधार किए।
- भारतीयों को उच्च प्रशासनिक पदों से बाहर रखा गया।
- इसे बाद में “इंडियन सिविल सर्विस (ICS)” के नाम से जाना गया।
मेन्स प्रश्न:
- “कई मायनों में, लॉर्ड डलहौजी आधुनिक भारत के संस्थापक थे।” व्याख्या करें। [2013]
उत्तर का मुख्य बिंदु:
- परिवहन और संचार में सुधार:
-
- भारत में पहली रेलवे लाइन (1853) मुंबई से ठाणे के बीच शुरू की।
- टेलीग्राफ और डाक सेवाओं का विकास।
- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (गोद की नीति):
-
- भारतीय रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए लागू किया गया।
- सतारा, झांसी, नागपुर और अवध ब्रिटिश शासन में शामिल हुए।
- शिक्षा सुधार:
-
- वुड्स डिस्पैच (1854) के तहत आधुनिक शिक्षा प्रणाली लागू की।
- प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा का ढांचा तैयार किया।
- प्रशासनिक सुधार:
-
- राजस्व प्रणाली को सुव्यवस्थित किया।
- थानों और जिला स्तर पर प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया।
- आधुनिक भारत की नींव:
-
- परिवहन, संचार, शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में डलहौजी के सुधारों ने आधुनिक भारत की नींव रखी।
- हालांकि उनकी नीतियों ने भारतीय समाज में असंतोष भी पैदा किया, जो 1857 के विद्रोह का एक कारण बना।
निष्कर्ष:
लॉर्ड डलहौजी की नीतियां ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत करने के उद्देश्य से थीं, लेकिन इनसे भारत में आधुनिक बुनियादी ढांचे और प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई। इसीलिए उन्हें “आधुनिक भारत का संस्थापक” कहा जाता है।
FAQ