Mahatma Gandhi’s Movements notes
महात्मा गांधी का भारत आगमन
महात्मा गांधी का भारत आगमन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनका आगमन भारतीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत का प्रतीक था।
भारत आगमन की पृष्ठभूमि
महात्मा गांधी ने अपनी प्रारंभिक राजनीतिक यात्रा दक्षिण अफ्रीका में बिताई थी, जहाँ उन्होंने भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक लंबा संघर्ष किया। 1915 में दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद उन्होंने भारत में अपनी सक्रिय भूमिका शुरू की। गांधी जी का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता दिलाना था।
महात्मा गांधी का आगमन (1915)
गांधी जी 9 जनवरी 1915 को वापी, गुजरात के बंदरगाह पर भारत आए। उनका स्वागत भारतीय जनता ने जोरदार ढंग से किया। उन्होंने पहले अहमदाबाद और फिर वर्धा में अपने कार्यों को शुरू किया।
गांधी जी का उद्देश्य
गांधी जी का उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जागरूक करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था। उन्होंने अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी आंदोलन जैसे सिद्धांतों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनाया।
महात्मा गांधी का प्रभाव
- स्वदेशी आंदोलन:
गांधी जी ने स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ावा दिया और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। - अहिंसा और सत्याग्रह:
गांधी जी ने अहिंसा के सिद्धांत को प्रमुखता दी और सत्याग्रह को स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य अस्त्र बनाया। - जन जागरूकता:
गांधी जी ने गांवों और छोटे शहरों में जाकर जन जागरूकता अभियान चलाए। उन्होंने गरीबों और महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार बनाने का प्रयास किया।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी का भारत आगमन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ। उनकी नेतृत्व में भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अहिंसा और सत्याग्रह जैसे शक्तिशाली हथियारों का प्रयोग किया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली और अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली।
चम्पारण सत्याग्रह (1917)
पृष्ठभूमि
चम्पारण सत्याग्रह 1917 में महात्मा गांधी द्वारा बिहार के चम्पारण जिले में शुरू किया गया था। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसमें गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष किया।
- कारण:
चम्पारण में ब्रिटिश सरकार ने किसानों से तंबाकू और नील की खेती के लिए “तीन-आठ” व्यवस्था (तीन-आठ का मतलब एक तिहाई भूमि पर नील की खेती करने का आदेश) लागू किया था। इससे किसान बहुत परेशान थे, क्योंकि यह कृषि प्रणाली उनके जीवन यापन के लिए उचित नहीं थी और वे लगातार शोषित हो रहे थे। - गांधी जी का नेतृत्व:
गांधी जी ने किसानों के दुःख-दर्द को सुना और उनके साथ मिलकर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। उन्होंने सरकार के खिलाफ अहिंसक तरीके से संघर्ष करने की योजना बनाई। - सत्याग्रह की प्रक्रिया:
गांधी जी ने सत्याग्रह के माध्यम से किसानों को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। सरकार ने किसानों के शोषण को रोकने के लिए गांधी जी के आंदोलन की प्रतिक्रिया दी। परिणामस्वरूप, चम्पारण के किसानों को राहत मिली और सरकार ने कुछ सुधारात्मक कदम उठाए।
महत्व
- चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के नेतृत्व की पहली बड़ी सफलता थी।
- यह सत्याग्रह अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत को व्यापक रूप से लोकप्रिय बनाने में सफल रहा।
- यह आंदोलन भारतीय राजनीति में गांधी जी की प्रमुख भूमिका की शुरुआत थी।
अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)
पृष्ठभूमि
अहमदाबाद मिल हड़ताल 1918 में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित किया गया था, जो गुजरात के अहमदाबाद शहर के कपड़ा मिलों के मजदूरों के हक में किया गया था। यह हड़ताल गांधी जी के श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष का एक महत्वपूर्ण उदाहरण था।
- कारण:
अहमदाबाद के मिल मालिकों ने मजदूरों की तनख्वाह में कोई वृद्धि नहीं की थी, जबकि मिल मालिकों की आमदनी बढ़ी थी। मजदूरों के काम की परिस्थितियाँ भी बहुत कठिन थी, और वे लंबे समय तक काम करने के बाद भी उचित वेतन नहीं पा रहे थे। - गांधी जी का नेतृत्व:
गांधी जी ने इस हड़ताल का नेतृत्व किया और श्रमिकों के हक में आवाज उठाई। उन्होंने मिल मालिकों से अपील की कि वे मजदूरों की वेतन में वृद्धि करें और बेहतर कार्य परिस्थितियाँ प्रदान करें। - हड़ताल की प्रक्रिया:
गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का पालन करते हुए हड़ताल की दिशा तय की। उन्होंने मजदूरों को संयम रखने और संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। अंततः मिल मालिकों ने मजदूरों की वेतन वृद्धि करने पर सहमति व्यक्त की।
महत्व
- अहमदाबाद मिल हड़ताल ने गांधी जी को श्रमिक वर्ग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्थापित करने का अवसर दिया।
- यह हड़ताल भारतीय राजनीति में श्रमिक अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक बनी।
- यह गांधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा में प्रयोग करने का पहला बड़ा उदाहरण था।
निष्कर्ष
चम्पारण सत्याग्रह और अहमदाबाद मिल हड़ताल महात्मा गांधी के नेतृत्व में संघर्ष के महत्वपूर्ण उदाहरण थे। इन आंदोलनों ने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को लागू करते हुए भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया। ये आंदोलनों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय के लिए निर्णायक साबित हुए।
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
पृष्ठभूमि
खेड़ा सत्याग्रह 1918 में महात्मा गांधी द्वारा गुजरात के खेड़ा जिले में आयोजित किया गया था। यह सत्याग्रह ब्रिटिश सरकार के अत्यधिक करों और किसानों के शोषण के खिलाफ था। उस समय खेड़ा जिले में बाढ़ और सूखा जैसे प्राकृतिक संकट आ चुके थे, और ब्रिटिश सरकार ने किसानों से कर वसूलने का कोई दया नहीं दिखाया था, जिससे किसानों की हालत खराब हो गई थी।
- कारण:
1918 में खेड़ा जिले में बुरी तरह से सूखा पड़ा था और किसानों की फसलें नष्ट हो गई थीं। इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार ने किसानों से उच्च कर वसूलने की मांग की, जो उनके लिए अत्यधिक कठिन था। किसानों ने सरकार से राहत की मांग की, लेकिन सरकार ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की। - गांधी जी का नेतृत्व:
महात्मा गांधी ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया और सत्याग्रह का आह्वान किया। गांधी जी ने किसानों को यह बताया कि वे बिना हिंसा के करों का विरोध कर सकते हैं। - सत्याग्रह की प्रक्रिया:
गांधी जी ने करों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन शुरू किया। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे कर नहीं देंगे और सत्याग्रह करेंगे। गांधी जी ने यह आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से चलाया, और अंततः ब्रिटिश सरकार को किसानों के खिलाफ किए गए अत्याचारों को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा।
महत्व
- खेड़ा सत्याग्रह ने गांधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को और भी मजबूत किया।
- यह आंदोलन भारतीय किसानों के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत साबित हुआ।
- गांधी जी का यह आंदोलन भारतीय राजनीति में किसानों और ग्रामीणों की स्थिति को उजागर करने में सफल रहा।
रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह (1919)
पृष्ठभूमि
रॉलेट एक्ट 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के खिलाफ एक कड़ा कानून लागू किया गया था। इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की गिरफ्तारी बिना किसी ट्रायल के करने का अधिकार मिला था। यह कानून भारतीयों के लिए अत्यधिक दमनकारी था और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ एक बड़े कदम के रूप में देखा गया। गांधी जी ने इस कानून के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध का आह्वान किया।
- कारण:
रॉलेट एक्ट के तहत भारतीयों की आवाज़ को दबाने के लिए बिना ट्रायल के गिरफ्तारी की व्यवस्था की गई। इस कानून ने भारतीयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला किया था, और इसके खिलाफ एक बड़े आंदोलन की आवश्यकता महसूस की गई। - गांधी जी का नेतृत्व:
महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानून के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने की योजना बनाई। - सत्याग्रह की प्रक्रिया:
गांधी जी ने रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अहिंसा के सिद्धांत का पालन किया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस कानून का विरोध किया और लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से इस कानून के खिलाफ विरोध करने के लिए प्रेरित किया। इसके तहत जन आंदोलन, हड़तालें, और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। - जालियांवाला बाग हत्याकांड:
इस आंदोलन के दौरान 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जालियांवाला बाग में जनसभा हो रही थी, जहाँ जनरल डायर ने बिना चेतावनी के सैनिकों को फायरिंग करने का आदेश दिया। इस हत्याकांड में सैकड़ों भारतीय मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। यह घटना भारतीयों के खिलाफ ब्रिटिश साम्राज्य की क्रूरता का प्रतीक बन गई।
महत्व
- रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ।
- यह आंदोलन भारतीयों की एकजुटता को दिखाता है और यह आंदोलन भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खड़ा करने में सफल रहा।
- जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीयों में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति गहरी नफरत और विरोध की भावना को जन्म दिया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई गति मिली।
निष्कर्ष
खेड़ा सत्याग्रह और रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम घटनाएँ थीं। दोनों आंदोलनों ने भारतीयों को एकजुट किया और गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को बड़े पैमाने पर लागू किया। इन आंदोलनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी और भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित किया।
नॉन–कोऑपरेशन आंदोलन (1921-22)
पृष्ठभूमि
नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा 1920 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ चलाए गए सबसे बड़े राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता को एकजुट करना और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करना था। इस आंदोलन में मुख्य रूप से असहमति, अहिंसा और असहयोग के सिद्धांतों का पालन किया गया।
- कारण:
- चम्पारण सत्याग्रह (1917) और खेड़ा सत्याग्रह (1918) की सफलताओं के बाद गांधी जी ने महसूस किया कि ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए एक बड़े और व्यापक आंदोलन की आवश्यकता है।
- जालियांवाला बाग हत्याकांड (1919) और रॉलेट एक्ट (1919) जैसी घटनाओं ने भारतीयों को आक्रोशित किया और वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित हुए।
- भारतीयों के आर्थिक शोषण, नस्लीय भेदभाव और सांस्कृतिक अपमान के खिलाफ व्यापक असंतोष था।
आंदोलन का उद्देश्य
गांधी जी का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से विरोध करना था। नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से असहयोग करना था, जैसे कि:
- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
- ब्रिटिश न्यायालयों और अधिकारियों के साथ सहयोग न करना
- स्कूलों और कॉलेजों में ब्रिटिश शिक्षा के खिलाफ विरोध करना
- स्वदेशी वस्त्रों का प्रचलन करना
आंदोलन का परिणाम
- आंदोलन की शुरुआत में ही बड़ी संख्या में लोग इसमें भागीदार बने, और पूरे देश में स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग बढ़ा।
- 1921 में काकोरी कांड और अन्य घटनाओं ने आंदोलन को और तेज़ किया।
- हालांकि, 1922 में चौरी चौरा कांड में हिंसा होने के बाद गांधी जी ने आंदोलन को वापस ले लिया, क्योंकि उनका विश्वास था कि आंदोलन को अहिंसक रूप में ही चलाया जाना चाहिए था।
महत्व
- नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया और भारतीय राजनीति में गांधी जी को एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया।
- इस आंदोलन ने भारतीयों को अहिंसा, स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग, और असहमति की शक्ति के बारे में जागरूक किया।
नागरिक अवज्ञा आंदोलन (1930-34)
पृष्ठभूमि
नागरिक अवज्ञा आंदोलन 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक अहिंसक प्रतिरोध था। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए नमक कानून का उल्लंघन करना था। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई गति दी और इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन में बदल दिया।
- कारण:
- ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से नमक पर कर वसूला था और नमक उत्पादन के अधिकार को अपने पास रखा था।
- महात्मा गांधी ने यह महसूस किया कि नमक पर कर एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर सभी भारतीय एकजुट हो सकते हैं और इसका उल्लंघन ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़ा प्रतीक बन सकता है।
आंदोलन की शुरुआत
गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा शुरू की, जिसमें उन्होंने साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य नमक कानून का उल्लंघन करना था।
- दांडी यात्रा:
गांधी जी और उनके अनुयायी दांडी पहुंचे, जहाँ उन्होंने समुद्र तट पर नमक बनाना शुरू किया। यह एक प्रतीकात्मक कदम था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की एकजुटता और प्रतिरोध को दर्शाता था।
आंदोलन का विस्तार
- गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया। भारतीयों ने नमक कानून का उल्लंघन किया, ब्रिटिश कानूनों का विरोध किया और सड़कों पर उतरे।
- इस आंदोलन में लाखों भारतीयों ने भाग लिया और गांधी जी के नेतृत्व में ब्रिटिश अधिकारियों की गिरफ्तारी का सामना किया।
- गांधी जी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर दिया।
आंदोलन का परिणाम
- आंदोलन के दौरान भारतीयों ने नमक कानून का उल्लंघन किया और पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ।
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप, 1931 में गांधी जी ने गांधी–इरविन पैक्ट पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कई गिरफ्तार भारतीय नेताओं को रिहा किया गया और नमक उत्पादन पर कुछ राहत दी गई।
- हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को पूरी स्वतंत्रता नहीं दी, लेकिन यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
महत्व
- यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक निर्णायक संघर्ष था और भारतीयों के प्रतिरोध की भावना को और मजबूत किया।
- गांधी जी की नेतृत्व क्षमता और अहिंसा के सिद्धांत ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एकजुट किया।
- इस आंदोलन ने भारतीयों को यह सिखाया कि उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए वे अहिंसक तरीकों का पालन कर सकते हैं।
निष्कर्ष
नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन और नागरिक अवज्ञा आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किए गए महत्वपूर्ण कदम थे। दोनों आंदोलनों ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अहिंसक तरीके से संघर्ष करने की प्रेरणा दी और स्वतंत्रता की दिशा में एक नया मोड़ दिया। इन आंदोलनों ने भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया और भारतीय राजनीति में गांधी जी को एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित किया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
पृष्ठभूमि
भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष के रूप में शुरू किया गया था। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम और सबसे बड़ा चरण था, जिसमें गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने का आह्वान किया। इस आंदोलन ने भारतीयों को एकजुट किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष की नींव रखी।
कारण
- द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को युद्ध में शामिल होने का आदेश दिया, बिना भारतीयों से राय लिए। युद्ध के कारण भारतीय जनता की आर्थिक स्थिति पहले से और भी खराब हो गई थी, और ब्रिटिश सरकार ने भारत से अनाज और अन्य संसाधनों का शोषण किया।
- गांधी जी का आह्वान: महात्मा गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी और भारतीय स्वतंत्रता की मांग को और तेज किया। उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन का भारत में कोई स्थान नहीं है और भारत को तत्काल स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
- नेता की गिरफ्तारी और असहमति: भारतीय नेताओं और जनता में बढ़ती असहमति और ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण भारतीयों में स्वतंत्रता के लिए आक्रोश था।
आंदोलन की शुरुआत
- 8 अगस्त 1942 को बंबई में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में गांधी जी ने “भारत छोड़ो“ का आह्वान किया और कहा, “करो या मरो।” गांधी जी ने यह कहा कि अब कोई समझौता नहीं होगा और भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए पूर्ण संघर्ष करना होगा।
- गांधी जी ने इस आंदोलन को अहिंसा और नम्रता के सिद्धांतों पर आधारित रखा।
आंदोलन का विस्तार
- गांधी जी के आह्वान के बाद पूरे देश में आंदोलन फैल गया। भारत के विभिन्न हिस्सों में लोग सड़क पर उतरे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए।
- ब्रिटिश अधिकारियों की प्रतिक्रिया: ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गांधी जी को अग्रहाबाद में नजरबंद कर दिया गया और कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया।
- इस आंदोलन के दौरान भारतीयों ने रेलवे ट्रैक काटे, सरकारी दफ्तरों और संस्थाओं को बंद किया, और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ व्यापक रूप से विरोध किया।
आंदोलन की विफलता और दमन
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कड़ी कार्रवाई की। प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया गया, हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
- आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में लोग मारे गए और घायल हुए। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने का कोई निर्णय नहीं लिया।
महत्व
- भारतीय जनता की एकजुटता: भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट किया और भारतीयों में स्वतंत्रता की एक नई भावना का संचार किया। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक क्षण था।
- ब्रिटिश सरकार पर दबाव: इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को यह एहसास हुआ कि भारत में उनके शासन का भविष्य अब अधर में है।
- आंदोलन का प्रतीक: इस आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय अब ब्रिटिश शासन को और सहन नहीं करेंगे और उन्हें स्वतंत्रता चाहिए।
निष्कर्ष
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे निर्णायक और अंतिम कदम था। गांधी जी के नेतृत्व में इस आंदोलन ने भारतीयों को एकजुट किया और यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विरोध का प्रतीक बन गया। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को और गति दी और 1947 में भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की।
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