Mughal empire in hindi
मुगल वंश (Mughal Dynasty) के शासकों के बारे में
परिचय: मुगल वंश का संस्थापक बाबर था और इस वंश ने भारत में 1526 से 1857 तक शासन किया। मुगलों का साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से में फैला हुआ था और यह भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और स्थिर वंशों में से एक माना जाता है। मुगलों का शासन भारतीय संस्कृति, प्रशासन, कला, वास्तुकला, धर्म, और समाज पर गहरा प्रभाव डालने वाला था। इस वंश के शासकों ने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को आकार दिया और भारतीय इतिहास में अपनी छाप छोड़ी।
मुगल वंश के शासक प्रमुखतः तुर्की-मंगोल मूल के थे और उन्होंने सम्राट बाबर से लेकर बहादुर शाह जफर तक भारत में शासन किया। मुगलों के शासन के विभिन्न चरणों में शक्तिशाली शासक हुए, जिन्होंने प्रशासन, सैन्य, सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- बाबर (Babur) (1526-1530)
- संस्थापक: बाबर, जो मंगोल सम्राट तेमूर के पोते और चंगेज खान के पोते थे, ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुघल साम्राज्य की नींव रखी।
- साम्राज्य का विस्तार: बाबर ने भारत में दिल्ली और आगरा के क्षेत्रों पर कब्जा किया। हालांकि, उनकी राजसत्ता ज्यादा समय तक स्थिर नहीं रही क्योंकि उन्होंने अपनी अधिकांश समय काबुल और अन्य मध्य एशियाई क्षेत्रों में बिताया।
- संस्कृति और कला: बाबर एक महान लेखक और काव्य प्रेमी थे, उन्होंने अपनी आत्मकथा “तजकिरत-उल-बाबरी” लिखी, जो उनके जीवन और संघर्षों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
- हुमायूं (Humayun) (1530–1540 और 1555–1556)
- पहला शासनकाल: हुमायूं बाबर के बेटे थे। उनके शासनकाल में शेर शाह सूरी ने मुघल साम्राज्य को हराकर उसे 1540 से 1555 तक नष्ट कर दिया।
- दूसरा शासनकाल: 1555 में हुमायूं ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में शेर शाह के वंशजों को हराकर पुनः मुघल साम्राज्य स्थापित किया।
- साम्राज्य की पुनर्निर्माण: हुमायूं का शासन साम्राज्य को पुनः संगठित करने में महत्वपूर्ण था। वे कला और विज्ञान के संरक्षक थे और उन्होंने “हुमायूं का कब्र” (दिल्ली में) जैसे स्थापत्य कार्यों को बढ़ावा दिया।
- अकबर (Akbar) (1556–1605)
- सर्वश्रेष्ठ सम्राट: अकबर को मुगलों का सबसे महान सम्राट माना जाता है। उन्होंने अधिकारियों की नियुक्ति, प्रशासन, और साम्राज्य के विस्तार के मामले में कई सुधार किए।
- साम्राज्य का विस्तार: अकबर ने राजस्थान, गुजरात, बंगाल, और दक्कन तक साम्राज्य का विस्तार किया। वे बुरे शासकों और विद्रोहों को दबाने में सक्षम थे।
- धार्मिक नीति: अकबर ने धर्मनिरपेक्ष नीतियों को बढ़ावा दिया और सुलह-ए-कुल (सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता) का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने जज़िया कर को समाप्त किया और हिंदू-मुस्लिम मेलजोल को बढ़ावा दिया।
- संस्कृति और कला: अकबर ने कला, साहित्य और स्थापत्य कला को बढ़ावा दिया। फतेहपुर सीकरी का निर्माण और अकबर का दरबार भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा बने।
- जहाँगीर (Jahangir) (1605–1627)
- शासनकाल: जहाँगीर, अकबर के बेटे थे और उन्होंने अपने शासन में शांति और स्थिरता बनाए रखी। वे एक कुशल शासक थे, हालांकि उनका ध्यान मुख्यतः कला और संस्कृति पर था।
- धार्मिक नीति: जहाँगीर ने अपने पिता की धार्मिक नीतियों का अनुसरण किया, लेकिन उन्होंने मुस्लिम धर्म और हिंदू धर्म दोनों के बीच संतुलन बनाए रखा।
- कला और संस्कृति: जहाँगीर को चित्रकला का प्रेम था और उनके दरबार में कलाकारों को विशेष सम्मान मिलता था। उनका दरबार चित्रकला, खगोलशास्त्र, और साहित्य का केंद्र बना।
- शाहजहाँ (Shah Jahan) (1628–1658)
- सांस्कृतिक और स्थापत्य उत्कर्ष: शाहजहाँ का शासन स्थापत्य कला के उत्कर्ष का समय था। उन्होंने ताज महल का निर्माण करवाया, जो विश्व धरोहर और भारत की सांस्कृतिक पहचान बन गया।
- साम्राज्य का विस्तार: शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में संघर्ष किया, लेकिन उनके शासनकाल में साम्राज्य काफी सुदृढ़ था।
- सैन्य और प्रशासन: शाहजहाँ ने सैन्य बलों और प्रशासनिक संरचनाओं को मजबूत किया, लेकिन उनके शासनकाल में खर्च और सैन्य संघर्षों ने साम्राज्य को कमजोर किया।
- धार्मिक नीति: शाहजहाँ ने कुछ धार्मिक कार्यों को बढ़ावा दिया, लेकिन उनकी नीतियाँ अकबर के समान धर्मनिरपेक्ष नहीं थीं।
- औरंगजेब (Aurangzeb) (1658–1707)
- शासनकाल: औरंगजेब का शासनकाल मुगलों के साम्राज्य का अंतिम महाशक्ति काल था। उन्होंने साम्राज्य का बहुत बड़ा विस्तार किया, लेकिन उनके शासन में कई विद्रोह और धार्मिक असहमति ने साम्राज्य को कमजोर किया।
- साम्राज्य का विस्तार: औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत की और विजयनगर साम्राज्य को समाप्त किया।
- धार्मिक नीति: औरंगजेब ने जज़िया कर को पुनः लागू किया, और हिंदू मंदिरों को नष्ट किया। इसके कारण उनका शासनकाल धार्मिक विवादों और विद्रोहों से भरा रहा।
- संस्कृति: औरंगजेब कला और संस्कृति के प्रति कम संवेदनशील थे और उन्होंने सम्राटों के पिछले प्रयासों के विपरीत संगीत और चित्रकला को सीमित किया।
- बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) (1837–1857)
- अंतिम सम्राट: बहादुर शाह जफर मुघल साम्राज्य के अंतिम सम्राट थे। उनका शासन बहुत कमजोर था और 1857 की विद्रोह के दौरान उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में कार्य किया।
- 1857 का विद्रोह: बहादुर शाह जफर ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित विद्रोह का नेतृत्व किया, लेकिन विद्रोह विफल होने के बाद उन्हें क़ैद किया गया और मुघल साम्राज्य को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया।
निष्कर्ष: मुगल वंश का इतिहास भारतीय राजनीति, प्रशासन, कला, संस्कृति और समाज में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस वंश के शासकों ने न केवल प्रशासन और सैन्य मामलों में सुधार किया, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धारा को भी नया दिशा दी। UPSC Mains के लिए मुगलों के शासन का अध्ययन उनके प्रशासनिक और सांस्कृतिक योगदान को समझने में मदद करता है, जो भारतीय इतिहास की जटिलताओं को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुगल साम्राज्य का प्रशासनिक और सामाजिक-आर्थिक ढांचा
(Mughal Empire Administrative and Socio-Economic Structure)
परिचय: मुगल साम्राज्य ने भारत में 16वीं शताबदी से लेकर 19वीं शताबदी तक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, जो अपने प्रशासनिक ढांचे, सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था, और सांस्कृतिक योगदान के लिए महत्वपूर्ण था। मुगलों ने भारतीय समाज और प्रशासन में कई सुधार किए, जिनका प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप पर लंबे समय तक रहा। इस साम्राज्य का प्रशासनिक और सामाजिक-आर्थिक ढांचा अत्यधिक व्यवस्थित था और यह साम्राज्य को लंबे समय तक स्थिर रखने में सहायक था।
1. प्रशासनिक ढांचा (Administrative Structure)
मुगल प्रशासन को केन्द्रीय और स्थानीय प्रशासन में विभाजित किया जा सकता है। इसके अलावा, इसमें मंत्रालयों, सैन्य, और न्याय व्यवस्था के अलग-अलग विभाग थे।
1.1 केन्द्रीय प्रशासन (Central Administration)
केन्द्रीय प्रशासन में सम्राट सबसे उच्च पद पर होते थे और सभी महत्वपूर्ण निर्णयों का अधिकार उनके पास होता था। सम्राट के पास विज्ञान, कला, प्रशासन, सैन्य और धर्म से संबंधित विषयों पर नियंत्रण था।
- सम्राट (Emperor):
सम्राट सर्वोच्च शासक होते थे और राज्य के सभी कार्यों की निगरानी करते थे। सम्राट के पास राजकीय निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार था। उनके पास मंत्रियों, अधिकारियों, और सैन्य प्रमुखों का एक मजबूत नेटवर्क था। - मंत्रिपरिषद (Council of Ministers):
सम्राट के पास विभिन्न मंत्रियों का एक समूह होता था, जो उनके निर्णयों में सहायता करते थे। कुछ प्रमुख मंत्री थे:
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- वज़ीर (Wazir): प्रधान मंत्री, वित्तीय मामलों और राज्य के प्रशासन का प्रमुख।
- दीवान–ए–आलम (Diwan-i-Ala): न्यायिक मामलों के लिए जिम्मेदार मंत्री।
- सद्र–ए–सेलातिन (Sadr-i-Saltanat): धार्मिक मामलों का प्रभारी।
- काजी (Qazi): न्यायिक अधिकारी जो इस्लामी कानून (शरीअत) का पालन करवाते थे।
- अमीर–उल–उमराह (Amir-ul-Umara): सेना और सैन्य मामलों के प्रभारी।
- विभागों का प्रबंधन (Administrative Divisions):
मुगलों ने अपने साम्राज्य को विभिन्न प्रांतों (Provinces) में विभाजित किया था। प्रत्येक प्रांत में एक नायब (Subahdar) या गवर्नर नियुक्त किया जाता था, जो सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। इन प्रांतों में नगर, जिले और तहसीलें भी होते थे, जिनमें काजी, पटविया, गज़ेटर जैसे अधिकारी होते थे।
1.2 स्थानीय प्रशासन (Local Administration)
स्थानीय प्रशासन में गाँव और क़स्बे शामिल थे, जहां स्थानीय अधिकारी ग्रामीण और शहरी प्रशासन का संचालन करते थे।
- पटवारी (Patwari): गाँवों और छोटे कस्बों में भूमि और कर की रिकॉर्डिंग के लिए जिम्मेदार अधिकारी थे।
- मुहस्सिल (Muhassil):
यह अधिकारी कर संग्रहण का कार्य करते थे और उन्हें जमीनों और संपत्तियों का विवरण रखना होता था। - सिक्का बनाने वाले अधिकारी (Mint Masters):
सिक्कों का निर्माण और उनका वितरण भी स्थानीय स्तर पर नियंत्रित किया जाता था।
1.3 सैन्य और न्याय व्यवस्था (Military and Judicial System)
मुगल सैन्य व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य साम्राज्य की सुरक्षा और सैन्य अभियानों का संचालन था। न्याय व्यवस्था के तहत काजी और दीवानों के माध्यम से कानून और व्यवस्था बनाए रखी जाती थी।
- सैन्य प्रमुख (Military Commanders):
सेना के प्रमुख होते थे जो विभिन्न सेना वाहिनियों का नेतृत्व करते थे। इनका सबसे महत्वपूर्ण काम साम्राज्य की सीमाओं की रक्षा करना और विदेशी आक्रमणों से बचाव करना था। - न्याय (Justice System):
न्यायिक प्रणाली में काजी और मुंसिफ का महत्वपूर्ण स्थान था। काजी शरिया कानून के अनुसार न्याय करते थे और मुंसिफ (जिले के न्यायाधीश) स्थानीय स्तर पर प्रशासन करते थे।
2. सामाजिक-आर्थिक ढांचा (Socio-Economic Structure)
मुगल साम्राज्य की सामाजिक-आर्थिक संरचना अत्यधिक जटिल थी, जिसमें विभिन्न वर्गों, धर्मों, जातियों और व्यवसायों के लोग शामिल थे। इसके अतिरिक्त, व्यापार, कृषि, उद्योग, और कर प्रणाली भी साम्राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
2.1 कृषि और भूमि व्यवस्था (Agricultural and Land System)
मुगल साम्राज्य में कृषि मुख्य आर्थिक गतिविधि थी, और भूमि के अधिकांश हिस्से को किसान उपजाते थे। जमीन के मालिकाना अधिकार और कर प्रणाली दोनों ही आर्थिक व्यवस्था का आधार थे।
- कृषि और भूमि कर (Agricultural Taxation):
मुगलों ने भूमि से संबंधित कई प्रकार के करों का संग्रह किया, जिनमें जज़िया (Land Tax), उज़्दू (Revenue) और वेतन कर शामिल थे। अकबर के शासन में जमीन का सर्वेक्षण किया गया और राजस्व प्रशासन को व्यवस्थित किया। - किसान वर्ग (Peasant Class):
किसान समाज का सबसे बड़ा वर्ग थे। वे राज्य को भूमि कर के रूप में राजस्व प्रदान करते थे। किसानों की स्थिति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग थी, और कई बार उन्हें प्राकृतिक आपदाओं और उच्च करों का सामना करना पड़ता था।
2.2 व्यापार और उद्योग (Trade and Industry)
मुगल साम्राज्य के दौरान व्यापार, उद्योग और हस्तशिल्प का भी महत्वपूर्ण स्थान था। इस समय भारत वैश्विक व्यापार का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
- स्थानीय और विदेशी व्यापार (Local and Foreign Trade):
मुगलों ने स्थानीय व्यापार को बढ़ावा दिया और विदेशी व्यापार के लिए समुंदर और ज़मीन मार्गों का उपयोग किया। भारत रेशम, मसाले, कपास और सोने-चांदी का प्रमुख निर्यातक था। - हस्तशिल्प उद्योग (Handicraft Industry):
मुगलों ने कला और शिल्प के विकास को बढ़ावा दिया। भारतीय कांच, कॉटन, सिल्क, और ज्वैलरी प्रमुख उत्पाद थे, जिनकी वैश्विक मांग थी।
2.3 धर्म और समाज (Religion and Society)
मुगल साम्राज्य की सामाजिक व्यवस्था में विभिन्न धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक समूहों का मिश्रण था।
- धार्मिक सहिष्णुता (Religious Tolerance):
सम्राट अकबर ने धर्मनिरपेक्ष नीति अपनाई और सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का दृष्टिकोण रखा। उन्होंने सुलह-ए-कुल का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें सभी धर्मों के अनुयायियों को समान रूप से सम्मानित किया गया। - हिंदू-मुस्लिम संबंध (Hindu-Muslim Relations):
मुगलों के शासनकाल में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों ने मिलकर साम्राज्य का संचालन किया। अकबर ने हिंदू राजाओं के साथ गठबंधन किया और कई उच्च पदों पर हिंदू अधिकारियों को नियुक्त किया।
2.4 शहरी और ग्रामीण समाज (Urban and Rural Society)
मुगल साम्राज्य में शहरी और ग्रामीण समाज का विकास हुआ था। शहरी क्षेत्रों में व्यापार, कला और संस्कृति का केन्द्र था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और कारीगरी प्रमुख गतिविधियाँ थीं।
- शहरी समाज (Urban Society):
प्रमुख शहरी केन्द्र जैसे दिल्ली, आगरा, लाहौर, और फतेहपुर सीकरी व्यापार, प्रशासन और सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र थे। - ग्रामीण समाज (Rural Society):
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कृषि, हस्तशिल्प और स्थानीय व्यापार में संलग्न थे। यहाँ जातिवाद और पारंपरिक सामाजिक संरचनाएं अधिक स्पष्ट थीं।
निष्कर्ष:
मुगल साम्राज्य का प्रशासनिक और सामाजिक-आर्थिक ढांचा बहुत ही सशक्त और व्यवस्थित था। मुगलों ने अपनी धार्मिक सहिष्णुता, व्यापारिक नीतियों, भूमि कर प्रणाली, और सैन्य प्रशासन से साम्राज्य को लंबे समय तक स्थिर बनाए रखा। UPSC Mains में मुगलों के शासनकाल का अध्ययन इस बात को स्पष्ट करता है कि किस प्रकार उन्होंने भारतीय समाज, संस्कृति और प्रशासन की धारा को आकार दिया और भारतीय इतिहास में अपनी एक स्थायी छाप छोड़ी।
मुगल कला और वास्तुकला (Mughal Art and Architecture)
परिचय: मुगल साम्राज्य ने भारतीय कला और वास्तुकला पर गहरा प्रभाव डाला। मुगलों के शासनकाल में कला और स्थापत्य का एक नया युग शुरू हुआ, जिसमें भारतीय, इस्लामी और फारसी तत्वों का संगम हुआ। मुगल कला और वास्तुकला न केवल सुंदरता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह सम्राटों के शक्ति और समृद्धि का प्रतीक भी है। मुगलों का स्थापत्य और कला भारतीय कला की धारा में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में सफल रही और भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा बन गई।
1. मुगल कला (Mughal Art)
मुगल कला की पहचान उसके चित्रकला, सूक्ष्म चित्रण, और कलात्मक अभिव्यक्ति से होती है। यह कला मुख्य रूप से मुगलों के दरबारों, शाही महलों और धार्मिक स्थलों के लिए बनाई जाती थी। मुगलों के शासनकाल में कला और कारीगरी के क्षेत्र में एक शानदार परिवर्तन आया और इसे विशेष रूप से हिंदू, फारसी, और तुर्की प्रभावों के मिश्रण से प्रभावित किया गया।
1.1 चित्रकला (Painting)
मुगल चित्रकला में फारसी चित्रकला का प्रमुख प्रभाव था, जिसे मुगलों ने भारतीय कला में融合 किया। मुगल चित्रकला के विकास में अकबर के दरबार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कला का प्रमुख उद्देश्य सम्राट की महिमा को चित्रित करना और दरबार की गतिविधियों को दर्शाना था।
- अकबर कालीन चित्रकला: अकबर के दरबार में चित्रकला को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला। उन्होंने नंदलाल, मुरलीधर, और कृष्णलाल जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों को नियुक्त किया था। अकबर के शासनकाल में चित्रकला को एक विशेष पहचान मिली, जिसमें भारतीय जीवन, प्रकृति, युद्ध और धार्मिक घटनाओं को चित्रित किया जाता था।
- जंगली चित्रकला (Wildlife Painting):
अकबर के समय में जंगली चित्रकला का एक महत्वपूर्ण स्थान था, जिसमें विभिन्न प्रकार के पक्षी और जानवरों की सुंदरता को चित्रित किया गया। इन चित्रों में प्राचीन भारतीय शैली का मिश्रण था और फारसी शैली का प्रभाव भी देखा जाता था। - जहाँगीर कालीन चित्रकला: जहाँगीर के समय में चित्रकला में और अधिक सूक्ष्मता और रचनात्मकता आई। जहाँगीर स्वयं कला के प्रेमी थे और उन्होंने चित्रकला में कई परिवर्तन किए। उनके काल में फूलों, फलों, पक्षियों और जन-जीवन के चित्रों का महत्व बढ़ा। मिनीचर पेंटिंग का विकास हुआ, जिसमें एक ही चित्र में छोटे-छोटे विवरणों को बड़े ध्यान से दर्शाया गया।
- शाहजहाँ कालीन चित्रकला: शाहजहाँ के समय में चित्रकला की विविधता में और अधिक विस्तार हुआ, लेकिन यह औरंगजेब के काल में धीरे-धीरे कम हो गई, क्योंकि औरंगजेब ने चित्रकला के लिए कम समर्थन दिया था। शाहजहाँ के समय में कला का अधिकतर उद्देश्य सम्राट के जीवन और दरबार की शाही तस्वीरों को प्रस्तुत करना था।
1.2 हस्तशिल्प (Craftsmanship)
मुगल काल में हस्तशिल्प के विभिन्न रूपों में भी समृद्धि आई। सिल्क, कपड़ा, धातु, और लकड़ी से बनी वस्तुएं मुगल काल में अत्यधिक प्रसिद्ध थीं। मुगल काल में आलमगीरी कालीन, पारसी मीनाकारी, कांच की नक्काशी और पोटरी का अत्यधिक विकास हुआ।
2. मुगल वास्तुकला (Mughal Architecture)
मुगल वास्तुकला भारत में एक नई स्थापत्य शैली का रूप थी, जो फारसी, तुर्की और भारतीय स्थापत्य के मिश्रण से विकसित हुई। मुगलों ने न केवल महल, किलें, और मस्जिदें बनवाई, बल्कि मुगल उद्यानों का भी निर्माण किया, जो उनकी स्थापत्य शैली का अद्वितीय हिस्सा थे। मुगल वास्तुकला में सुंदरता, सामंजस्य और भव्यता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
2.1 प्रारंभिक विकास (Early Development)
मुगल स्थापत्य कला का विकास बाबर और हुमायूँ के समय में शुरू हुआ, लेकिन इसका सबसे शानदार रूप अकबर के शासनकाल में देखा गया। अकबर ने भारतीय वास्तुकला में फारसी और तुर्की शैली को मिश्रित किया और एक नए “मुगल स्थापत्य” का निर्माण किया।
- आगरा किला (Agra Fort):
अकबर के द्वारा बनवाया गया आगरा किला मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह किला रेड सैंडस्टोन से निर्मित है और इसमें शाही महल, मस्जिदें, और उद्यान शामिल हैं। किले में शाही दरबार और रहन-सहन के लिए सुविधाएं थीं। - फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri):
अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी नई राजधानी के रूप में स्थापित किया था। इस शहर में मुगल स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलते हैं, जैसे बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद, और दीवान-ए-खास। फतेहपुर सीकरी में फारसी, हिंदू और तुर्की स्थापत्य के तत्वों का अद्भुत मिश्रण था।
2.2 शाहजहाँ और औरंगजेब के समय का स्थापत्य (Architecture under Shah Jahan and Aurangzeb)
- ताज महल (Taj Mahal):
शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल वास्तुकला की सर्वोच्च कृति ताज महल के रूप में सामने आई। यह सफेद संगमरमर से बना मकबरा एक अद्वितीय उदाहरण है। ताज महल में फारसी, तुर्की और भारतीय वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण देखा जाता है, जिसमें संतुलित रूप, आलंकारिक नक्काशी, और विशालकाय उद्यान शामिल हैं। यह स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसे विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त है। - जामा मस्जिद, दिल्ली (Jama Masjid, Delhi):
शाहजहाँ के द्वारा दिल्ली में निर्मित जामा मस्जिद मुगलों की स्थापत्य कला का एक और बेहतरीन उदाहरण है। यह मस्जिद सफेद संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और इसमें फारसी वास्तुकला की झलक मिलती है। यह मस्जिद दिल्ली का सबसे बड़ा मस्जिद है। - लाल किला (Red Fort):
शाहजहाँ के समय में लाल किला का निर्माण हुआ। यह किला दिल्ली में स्थित है और इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, और मोती मस्जिद जैसी कई महत्वपूर्ण संरचनाएं हैं।
2.3 मुगल उद्यान (Mughal Gardens)
मुगल स्थापत्य में उद्यानों का विशेष महत्व था। मुगलों ने फारसी शैली के उद्यानों को अपनाया, जिसमें चारबाग प्रणाली का पालन किया गया। चारबाग शैली में उद्यानों को चार भागों में बांट दिया जाता है और पानी के रास्ते (नहरें) इन भागों को जोड़ते हैं।
- शालीमार बाग (Shalimar Bagh):
शालीमार बाग का निर्माण शाहजहाँ के द्वारा किया गया था। यह बाग कश्मीर में स्थित है और इसमें पानी की धारा और सुंदर बागवानी के अद्भुत दृश्य मिलते हैं। - नूर महल बाग (Noor Mahal Garden):
यह बाग लाहौर में स्थित था और मुगलों के काल में अत्यधिक प्रसिद्ध था। इसमें विशेष रूप से जल और फूलों की सुंदरता को बढ़ावा दिया गया।
निष्कर्ष:
मुगल कला और वास्तुकला न केवल भारतीय स्थापत्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह सम्राटों की शक्ति, संस्कृति, और धार्मिक सहिष्णुता को भी दर्शाती है। मुगल काल के दौरान कला और वास्तुकला में जो उत्कृष्टता प्राप्त हुई, वह आज भी भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। UPSC Mains के दृष्टिकोण से, मुगल कला और वास्तुकला का अध्ययन भारतीय इतिहास के सांस्कृतिक, सामाजिक, और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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