Non-Cooperation Movement in hindi
नन–कोऑपरेशन आंदोलन (Non-Cooperation Movement)
नन-कोऑपरेशन आंदोलन 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया था। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता को एकजुट करने का प्रयास था। गांधी जी ने इस आंदोलन को पूरी तरह से अहिंसक और असहमति के तरीके से चलाने की योजना बनाई, जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग न करने की अपील की गई।
नन–कोऑपरेशन आंदोलन के कारण (Causes of Non-Cooperation Movement)
- चमपारण सत्याग्रह (1917):
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- महात्मा गांधी ने 1917 में बिहार के चमपारण में एक सत्याग्रह आंदोलन की अगुवाई की, जिसमें किसानों के खिलाफ होने वाले शोषण के खिलाफ संघर्ष किया। गांधी जी की पहली बड़ी सफलता के रूप में यह आंदोलन था, जिससे भारतीयों को अहिंसक तरीके से विरोध करने की प्रेरणा मिली। इस आंदोलन ने गांधी जी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता बना दिया।
- कानपुर और दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे (1919):
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- 1919 में दिल्ली और कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों ने भारतीय समाज में गहरी खाई और तनाव पैदा किया। इन दंगों को ब्रिटिश शासन की नीतियों के परिणामस्वरूप देखा गया, जो भारतीयों के बीच विभाजन और असहमति का कारण बनते थे। इससे भारतीय जनता में गुस्सा और आक्रोश बढ़ा, जो नन-कोऑपरेशन आंदोलन की ओर अग्रसर हुआ।
- रॉलेट एक्ट (1919):
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- ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट को लागू किया, जो भारतीयों को बिना कारण गिरफ्तारी और उनके खिलाफ मुकदमे चलाने का अधिकार देता था। यह कानून भारतीयों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था और इसके खिलाफ पूरे देश में विरोध फैल गया। गांधी जी ने इसे नकारात्मक रूप से लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहमति को और मजबूत किया।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919):
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- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार ने भारतीयों को गहरा आघात पहुँचाया। इस घटना में सैकड़ों निहत्थे भारतीयों को गोली मारी गई थी। गांधी जी ने इसे भारतीयों की बेइज्जती और ब्रिटिश शासन की क्रूरता के रूप में देखा और इसके खिलाफ नन-कोऑपरेशन आंदोलन की शुरुआत करने का निर्णय लिया।
- खिलाफत आंदोलन (1919-1924):
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- खिलाफत आंदोलन तुर्की में हुए घटनाओं के खिलाफ भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया था, जिनमें तुर्की के खलीफा को कमजोर करने की ब्रिटिश नीति का विरोध किया गया था। गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन के साथ एकजुट होकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को और व्यापक बनाने का निर्णय लिया। यह आंदोलन मुस्लिम और हिंदू समुदाय के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए था।
- ब्रिटिश शासन के शोषणकारी नीतियाँ:
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- ब्रिटिश सरकार की नीतियाँ भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से किसानों, श्रमिकों और व्यापारियों के लिए शोषणकारी थीं। उच्च कर, गरीबों की बढ़ती हुई दयनीय स्थिति, और व्यापार में हस्तक्षेप ने भारतीयों को एकजुट किया। इस स्थिति को बदलने के लिए गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का आह्वान किया।
- गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत:
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- गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत ने भारतीयों को अहिंसक विरोध का रास्ता दिखाया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि बिना हिंसा के भी ब्रिटिश शासन को हराया जा सकता है। उनका यह सिद्धांत भारतीय जनता के दिलों में घर कर गया और नन-कोऑपरेशन आंदोलन के रूप में एक बड़ा जन आंदोलन बन गया।
निष्कर्ष
नन-कोऑपरेशन आंदोलन 1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक ऐतिहासिक कदम था, जिसका उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट करना था। इस आंदोलन के कारणों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियाँ, जलियांवाला बाग हत्याकांड, रॉलेट एक्ट और खिलाफत आंदोलन जैसी घटनाएँ शामिल थीं। गांधी जी ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित आंदोलन बनाया, जिससे यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
नन–कोऑपरेशन आंदोलन का समयरेखा (Non-Cooperation Movement Timeline)
नन-कोऑपरेशन आंदोलन 1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण भाग था। इस आंदोलन की प्रमुख घटनाएँ और उनका समय क्रम इस प्रकार था:
1. 1919 – रॉलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड
- रॉलेट एक्ट (1919): ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित किया, जिससे भारतीयों को बिना कारण गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त हो गया। यह काला कानून भारतीय जनता में गहरे आक्रोश का कारण बना।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919): जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाईं। इस हत्याकांड ने भारतीयों के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति गुस्सा और नफरत पैदा की।
2. 1920 – महात्मा गांधी का नन–कोऑपरेशन आंदोलन की शुरुआत
- गांधी जी का नेतृत्व: गांधी जी ने 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में नन-कोऑपरेशन आंदोलन की घोषणा की। इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग करना और भारतीयों को स्वराज प्राप्ति के लिए एकजुट करना था।
- असहमति का अहिंसक विरोध: गांधी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करें, जैसे कि सरकारी नौकरी, न्यायालयों में भाग लेना, स्कूलों में पढ़ाई, और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करें।
3. 1921 – आंदोलन की गति बढ़ना
- भारत भर में आंदोलन फैलना: गांधी जी की अपील पर देशभर में आंदोलन फैलने लगा। लोग सड़क पर उतर आए, और विभिन्न वर्गों ने सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार किया।
- खिलाफत आंदोलन का समर्थन: गांधी जी ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला।
4. 1922 – चौरी–चौरा कांड
- चौरी–चौरा घटना (4 फरवरी 1922): उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ ग्रामीणों ने विरोध किया। इसमें 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई। यह घटना गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ थी, और इसके बाद गांधी जी ने आंदोलन को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया।
नन–कोऑपरेशन आंदोलन का वापसी (Non-Cooperation Movement Withdrawal)
गांधी जी ने 1922 में अचानक नन-कोऑपरेशन आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया। इसके प्रमुख कारण थे:
1. चौरी–चौरा कांड
- चौरी-चौरा घटना ने गांधी जी को गहरे झटका दिया, क्योंकि इसमें हिंसा हुई थी, जो उनके अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ था। गांधी जी ने यह महसूस किया कि आंदोलन में बढ़ती हुई हिंसा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्यों के विपरीत है। उन्होंने आंदोलन को तत्काल बंद करने का निर्णय लिया।
2. आंदोलन का असफल दिशा में मोड़
- आंदोलन के दौरान, कई स्थानों पर हिंसक घटनाएँ हुईं, जैसे कि पुलिस थानों और सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले। गांधी जी ने महसूस किया कि यह आंदोलन हिंसक हो सकता है और इससे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन समर्थन खो सकता है।
3. आंदोलन की असरदारता में कमी
- आंदोलन के दौरान विभिन्न हिस्सों में संघर्ष और असहमति उत्पन्न हुई। कुछ क्षेत्रों में आंदोलन कमजोर पड़ा और कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी आई, जिससे आंदोलन की गति धीमी हो गई।
4. जनता में भ्रम और असंतोष
- कुछ नेताओं और जनता के बीच आंदोलन को लेकर मतभेद बढ़ने लगे। आंदोलन में भाग लेने वाले लोग अब यह महसूस करने लगे थे कि आंदोलन का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है, और इसका परिणाम क्या होगा, यह अनिश्चित था। इस कारण आंदोलन में असंतोष बढ़ा।
5. गांधी जी का आत्मनिरीक्षण
- गांधी जी ने अपने अहिंसा के सिद्धांत के पालन को प्राथमिकता दी। उन्होंने यह निर्णय लिया कि अगर आंदोलन में हिंसा और अशांति जारी रही, तो यह उनके उद्देश्य के खिलाफ होगा। इसलिए, उन्होंने आंदोलन को स्थगित करने का साहसिक निर्णय लिया।
निष्कर्ष
नन-कोऑपरेशन आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, लेकिन यह आंदोलन चौरी-चौरा कांड के बाद समाप्त हो गया। गांधी जी ने इस आंदोलन को अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार स्थगित किया, जिससे यह साफ हो गया कि गांधी जी के लिए स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा से प्राप्त करना था। इस आंदोलन ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की शक्ति और एकजुटता दी, हालांकि यह पूरी तरह से सफल नहीं हो सका।
नन–कोऑपरेशन आंदोलन का महत्व (Significance of Non-Cooperation Movement)
नन-कोऑपरेशन आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसके कई अहम पहलू थे, जो भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डालते थे। इसके प्रमुख महत्व इस प्रकार हैं:
1. भारतीयों में जागरूकता और आत्मसम्मान का उभार
- नन-कोऑपरेशन आंदोलन ने भारतीयों में आत्मसम्मान और स्वराज की भावना को जागृत किया। गांधी जी ने भारतीयों को यह समझाया कि उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए और ब्रिटिश संस्थाओं के साथ किसी प्रकार का सहयोग नहीं करना चाहिए। इस आंदोलन ने भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होने का आत्मविश्वास दिया।
2. ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन समर्थन
- इस आंदोलन के माध्यम से भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई। नन-कोऑपरेशन आंदोलन ने भारतीयों को यह अहसास कराया कि वे ब्रिटिश शासन के बिना भी अपनी पहचान और अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। इससे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन जागरूकता बढ़ी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन समर्थन मिला।
3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सशक्तीकरण
- इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को फिर से संगठित किया और पार्टी के नेताओं को जनता के बीच मजबूत किया। गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक नया दिशा और ऊर्जा प्राप्त की, जिससे आंदोलन को व्यापक रूप से फैलाने में मदद मिली।
4. हिंदू–मुस्लिम एकता
- नन-कोऑपरेशन आंदोलन ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों को एकजुट करने का काम किया। गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन के साथ सहयोग किया, जिससे हिंदू और मुस्लिमों के बीच सामूहिक प्रयासों की भावना को बढ़ावा मिला और दोनों समुदायों में विश्वास और एकता का संचार हुआ।
5. अहिंसा और सत्याग्रह की महत्ता
- गांधी जी ने इस आंदोलन में अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को प्रमुख रूप से लागू किया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नयी दिशा मिली। इस आंदोलन ने भारतीयों को अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी ब्रिटिश शासन को चुनौती देने का तरीका सिखाया।
6. व्यापक जन आंदोलन का निर्माण
- यह आंदोलन केवल राष्ट्रीय नेताओं तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे देश के विभिन्न वर्गों और समुदायों तक फैला। स्कूलों, कॉलेजों, व्यापारिक संगठनों और ग्रामीण इलाकों में इस आंदोलन का समर्थन प्राप्त हुआ। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय समाज का हर वर्ग ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट हो सकता है।
नन–कोऑपरेशन आंदोलन की सीमाएँ (Limitations of Non-Cooperation Movement)
हालाँकि नन-कोऑपरेशन आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख अध्याय था, लेकिन इसके कुछ सीमाएँ भी थीं:
1. हिंसा का उत्पन्न होना
- गांधी जी ने अहिंसा का सिद्धांत अपनाया था, लेकिन आंदोलन के दौरान कई स्थानों पर हिंसा हुई। जैसे कि 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में पुलिस थाने पर हमले के कारण 22 पुलिसकर्मी मारे गए। यह घटना गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ थी, जिसके कारण गांधी जी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया।
2. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में असमान समर्थन
- नन-कोऑपरेशन आंदोलन शहरी क्षेत्रों में अधिक लोकप्रिय हुआ, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंदोलन अपेक्षाकृत कमजोर रहा। किसानों और मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए गांधी जी ने कई कदम उठाए, लेकिन उनके लिए यह आंदोलन उतना प्रभावी नहीं रहा।
3. नीतियों में स्पष्टता की कमी
- नन-कोऑपरेशन आंदोलन में कई बार उद्देश्य और दिशा में स्पष्टता की कमी रही। गांधी जी ने आंदोलन में कई बार बदलाव किए, जिससे लोगों को भ्रमित होने का कारण बना। इससे आंदोलन की गति धीमी पड़ी और कुछ क्षेत्रों में समर्थन कमजोर हुआ।
4. ब्रिटिश शासन की कठोर प्रतिक्रिया
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के दौरान कई कठोर कदम उठाए, जैसे गिरफ्तारी, दमन और कड़ी कार्रवाई, जिससे आंदोलनकारियों को संघर्ष में कठिनाइयाँ आईं। हालांकि ब्रिटिश शासन के दमन से जन जागरूकता बढ़ी, लेकिन यह आंदोलनकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया।
5. आंदोलन का उद्देश्य सीमित होना
- नन-कोऑपरेशन आंदोलन का मुख्य उद्देश्य स्वराज की मांग था, लेकिन यह केवल स्वशासन तक सीमित था, न कि पूर्ण स्वतंत्रता तक। इसके कारण कुछ वर्गों को यह आंदोलन पूरी तरह से नहीं आकर्षित कर सका, क्योंकि कुछ भारतीयों के लिए पूरी स्वतंत्रता की मांग ही मुख्य उद्देश्य था।
6. नेताओं के बीच मतभेद
- आंदोलन में भाग लेने वाले नेताओं के बीच रणनीतियों और दृष्टिकोण को लेकर मतभेद थे। कुछ नेता जैसे चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण सहयोग का समर्थन किया, जबकि अन्य ने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से परहेज किया, जिससे आंदोलन में एकता की कमी महसूस हुई।
निष्कर्ष
नन-कोऑपरेशन आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन जागरूकता पैदा की। हालांकि इस आंदोलन के कुछ सीमाएँ थीं, जैसे हिंसा का फैलना, ग्रामीण क्षेत्रों में समर्थन की कमी, और स्पष्ट उद्देश्यों की कमी, फिर भी यह भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में सफल रहा। गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक मजबूत हिस्सा बन गया।
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