Reorganisation of states in hindi
भारत में राज्य पुनर्गठन का पृष्ठभूमि (Background of State Reorganisation in India)
भारत की स्वतंत्रता के बाद, देश का राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचा पुनः व्यवस्थित करने की आवश्यकता थी। 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो पहले से अस्तित्व में आ चुकी ब्रिटिश साम्राज्य की सीमाएँ और राज्य संरचनाएँ समाप्त हो गईं। विभिन्न रियासतों और प्रांतों का विलय भारतीय संघ में किया गया, लेकिन भारत के नए राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे को एकीकृत और स्थिर बनाने के लिए राज्यों की पुनर्गठन की आवश्यकता थी।
भारत के संविधान को लागू करने के बाद, 1950 में भारत में एक संघीय प्रणाली स्थापित की गई, लेकिन राज्यों की सीमाओं और संरचना के बारे में स्पष्टता नहीं थी। प्रारंभिक वर्षों में विभिन्न प्रकार की असहमति और राजनीतिक दबावों के कारण राज्य पुनर्गठन के लिए एक संगठित दृष्टिकोण नहीं था। लेकिन समय के साथ यह आवश्यकता महसूस की गई कि राज्यों के पुनर्गठन से ही भारतीय संघ को और मजबूत किया जा सकता है और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
1. राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन (States Reorganisation Commission – SRC)
- 1953 में, भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) का गठन किया, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंजूरी दी। इसका उद्देश्य भारतीय राज्यों की सीमाओं और संरचनाओं को फिर से व्यवस्थित करना था।
- आयोग के प्रमुख न्यायमूर्ति Fazal Ali थे, और इसके सदस्य थे – K.M. Pannikar और H.N. Kunzru। इस आयोग का काम राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक योजना तैयार करना था, जो भारत की विविधता और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखते हुए एक सक्षम प्रशासनिक प्रणाली प्रदान करे।
- आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें राज्यों के पुनर्गठन के लिए कई सिफारिशें की गईं, जिनमें भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की योजना प्रमुख थी।
राज्य पुनर्गठन के पीछे की तार्किकता (Rationale behind the Reorganisation of the Indian States)
राज्य पुनर्गठन के पीछे कई तार्किक और व्यावहारिक कारण थे, जिनका उद्देश्य भारत में प्रशासनिक एकता, विकास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देना था। निम्नलिखित कारण थे जिनकी वजह से राज्य पुनर्गठन की आवश्यकता महसूस की गई:
1. भाषाई विविधता और सामाजिक समावेशन
- भारत में भाषाई विविधता अत्यधिक थी और लोग अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं के आधार पर अपनी पहचान बनाते थे। स्वतंत्रता के बाद, भारतीय समाज में एकजुटता के लिए भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन एक आवश्यक कदम था।
- विभिन्न राज्यों के लोग अपनी भाषाओं के माध्यम से अपनी पहचान व्यक्त करते थे, और यह राज्य की प्रशासनिक इकाई के रूप में भी काफी प्रभावी था।
- भाषा आधारित राज्य पुनर्गठन का उद्देश्य था कि प्रत्येक राज्य में भाषा के आधार पर लोग एकजुट हो सकें और प्रशासनिक कार्य सरल हो सके।
- उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश का निर्माण तेलुगु भाषी लोगों के लिए किया गया था, और महाराष्ट्र और गुजरात के विभाजन में मराठी और गुजराती भाषाओं को ध्यान में रखा गया।
2. आर्थिक और प्रशासनिक समन्वय
- राज्य पुनर्गठन के कारण भारतीय राज्यों के बीच आर्थिक और प्रशासनिक समन्वय को बढ़ावा मिला। विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक ढांचे को समान बनाने और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता थी।
- भाषाई और सांस्कृतिक समानता को देखते हुए राज्यों के पुनर्गठन से विकास योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो सका।
- विभिन्न राज्यों में समान विकास के अवसर पैदा करने के लिए उनका पुनर्गठन आवश्यक था ताकि वहां की स्थानीय समस्याओं का समाधान किया जा सके।
3. राष्ट्रीय एकता और सामूहिक पहचान
- विभाजन के बाद, भारतीय संघ में एकता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती थी। राज्य पुनर्गठन का उद्देश्य भारत की विविधता के बावजूद एकता को बढ़ावा देना था।
- इसके द्वारा राज्य सरकारों को सामूहिक रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया गया और भारतीय संघ को एक मजबूत संघीय संरचना दी गई।
- यह एकता को बनाए रखने के लिए आवश्यक था कि राज्यों की संरचनाओं को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि वे एक-दूसरे के खिलाफ न हो, बल्कि वे एक साझा उद्देश्य के तहत कार्य करें।
4. राजनीतिक असंतोष और आंदोलन
- स्वतंत्रता के बाद कई राज्यों में राजनीतिक असंतोष और प्रदर्शन हो रहे थे, जिनमें भाषाई और सांस्कृतिक कारणों से आंदोलन हो रहे थे।
- विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में तेलुगु भाषी लोगों का आंदोलन, महाराष्ट्र और गुजरात में मराठी और गुजराती भाषी लोगों के बीच संघर्ष, और अन्य क्षेत्रों में समान प्रकार के विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।
- राज्य पुनर्गठन से इन आंदोलनों को शांत किया गया और इन राज्यों को एक नए और स्वीकार्य ढांचे में व्यवस्थित किया गया।
5. जनसंख्या और भौगोलिक पहलू
- भारतीय राज्यों की जनसंख्या और भौगोलिक आकार को भी ध्यान में रखा गया। कई बड़े राज्य, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश, के विशाल आकार और जनसंख्या ने प्रशासनिक कठिनाइयों को बढ़ा दिया था।
- राज्य पुनर्गठन ने इन राज्यों को छोटे हिस्सों में विभाजित करके प्रशासनिक दक्षता बढ़ाई और विकास कार्यों को प्राथमिकता दी।
6. संविधान में अनुशासन और सुधार
- भारतीय संविधान में राज्य की संरचना को निर्धारित किया गया था, लेकिन कुछ समस्याओं के कारण राज्य पुनर्गठन की आवश्यकता थी।
- राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) के प्रस्तावों ने संविधान के अनुशासन और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए और इसके तहत राज्य की सीमाओं को फिर से व्यवस्थित किया गया।
निष्कर्ष
भारत में राज्य पुनर्गठन का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समावेशन, सांस्कृतिक विविधता की रक्षा, और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाना था। राज्य पुनर्गठन ने राज्यों के प्रशासनिक और विकासात्मक मुद्दों को सुलझाया और देश में अधिक समग्र और समान विकास को सुनिश्चित किया। भारतीय राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने भारतीय संघ को अधिक स्थिर, संगठित और एकजुट बनाया।
राज्य पुनर्गठन से संबंधित आयोग (Commissions related to State Reorganisation)
भारत में राज्य पुनर्गठन से संबंधित कई महत्वपूर्ण आयोगों का गठन किया गया, जिनका उद्देश्य भारतीय राज्यों की संरचना और सीमाओं को व्यवस्थित करना था। इनमें प्रमुख आयोग थे:
1. राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission – SRC)
- गठन: राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन 1953 में किया गया था। इस आयोग का प्रमुख उद्देश्य भारतीय राज्यों के पुनर्गठन के लिए सिफारिशें तैयार करना था।
- प्रमुख सदस्य: इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फजल अली (Justice Fazal Ali) थे, और इसके सदस्य थे के.एम. पन्निकर और एच.एन. कुंज़रू।
- उद्देश्य: इस आयोग ने भारत की विविधता और भाषाई असमानताओं को ध्यान में रखते हुए राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिश की। आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम (State Reorganisation Act) पारित किया गया, जिसके तहत भारतीय राज्यों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।
- महत्वपूर्ण सिफारिशें: आयोग ने भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की सिफारिश की, जिससे भारतीय राज्यों के गठन में भाषाई समानता को प्राथमिकता दी गई।
2. पंजाब पुनर्गठन आयोग (Punjab Reorganisation Commission)
- गठन: 1966 में, पंजाब पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया, ताकि पंजाब राज्य के पुनर्गठन पर विचार किया जा सके।
- उद्देश्य: इस आयोग का उद्देश्य पंजाब राज्य के भीतर सिखों और हिंदी भाषियों के बीच संतुलन स्थापित करना था। इसके परिणामस्वरूप पंजाब को दो हिस्सों में विभाजित किया गया – एक पंजाबी भाषी राज्य के रूप में पंजाब और दूसरा हिंदी भाषी राज्य के रूप में हरियाणा।
- मुख्य सिफारिशें: इस आयोग ने सिखों के लिए पंजाब राज्य के गठन की सिफारिश की और हरियाणा को अलग राज्य के रूप में स्थापित किया।
3. मूल राज्य आयोग (State Reorganisation Committee)
- गठन: यह आयोग 1950 के दशक के अंत में बना था और इसके द्वारा मुख्य रूप से राज्यों की पुनः व्यवस्था और उनके बीच शक्तियों का विभाजन सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए थे।
1956 के बाद बनाए गए नए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (New States and Union Territories Created After 1956)
1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद, भारतीय संघ में कई नए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश बने। इसके तहत राज्य पुनर्गठन का एक प्रमुख उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना था।
1. नए राज्य
- आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) – 1953
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- आंध्र प्रदेश का गठन 1 अक्टूबर 1953 को हुआ। यह तेलुगु भाषी लोगों के लिए राज्य था और इसे भारतीय संविधान के तहत सबसे पहले भाषाई आधार पर पुनर्गठित राज्य के रूप में स्थापित किया गया।
- महाराष्ट्र और गुजरात (Maharashtra and Gujarat) – 1960
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- महाराष्ट्र और गुजरात का विभाजन 1 मई 1960 को हुआ। मराठी भाषी लोगों के लिए महाराष्ट्र और गुजराती भाषी लोगों के लिए गुजरात राज्य का गठन किया गया।
- कर्नाटक (Karnataka) – 1956
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- कर्नाटक राज्य का गठन 1956 में हुआ था, जब इसे कर्नाटका राज्य पुनर्गठन के तहत मद्रास राज्य और मैंगलोर क्षेत्र से मिलाकर बनाया गया।
- केरल (Kerala) – 1956
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- 1 नवम्बर 1956 को केरल राज्य का गठन हुआ, जिसमें मलयालम भाषी क्षेत्रों को मिलाकर राज्य बनाया गया।
- पंजाब और हरियाणा (Punjab and Haryana) – 1966
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- 1966 में पंजाब राज्य का पुनर्गठन किया गया और हरियाणा को अलग राज्य के रूप में स्थापित किया गया, जबकि पंजाबी भाषी राज्य के रूप में पंजाब का अस्तित्व बरकरार रखा गया।
- उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) – 1950s
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- उत्तर प्रदेश में अन्य राज्यों के आकार को ध्यान में रखते हुए कुछ सुधार और विभाजन हुआ।
- उत्तराखंड (Uttarakhand) – 2000
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- उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। इसे पहले उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था।
- छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) – 2000
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- छत्तीसगढ़ का गठन 1 नवम्बर 2000 को मध्य प्रदेश से विभाजन कर किया गया।
- झारखंड (Jharkhand) – 2000
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- झारखंड का गठन 15 नवम्बर 2000 को बिहार राज्य से अलग होकर हुआ।
- तेलंगाना (Telangana) – 2014
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- तेलंगाना राज्य का गठन 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से विभाजन कर किया गया।
2. केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories)
- लक्षद्वीप (Lakshadweep) – 1956
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- लक्षद्वीप को पहले एण्डमांस और निकोबार द्वीपसमूह से अलग किया गया और यह एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया।
- दिल्ली (Delhi) – 1956
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- दिल्ली को 1956 में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया, हालांकि बाद में दिल्ली को एक राज्य का दर्जा भी मिला।
- पुडुचेरी (Puducherry) – 1962
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- पुडुचेरी (जिसे पहले पांडिचेरी कहा जाता था) को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में 1962 में भारतीय संघ में शामिल किया गया।
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह (Andaman and Nicobar Islands) – 1956
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- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को 1956 में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया।
- चंडीगढ़ (Chandigarh) – 1966
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- चंडीगढ़ को 1966 में हरियाणा और पंजाब के बीच की राजधानी के रूप में केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया।
निष्कर्ष
भारत में राज्य पुनर्गठन और नए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का गठन भारतीय राजनीति और प्रशासन के लिए एक ऐतिहासिक कदम था। यह प्रक्रिया भारतीय समाज की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं को समाहित करने का प्रयास था। इसके माध्यम से भारत में समग्र और समान विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।
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