Rise of Nationalism in Europe in hindi

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Rise of Nationalism in Europe in hindi

19वीं सदी में यूरोप (Europe in the 19th Century) और राष्ट्रीयता का विचार (Idea of Nationalism in Europe)

19वीं सदी यूरोप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जहाँ राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक बदलावों ने यूरोप के कई देशों में राष्ट्रीयता (Nationalism) के विचार को जन्म दिया। यह विचार यूरोप में प्रचलित हुआ और यूरोपीय देशों में स्वतंत्रता, एकता, और आत्मनिर्भरता की भावना को प्रोत्साहित किया। राष्ट्रीयता का विचार यूरोपीय देशों के भीतर राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों के रूप में उभरा, जिससे नए राष्ट्रों का गठन हुआ और पुरानी साम्राज्यवादी शक्तियाँ कमजोर पड़ीं।

19वीं सदी में यूरोप का सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:

  1. यूरोप में राजशाही और साम्राज्यवादी शासन: 19वीं सदी की शुरुआत में यूरोप में प्रमुख रूप से राजशाही शासन प्रचलित था। फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया, और स्पेन जैसे देशों में साम्राज्यवादी शासन व्यवस्था थी। यूरोपीय देशों में बड़े साम्राज्य और शक्तियाँ मौजूद थीं, और इन साम्राज्यवादी शक्तियों ने अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए विभिन्न उपनिवेशों और राष्ट्रों का शोषण किया था।
  2. नेपोलियन युद्ध और उनकी भूमिका: नेपोलियन बोनापार्ट की शक्ति ने यूरोप में नए राजनीतिक और सामाजिक बदलावों को जन्म दिया। नेपोलियन ने अपने साम्राज्य में कई सुधार किए, जैसे कि कानूनों का सुधार (Code Napoleon), शिक्षा और प्रशासन में सुधार, जो बाद में यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना को उत्तेजित करने में सहायक बने। नेपोलियन के आक्रमण और युद्ध ने यूरोपीय देशों में एक नए राजनीतिक परिदृश्य का निर्माण किया, जहाँ एकता और स्वतंत्रता की भावना को प्रोत्साहित किया गया।
  3. वियना कांग्रेस (1815): नेपोलियन की पराजय के बाद, 1815 में वियना कांग्रेस का आयोजन हुआ, जिसमें यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों ने अपने-अपने हितों के लिए एक समझौता किया। यह समझौता यूरोप में स्थिरता की ओर ले गया, लेकिन इसने राष्ट्रीयता की भावना को भी दबाने का प्रयास किया। हालांकि, इसके बावजूद यूरोप में विभिन्न देशों में राष्ट्रीयता के विचार की जड़ें गहरी होती गईं।

राष्ट्रीयता का विचार और उसके प्रभाव:

  1. राष्ट्रीयता का उदय: 19वीं सदी के दौरान यूरोप में राष्ट्रीयता का विचार तेजी से फैलने लगा। राष्ट्रीयता का मतलब था कि लोग एक साझा भाषा, संस्कृति, इतिहास, और परंपराओं के आधार पर एक राष्ट्र के रूप में एकजुट हों। यह विचार विशेष रूप से उस समय के यूरोपीय देशों में उभरकर सामने आया, जिनमें विविध जातीय और सांस्कृतिक समूह मौजूद थे।
  2. रोमांटिक आंदोलन और राष्ट्रीयता: 19वीं सदी में यूरोप में रोमांटिक आंदोलन ने साहित्य, कला, और संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रीयता के विचार को बढ़ावा दिया। रोमांटिक लेखक, चित्रकार, और संगीतकारों ने अपने राष्ट्र की महानता को प्रदर्शित करने के लिए रचनाएँ लिखी, जो राष्ट्रीय भावना को मजबूत करती थीं। इस आंदोलन के प्रमुख हस्तियों में जोहान वोल्फगैंग वॉन गोएथे, रिचर्ड वाग्नर, और विक्टर ह्यूगो जैसे नाम शामिल थे।
  3. क्रांतिकारी आंदोलनों का उदय: 19वीं सदी में यूरोप में विभिन्न क्रांतिकारी आंदोलन उभरे, जिन्होंने राष्ट्रीयता की भावना को और अधिक प्रबल किया। फ्रांस, ग्रीस, और इटली जैसे देशों में स्वतंत्रता संग्रामों ने यूरोपीय राष्ट्रों में एकता और स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा दिया। इन आंदोलनों ने यह संदेश दिया कि लोग अपनी संस्कृति, भाषा, और परंपराओं के आधार पर एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना कर सकते हैं।
  4. यूरोपीय राज्यों में एकता और विभाजन: 19वीं सदी के अंत तक, यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना ने कई देशों में एकता की ओर कदम बढ़ाए। उदाहरण के लिए, 1871 में जर्मनी का एकीकरण हुआ, जब प्रशिया के नेतृत्व में जर्मन राज्यों को एकजुट किया गया। इसी प्रकार, इटली में भी 1861 में एकीकरण हुआ।

दूसरी ओर, कुछ देशों में राष्ट्रीयता की भावना ने विभाजन को भी जन्म दिया। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य और ओटोमेन साम्राज्य में विभिन्न जातीय समूहों के बीच संघर्ष हुआ, जिससे इन साम्राज्यों का पतन हुआ और नए राष्ट्रों का निर्माण हुआ।

  1. समाजवाद और राष्ट्रीयता: 19वीं सदी में समाजवाद और राष्ट्रवाद का मिश्रण भी देखा गया। समाजवादियों ने श्रमिकों और किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जबकि राष्ट्रीयतावादियों ने स्वतंत्र राष्ट्रों की स्थापना की ओर कदम बढ़ाया। इन दोनों विचारधाराओं के बीच संघर्ष और सहमति का परिदृश्य यूरोप के राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण था।

निष्कर्ष:

19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रीयता का विचार एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा। यह विचार यूरोपीय देशों में एकता और स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा देने वाला था। साथ ही, यह विचार यूरोप के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलावों का कारण बना, जिसके परिणामस्वरूप नए राष्ट्रों का निर्माण हुआ और पुराने साम्राज्य टूट गए। राष्ट्रीयता का यह विचार आज भी विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में अस्तित्व में है।

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यूरोप में राष्ट्रीयता के उदय से संबंधित प्रमुख घटनाएँ (Major Events Regarding the Rise of Nationalism in Europe)

19वीं सदी के दौरान यूरोप में राष्ट्रीयता के विचार ने महत्वपूर्ण बदलावों और संघर्षों को जन्म दिया। यह एक ऐसा काल था जब विभिन्न देशों में लोग एक साझा संस्कृति, भाषा, और इतिहास के आधार पर एकजुट होने लगे। इसने यूरोपीय राजनीति में एक नई दिशा दी और कई देशों में राष्ट्र-राज्य की स्थापना की।

कुछ प्रमुख घटनाएँ जो यूरोप में राष्ट्रीयता के उदय से जुड़ी हैं, वे निम्नलिखित हैं:

  1. फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) (1789): फ्रांसीसी क्रांति ने यूरोप में राष्ट्रीयता के विचार को प्रबल किया। इस क्रांति ने न केवल फ्रांस में बल्कि पूरे यूरोप में शासन, राजनीति और समाज के ढांचे को बदल दिया। “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” के नारों के साथ यह आंदोलन यह दिखाता था कि एक राष्ट्र को एक साझा संस्कृति और नागरिक अधिकारों की आवश्यकता है। फ्रांसीसी क्रांति ने एक नए प्रकार के राष्ट्रीय विचार को जन्म दिया, जो यह मानता था कि राष्ट्र का गठन नागरिकों की इच्छा और उनकी समानता पर आधारित होना चाहिए।
  2. वियना कांग्रेस (Vienna Congress) (1815): नेपोलियन की पराजय के बाद, 1815 में वियना कांग्रेस का आयोजन हुआ, जिसमें यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों ने शांति स्थापित करने के उद्देश्य से समझौते किए। वियना कांग्रेस ने यूरोप में पुरानी साम्राज्यवादी शक्तियों को पुनः स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन इसने राष्ट्रीयता के विचार को दबाने की कोशिश की। इसके बावजूद, यूरोप में कई जगहों पर एक नई राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई।
  3. ग्रेस्को-तुर्की युद्ध (Greek War of Independence) (1821-1830): ग्रीस ने 1821 में तुर्की के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया और 1830 में स्वतंत्रता प्राप्त की। यह घटना यूरोप में राष्ट्रीयता के उभार को और मजबूत करने वाली थी। ग्रीस की स्वतंत्रता ने यूरोपीय राष्ट्रों को यह संदेश दिया कि राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना से राष्ट्रों का गठन किया जा सकता है।
  4. इटली का एकीकरण (Italian Unification) (1861): 19वीं सदी में इटली में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों का समूह था। राष्ट्रीयता की भावना के कारण, इटली के विभिन्न क्षेत्रों में एकता के लिए आंदोलन चला। 1861 में, सवोया के राजा विक्टर इमैनुएल II के नेतृत्व में इटली का एकीकरण हुआ और एक साझा राष्ट्र का निर्माण हुआ।
  5. जर्मनी का एकीकरण (German Unification) (1871): जर्मनी में भी कई छोटे-छोटे राज्य थे। प्रुसिया के प्रधानमंत्री ओटो वॉन बिस्मार्क ने जर्मन राज्यों को एकजुट करने के लिए एक संघर्षपूर्ण नीति अपनाई। 1871 में जर्मनी का एकीकरण हुआ, और यह एक नया, शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। जर्मनी के एकीकरण ने राष्ट्रीयता की भावना को यूरोप के अन्य हिस्सों में भी प्रेरित किया।

फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र के विचार (French Revolution and the Idea of the Nation)

फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रीयता के विचार को एक नया मोड़ दिया। फ्रांस में उठे इस आंदोलन ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि राष्ट्र का निर्माण सिर्फ क्षेत्रीय विस्तार या शाही परिवार के अधीन नहीं, बल्कि जनता की इच्छा और समान अधिकारों पर आधारित होना चाहिए।

  1. क्रांति के नारे – “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व”: फ्रांसीसी क्रांति के समय “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” के नारे ने न केवल फ्रांस में बल्कि समूचे यूरोप में राष्ट्रीयता के विचार को प्रभावित किया। यह विचार कि एक राष्ट्र का आधार नागरिकों की समानता और स्वतंत्रता पर होना चाहिए, यूरोप के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगा।
  2. संविधान और नागरिक अधिकार: फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, “मानीफेस्टो ऑफ़ द राइट्स ऑफ़ मैन” (Declaration of the Rights of Man and Citizen) को अपनाया गया, जिसमें यह घोषित किया गया कि सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए और शासन का प्रमुख उद्देश्य जनहित होना चाहिए। यह एक नई अवधारणा थी, जिसमें राष्ट्र को नागरिकों की साझा इच्छा और समान अधिकारों पर आधारित माना गया।
  3. नवीन राष्ट्रीयता का विचार: फ्रांसीसी क्रांति ने यूरोप में “राष्ट्र” के विचार को परिभाषित किया, जो केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक सामूहिकता थी। राष्ट्रवाद के तहत, एक राष्ट्र में नागरिकों को समान अधिकार और कर्तव्यों का पालन करना था। यह विचार और विचारधारा यूरोप के अन्य देशों में भी फैलने लगी।
  4. नेपोलियन का प्रभाव: फ्रांसीसी क्रांति के बाद, नेपोलियन बोनापार्ट ने यूरोप के अधिकांश हिस्सों में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और फ्रांसीसी संविधान, कानूनी सुधारों और “नैपोलियन कोड” को लागू किया। इससे राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा मिला, क्योंकि यह विचार कि एक राष्ट्र का गठन नागरिकों की समानता और कानून पर आधारित होना चाहिए, यूरोप में गहरी जड़ें जमा रहा था।

निष्कर्ष:

फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रीयता के विचार को नए रूप में प्रस्तुत किया और इसे यूरोप और दुनिया भर में फैलने का अवसर दिया। “राष्ट्र” का विचार केवल राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक एकता का प्रतीक बन गया। फ्रांसीसी क्रांति और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए विचारों ने यूरोप में कई क्रांतिकारी आंदोलनों को जन्म दिया और राष्ट्रीयता की भावना को एक शक्तिशाली बल के रूप में उभारा।

वियना कांग्रेस (Congress of Vienna)

वियना कांग्रेस 1814-1815 में आयोजित एक ऐतिहासिक सम्मेलन था, जिसे नेपोलियन बोनापार्ट की पराजय के बाद यूरोप में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। यह कांग्रेस यूरोप के विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित की गई थी, जिनमें प्रमुख थे ऑस्ट्रिया के चांसलर क्लीमेंस वॉन मेटर्निच, ब्रिटेन के विदेश मंत्री लॉर्ड कैस्टलरेग, और रूस के Tsar अलेक्जेंडर I। इसका उद्देश्य यूरोप में राजनीतिक और कूटनीतिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना था ताकि पुनः किसी भी विशाल युद्ध को टाला जा सके।

वियना कांग्रेस के प्रमुख उद्देश्य:

  1. नेपोलियन के साम्राज्य का विघटन: कांग्रेस का सबसे प्रमुख कार्य नेपोलियन द्वारा स्थापित किए गए साम्राज्य का पुनर्निर्माण और उसे समाप्त करना था। इसके परिणामस्वरूप, यूरोप के विभिन्न हिस्सों को पुराने साम्राज्यवादी ढांचे में वापस लाया गया।
  2. पुनर्निर्माण और सीमा निर्धारण: वियना कांग्रेस ने यूरोपीय देशों की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया। यूरोप के पुराने साम्राज्य और राज्य पुनः अस्तित्व में आए, जैसे ऑस्ट्रियाई साम्राज्य, प्रुशिया, ब्रिटेन, रूस आदि।
  3. स्थिरता और शांति की स्थापना: कांग्रेस का एक और उद्देश्य यूरोप में स्थिरता और शांति की स्थापना था, ताकि भविष्य में यूरोप में बड़ी युद्धों से बचा जा सके। यह कोशिश की गई कि संतुलन बनाए रखा जाए, और कोई भी शक्ति यूरोप में अत्यधिक शक्तिशाली न हो।
  4. संवैधानिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा: हालांकि वियना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य यूरोप में शांति और व्यवस्था बनाए रखना था, लेकिन इसे पूरी तरह से संवैधानिक और लोकतांत्रिक सुधारों के लिए सकारात्मक नहीं माना गया। यह मुख्य रूप से राजशाही शक्तियों को बनाए रखने और लोकतांत्रिक विचारों को दबाने का प्रयास था।

वियना कांग्रेस का प्रभाव:

  1. यूरोप में शांति स्थापित की गई: वियना कांग्रेस के बाद, यूरोप में 1815 से 1914 तक एक लंबा शांति का काल रहा, जिसे “लॉन्ग पीस” कहा जाता है।
  2. राजशाही का पुनर्निर्माण: वियना कांग्रेस ने यूरोप में राजशाही सत्ता को पुनः स्थापित किया और इसे मजबूत किया, जिससे लोकतांत्रिक विचारों और गणराज्य की वृद्धि को बाधित किया।

क्रांतियों का युग (Age of Revolutions) 1830-1848

1830 और 1848 के बीच यूरोप में क्रांतियों का एक युग था, जो विशेष रूप से राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन की ओर इंगीत करता है। यह काल राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मांगों के कारण उथल-पुथल और संघर्षों से भरा था।

  1. 1830 की फ्रांसीसी क्रांति: 1830 में फ्रांस में एक और क्रांति हुई, जिसे “जुली क्रांति” कहा जाता है। यह क्रांति चार्ल्स दसवें के संवैधानिक परिवर्तन के विरोध में हुई, जिनकी शाही शासन व्यवस्था ने जनता के अधिकारों पर हमला किया था। इस क्रांति के परिणामस्वरूप, चार्ल्स दसवें को गद्दी छोड़नी पड़ी और लुई-फिलिप को “राजा के रूप में” स्वीकार किया गया। इसे “किंग-ऑफ-द-बॉर्ड” के रूप में भी जाना जाता है, जो संविधान और लोकप्रिय चुनावों के समर्थन में था।
  2. 1830 की यूरोपीय क्रांतियाँ: 1830 में न केवल फ्रांस में, बल्कि पूरे यूरोप में कई क्रांतियाँ हुईं, जिनका उद्देश्य स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्रीयता के लिए संघर्ष करना था। बेल्जियम, पोलैंड और इटली में स्वतंत्रता संग्राम हुए। बेल्जियम ने नीदरलैंड से स्वतंत्रता प्राप्त की, जबकि पोलैंड में रूस के खिलाफ एक विद्रोह हुआ।
  3. 1848 की क्रांति: 1848 का वर्ष यूरोप में क्रांतियों का “वसंत” कहा जाता है, क्योंकि यूरोप के अधिकांश देशों में व्यापक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असंतोष के कारण विद्रोह हुए। इसे “फरवरी क्रांति” (France), “मार्च क्रांति” (Germany), और “मई क्रांति” (Austria) के नाम से जाना जाता है। इन क्रांतियों ने यूरोप में लोकतांत्रिक सुधारों की मांग को मजबूत किया।
  • फ्रांस: 1848 में फ्रांस में दूसरी फ्रांसीसी क्रांति हुई, जिसने लोकसभा चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की। इसने फ्रांस को एक गणराज्य में परिवर्तित किया और लुई-फिलिप को सत्ता से हटा दिया।
  • जर्मनी और ऑस्ट्रिया: जर्मनी और ऑस्ट्रिया में भी क्रांतियाँ हुईं, जहां लोग संविधान, नागरिक अधिकारों, और लोकतांत्रिक सरकार की मांग कर रहे थे। हालांकि, इन क्रांतियों को तत्काल सफलता नहीं मिली, लेकिन यह यूरोप में समाजवादी और राष्ट्रीयतावादी आंदोलनों को प्रभावित करने वाली घटनाएँ थीं।
  1. क्रांतियों का विफल होना और प्रभाव: इन क्रांतियों के परिणामस्वरूप तत्काल सफलता नहीं मिली, लेकिन लंबे समय में इनका बड़ा प्रभाव पड़ा। इन क्रांतियों ने यूरोप में लोकतांत्रिक विचारों और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया। इसके परिणामस्वरूप, यूरोप में कई देशों में धीरे-धीरे संवैधानिक और लोकतांत्रिक सुधारों की शुरुआत हुई, जो 20वीं सदी में प्रमुख राजनीतिक बदलावों का आधार बने।

निष्कर्ष: 1830-1848 का काल यूरोप में क्रांतिकारी परिवर्तन का था, जिसने यूरोपीय समाज और राजनीति को स्थायी रूप से बदल दिया। यह युग राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता, और लोकतंत्र के विचारों के प्रसार के रूप में इतिहास में याद किया जाता है।

इटली का एकीकरण (Unification of Italy)

इटली का एकीकरण एक लंबी और संघर्षपूर्ण प्रक्रिया थी, जो 19वीं सदी के मध्य में हुई। इटली पहले कई छोटे-छोटे राज्यों और राजतंत्रों में बंटा हुआ था, जैसे सардिनिया, तस्कनी, नेपल्स, रोम और वेनिस। इन राज्यों को एकजुट करने के लिए राष्ट्रीयता की भावना और क्रांतिकारी विचारों का बहुत बड़ा योगदान था। इटली का एकीकरण मुख्य रूप से सवॉय परिवार के राजा विक्टर इमैनुएल II, काउंते कावूर, और गैरीबाल्डी जैसे प्रमुख नेताओं के नेतृत्व में हुआ।

इटली के एकीकरण के प्रमुख कारण:

  1. राष्ट्रीयता का उदय: 19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई, और इटली के विभिन्न हिस्सों के लोग एक साझा संस्कृति, भाषा और इतिहास के आधार पर एकजुट होने लगे।
  2. बाहर से दबाव: फ्रांस, ऑस्ट्रिया और स्पेन जैसी शक्तियों द्वारा इटली के छोटे राज्यों पर काबू पाने की कोशिशों ने इटली में एकजुटता की आवश्यकता को महसूस कराया।
  3. साम्राज्यवादी प्रभाव: यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ, जैसे ऑस्ट्रिया, इटली के अधिकांश हिस्सों पर काबिज थीं। इटली के लोग इन विदेशी शक्तियों से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे।

इटली के एकीकरण की मुख्य घटनाएँ:

  1. सारडिनिया-पिअमोंट का नेतृत्व: सवॉय के राजा विक्टर इमैनुएल II और उनके प्रधानमंत्री काउंट कावूर ने इटली के एकीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इटली में अन्य देशों के खिलाफ युद्धों का नेतृत्व किया और अपने साम्राज्य में कई राज्यों को शामिल किया।
  2. गैरीबाल्डी का आंदोलन: गैरीबाल्डी, इटली के एक महान क्रांतिकारी नेता थे, जिन्होंने लाल शर्टों” (Red Shirts) के नाम से एक मिलिशिया बनाई। उन्होंने दक्षिणी इटली में स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और नेपल्स और सिसिली को सवॉय साम्राज्य में शामिल किया।
  3. ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध: 1859 में इटली ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध लड़ा और सवॉय साम्राज्य को सशक्त किया। कावूर की कूटनीति और गैरीबाल्डी के सैन्य नेतृत्व के कारण इटली का अधिकांश हिस्सा एकजुट हो गया।
  4. रोम का अधिग्रहण (1870): 1870 में, रोम को पवित्र रोमन साम्राज्य और पोप की शक्ति से मुक्त कर लिया गया, और यह इटली के एकीकरण का अंतिम चरण था।

इटली का एकीकरण परिणाम:

  • 1861 में इटली के विभिन्न हिस्सों का एकीकरण हुआ और विक्टर इमैनुएल II को इटली का पहला राजा घोषित किया गया।
  • इटली का एकीकरण न केवल एक नया राष्ट्र राज्य स्थापित करने में मददगार रहा, बल्कि इसने पूरे यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहित किया।

जर्मनी का एकीकरण (Unification of Germany)

जर्मनी का एकीकरण भी इटली के एकीकरण की तरह एक लंबी और संघर्षपूर्ण प्रक्रिया थी। जर्मनी उस समय कई छोटे-छोटे राज्यों और कूटनीतिक इकाइयों में बंटा हुआ था। जर्मनी का एकीकरण मुख्य रूप से प्रुशिया के प्रधानमंत्री ओटो वॉन बिस्मार्क के नेतृत्व में हुआ। बिस्मार्क ने “रक्त और लोहे” (Blood and Iron) की नीति के तहत जर्मन राज्यों को एकजुट किया।

जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख कारण:

  1. राष्ट्रीयता का उदय: जैसे इटली में, जर्मनी में भी राष्ट्रीयता का विचार फैल रहा था। लोग जर्मन राज्यों के बीच एकजुटता की भावना से प्रेरित थे।
  2. प्रुशिया की शक्ति: प्रुशिया की सैन्य शक्ति और उसकी राजनीतिक स्थिरता ने जर्मन राज्यों के एकीकरण में मदद की।
  3. ऑस्ट्रिया का विरोध: ऑस्ट्रिया, जो जर्मन राज्यों का हिस्सा था, जर्मनी के एकीकरण के खिलाफ था, क्योंकि उसे अपने प्रभाव को खोने का डर था।

जर्मनी के एकीकरण की मुख्य घटनाएँ:

  1. डेनिश युद्ध (1864): बिस्मार्क ने डेनमार्क के खिलाफ युद्ध में जीत हासिल की और श्लेस्विग और होल्स्टीन को जर्मन राज्यों के नियंत्रण में ला दिया।
  2. ऑस्ट्रो-प्रुशियाई युद्ध (1866): बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को हराया और जर्मन परिसंघ को खत्म कर दिया, जिससे उत्तरी जर्मनी को एकजुट किया गया। ऑस्ट्रिया को जर्मनी के एकीकरण से बाहर रखा गया।
  3. फ्रेंको-प्रुशियाई युद्ध (1870-71): बिस्मार्क ने फ्रांस के खिलाफ युद्ध लड़ा, जो जर्मनी के एकीकरण के अंतिम चरण को पूरा करने के लिए आवश्यक था। इस युद्ध में फ्रांस की हार ने दक्षिण जर्मन राज्यों को प्रुशिया के साथ जोड़ दिया।
  4. जर्मनी का एकीकरण (1871): 1871 में, बिस्मार्क ने जर्मनी का औपचारिक रूप से एकीकरण किया और किंग विल्हेम I को जर्मनी का सम्राट (Kaiser) घोषित किया।

जर्मनी का एकीकरण परिणाम:

  • 1871 में जर्मनी का एकीकरण हुआ और यह एक शक्तिशाली साम्राज्य बन गया।
  • जर्मनी का एकीकरण यूरोप में शक्ति संतुलन को बदलने में महत्वपूर्ण था, और इसने जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष:

इटली और जर्मनी दोनों का एकीकरण यूरोप में राष्ट्रीयता और राजनीतिक एकता के उदय को दर्शाता है। इन दोनों देशों के एकीकरण से यह स्पष्ट हुआ कि युद्ध, कूटनीति और नेतृत्व के माध्यम से कई छोटे-छोटे राज्यों को एकजुट किया जा सकता है। इन घटनाओं ने यूरोपीय राजनीति को नया मोड़ दिया और 20वीं सदी के प्रारंभ में दोनों देशों को महान शक्तियों के रूप में स्थापित किया।

FAQ

1. यूरोप में राष्ट्रीयता का उदय कब और कैसे हुआ?

यूरोप में राष्ट्रीयता का उदय 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान हुआ। फ्रांसीसी क्रांति (1789) और नेपोलियन युद्धों (1799-1815) ने राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। औद्योगिक क्रांति और राजनीतिक आंदोलनों के कारण विभिन्न देशों में स्वतंत्रता और एकता की भावना मजबूत हुई।

2. नेपोलियन बोनापार्ट ने यूरोप में राष्ट्रवाद को कैसे बढ़ावा दिया?

उत्तर:नेपोलियन ने पूरे यूरोप में फ्रांसीसी कानून (Napoleonic Code) लागू किया, जिससे समानता और कानूनी सुधार हुए।, लेकिन उसकी विस्तारवादी नीति ने कई देशों में विरोध और राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया।, कई यूरोपीय देशों में नेपोलियन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुए।

3. फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने यूरोपीय राष्ट्रवाद को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर:समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व (Liberty, Equality, Fraternity) के विचार को बढ़ावा दिया।, निरंकुश राजशाही को खत्म करने की प्रेरणा दी।, नागरिकों को एक साझा पहचान और अधिकार दिए।, फ्रांस में गणराज्य की स्थापना हुई, जिससे अन्य यूरोपीय देशों को भी प्रेरणा मिली।

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