Rowlatt act in hindi
रौलट एक्ट की पृष्ठभूमि (Background of the Rowlatt Act)
रौलट एक्ट, जिसे “Anarchical and Revolutionary Crimes Act of 1919” भी कहा जाता है, ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के उद्देश्य से 1919 में पारित किया गया था। यह एक्ट महात्मा गांधी द्वारा नेतृत्व किए गए आंदोलनों के प्रति ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया के रूप में आया, जो भारतीयों के अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे थे। रौलट एक्ट का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए जा रहे राजनीतिक विरोधों को कुचलना था।
रौलट एक्ट के पारित होने के कारण:
- प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
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- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद ब्रिटिश शासन भारतीयों से अधिक सहयोग की उम्मीद कर रहा था। हालांकि, युद्ध के दौरान भारतीयों ने बहुत बड़ा योगदान दिया, लेकिन युद्ध के बाद भारतीयों को उनके सहयोग का उचित पुरस्कार नहीं दिया गया। इसके कारण भारतीयों में असंतोष और विद्रोह की भावना बढ़ी।
- गांधी जी का आंदोलन
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- महात्मा गांधी द्वारा नन-कोऑपरेशन आंदोलन और खिलाफत आंदोलन जैसे आंदोलनों के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन जागरूकता और विरोध बढ़ गया था। रौलट एक्ट इस बढ़ते विरोध को दबाने का एक प्रयास था।
- जालियांवाला बाग हत्याकांड
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- रौलट एक्ट को लागू करने का एक प्रमुख कारण जालियांवाला बाग हत्याकांड था, जब 1919 में जनरल डायर ने अमृतसर में शांतिपूर्वक सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों पर गोलियां चलवाकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के खिलाफ और कड़े कदम उठाने की योजना बनाई, जिससे रौलट एक्ट को लागू किया गया।
रौलट एक्ट 1919 के विशेषताएँ (Features of the Rowlatt Act 1919)
रौलट एक्ट, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार किया गया था और इसमें कई कठोर प्रावधान थे:
1. बिना मुकदमे के गिरफ्तारी की शक्ति (Arrest without Trial)
- रौलट एक्ट के तहत, ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिल गया था कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना किसी आरोप या मुकदमे के गिरफ्तार कर सकती थी। यह प्रावधान भारतीयों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उठाए गए विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए था।
2. सशस्त्र विरोध पर प्रतिबंध (Ban on Armed Protest)
- इस एक्ट के तहत, सरकार ने सशस्त्र विरोध या किसी भी प्रकार के हिंसक आंदोलन पर प्रतिबंध लगाया था। भारतीयों को बिना सरकारी अनुमति के कोई भी सार्वजनिक सभा या प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं थी।
3. प्रेस की स्वतंत्रता पर नियंत्रण (Control over the Press)
- रौलट एक्ट के तहत प्रेस की स्वतंत्रता पर कड़ी निगरानी रखी गई। समाचार पत्रों और लेखकों को यह चेतावनी दी गई कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ कोई भी विरोध या आलोचना न करें। इसमें यह प्रावधान था कि किसी भी व्यक्ति को “खतरनाक” माना जा सकता था, और उसकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।
4. न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिबंध (Restrictions on Judicial Process)
- इस एक्ट के तहत, किसी भी व्यक्ति को बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के लंबी अवधि के लिए हिरासत में रखा जा सकता था। न्यायालयों में मुकदमे की सुनवाई नहीं होती थी, और ब्रिटिश अधिकारियों को अपनी मर्जी से किसी भी भारतीय को गिरफ्तार करने का अधिकार था।
5. विशेष न्यायालयों की स्थापना (Establishment of Special Courts)
- रौलट एक्ट के तहत विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई, जहां बिना किसी सार्वजनिक सुनवाई के किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता था। इन विशेष अदालतों में सरकारी अधिकारी अभियुक्तों के खिलाफ बिना उचित प्रमाण के निर्णय ले सकते थे।
6. असहमति के खात्मे के लिए सख्ती (Strict Measures to End Dissent)
- यह एक्ट भारतीयों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसी भी प्रकार के असहमति या विरोध को सख्ती से दबाने के उद्देश्य से था। किसी भी भारतीय को केवल शंका के आधार पर जेल में डाला जा सकता था और उसे बिना किसी आरोप के बंद किया जा सकता था।
निष्कर्ष
रौलट एक्ट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक क्रांतिकारी मोड़ था। इस एक्ट ने भारतीयों की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाए और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया। इसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में असंतोष और विरोध की लहर चली, और इसके खिलाफ 1919 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। गांधी जी ने रौलट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत की, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक मजबूत बनाने का कारण बना। इस एक्ट का विरोध और उसके परिणामस्वरूप हुआ जालियांवाला बाग हत्याकांड, भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्से को और बढ़ावा दिया।
रौलट एक्ट सत्याग्रह की शुरुआत (Start of the Rowlatt Satyagraha)
रौलट एक्ट 1919 के पारित होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी ने इस एक्ट के खिलाफ विरोध करने का निर्णय लिया। गांधी जी ने इसे भारतीय जनता की स्वतंत्रता पर एक बड़ा हमला माना और इसे अहिंसक तरीके से विरोध करने का आह्वान किया। रौलट सत्याग्रह की शुरुआत गांधी जी के नेतृत्व में हुई, जिसमें भारतीयों से अपील की गई कि वे रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करें।
रौलट सत्याग्रह का उद्देश्य था:
- रौलट एक्ट का विरोध करना, जिसे भारतीयों की स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ बताया गया।
- हिंसा से मुक्त आंदोलन के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन जागरूकता फैलाना।
- नन–कोऑपरेशन आंदोलन के सिद्धांतों का पालन करते हुए भारतीयों को सरकारी संस्थाओं से बहिष्कार करने के लिए प्रेरित करना।
गांधी जी ने 1919 में दिल्ली में रौलट सत्याग्रह शुरू किया। उन्होंने भारतीयों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार के हिंसक संघर्ष से बचें और केवल शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करें। रौलट सत्याग्रह के तहत प्रदर्शन, हड़तालें और असहमति के शांतिपूर्ण तरीके अपनाए गए।
जालियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)
रौलट सत्याग्रह के विरोध प्रदर्शन के दौरान 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जालियांवाला बाग में एक बहुत ही दुखद घटना घटी, जिसे जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
घटना का विवरण:
- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में एक सार्वजनिक सभा हो रही थी, जिसमें लगभग 20,000 लोग इकट्ठा हुए थे। इस सभा का उद्देश्य रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करना था।
- ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर ने सभा स्थल पर अपने सैनिकों को भेजा और बिना किसी चेतावनी के सीधे लोगों पर गोलियाँ चला दीं।
- डायर के आदेश पर सैनिकों ने लगभग 10 मिनट तक लगातार गोलीबारी की, जिससे सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए।
- यह घटना भारतीयों के लिए अत्यधिक आक्रोश और गुस्से का कारण बनी। जालियांवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों में विरोध की एक नई लहर पैदा की और स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तेज़ कर दिया।
रौलट सत्याग्रह का प्रभाव और महत्व (Impact and Significance of Rowlatt Satyagraha)
रौलट सत्याग्रह और जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गहरी छाप छोड़ी। इसके कुछ प्रमुख प्रभाव और महत्व निम्नलिखित हैं:
1. भारतीयों में जागरूकता और गुस्सा
- रौलट सत्याग्रह ने भारतीयों को यह एहसास कराया कि ब्रिटिश सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय समाज में आक्रोश की लहर पैदा की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध को और तेज़ कर दिया।
2. गांधी जी का नेतृत्व और जन समर्थन
- गांधी जी ने रौलट सत्याग्रह के माध्यम से अपने नेतृत्व को भारतीय जनता के बीच मजबूत किया। यह आंदोलन भारतीयों के लिए गांधी जी को एक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने का अवसर बना। गांधी जी ने शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष की रणनीति अपनाकर भारतीयों को अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
3. ब्रिटिश शासन के खिलाफ बढ़ता विरोध
- रौलट सत्याग्रह ने भारतीयों को अपनी ताकत और एकता का एहसास कराया। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़े और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली।
4. कांग्रेस का अधिक सक्रियता
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रौलट सत्याग्रह के जरिए अपने आंदोलनों को और अधिक सक्रिय किया। यह सत्याग्रह कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण आंदोलन साबित हुआ, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गति को बढ़ाने में सहायक था।
5. विभाजन और सामूहिक संघर्ष
- रौलट सत्याग्रह के बाद भारतीय समाज में एकता की भावना और बढ़ी। भारतीयों ने आपसी भेदभाव को भूलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास किया। यह आंदोलन भारतीय राजनीति में विभाजन और संघर्ष के बजाय एकजुटता की ओर बढ़ने का संकेत था।
6. ब्रिटिश शासन पर दबाव
- जालियांवाला बाग हत्याकांड और रौलट सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता के विरोध का सामना करना पड़ा। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन पर दबाव डाला और भारतीयों की स्वतंत्रता की मांग को और अधिक मजबूती दी।
7. सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों का प्रसार
- रौलट सत्याग्रह ने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा बना दिया। गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन एक शक्तिशाली अहिंसक संघर्ष बन गया, जिसने भारतीय समाज में अहिंसा की शक्ति को सिद्ध किया।
निष्कर्ष
रौलट सत्याग्रह और जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इसने भारतीयों को एकजुट होने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गति देने में सहायक बना।
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