Sangam Age and Literature in hindi
संगम युग (Sangam Age)
संगम युग दक्षिण भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड है, जिसे तमिल साहित्य, संस्कृति, और सामाजिक संरचना के उत्कर्ष के लिए जाना जाता है। यह लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक फैला हुआ माना जाता है। इस काल का नाम ‘संगम’ तमिल साहित्यिक सभाओं से लिया गया है, जो विद्वानों और कवियों के समूह थे।
संगम युग की विशेषताएँ
1. संगम साहित्य
- संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखा गया है।
- इसमें कविता, प्रेम, युद्ध, समाज, और राजनीति के विषय शामिल हैं।
- प्रमुख ग्रंथ:
- एतुत्तोकै (आठ संग्रहीत संग्रह)
- पट्टुपट्टु (दस गाथाएँ)
- तिरुक्कुरल (तिरुवल्लुवर द्वारा लिखित)।
2. संगम सभाएँ
- संगम युग के दौरान तीन संगम सभाएँ आयोजित की गईं।
- यह सभाएँ मदुरै, कपाटपुरम और कावेरीपत्तनम में आयोजित हुईं।
- तीसरी संगम सभा सबसे प्रसिद्ध थी और इसका केंद्र मदुरै था।
3. सामाजिक संरचना
- संगम युग में समाज को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया था:
- अरसर (राजा)
- कनिकर (कृषक)
- वेळालर (जमींदार)
- उलावर (श्रमिक)।
- महिलाओं को उच्च स्थान दिया गया और उन्हें शिक्षा तथा साहित्य में योगदान का अधिकार था।
4. राजनीति और शासन
- इस काल में चेर, चोल, और पांड्य राजवंशों का शासन था।
- चेर वंश: पश्चिमी तमिलनाडु और केरल पर शासन।
- चोल वंश: कावेरी नदी के क्षेत्र पर शासन।
- पांड्य वंश: मदुरै और आसपास के क्षेत्र।
- राजा का प्रमुख कार्य रक्षा करना और न्याय प्रदान करना था।
5. अर्थव्यवस्था
- कृषि, पशुपालन, और व्यापार इस युग की मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ थीं।
- प्रमुख फसलें: चावल, बाजरा, गन्ना।
- व्यापार: समुद्री और थलमार्ग के माध्यम से रोमन साम्राज्य, अरब, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार होता था।
- बंदरगाह शहर: कावेरीपत्तनम, मुजिरिस, अरिकामेडु।
6. धर्म और संस्कृति
- इस युग में हिंदू धर्म, जैन धर्म, और बौद्ध धर्म का प्रभाव था।
- देवताओं की पूजा:
- मुरुगन (युद्ध और विजय के देवता)।
- कोट्ट्रवी (स्थानीय देवता)।
- संगम युग की कविताएँ प्रकृति और प्रेम को महत्वपूर्ण स्थान देती थीं।
7. संगम युग की कला और वास्तुकला
- इस युग में भव्य मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण नहीं हुआ, लेकिन कविता और साहित्य में कला का विकास हुआ।
- संगीत और नृत्य को उच्च महत्व दिया गया।
- उत्सव और धार्मिक अनुष्ठानों में नृत्य का प्रदर्शन किया जाता था।
8. महत्वपूर्ण ग्रंथ और कवि
- तिरुवल्लुवर: “तिरुक्कुरल” नामक नैतिक ग्रंथ के रचयिता।
- कपिलर: प्रसिद्ध संगम कवि।
- अन्य ग्रंथ: मनिमेखलई, शिलप्पदिकारम।
संगम युग का अंत
- संगम युग का अंत 3वीं शताब्दी ईस्वी में हुआ।
- इस युग के बाद पल्लव वंश का उदय हुआ, जिसने दक्षिण भारत में नई राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा को जन्म दिया।
संगम युग का महत्व
- संगम युग तमिलनाडु के साहित्य, समाज, और संस्कृति के विकास का स्वर्ण युग माना जाता है।
- यह काल भारत के दक्षिणी हिस्से के इतिहास और तमिल साहित्य की समृद्धि को समझने में मदद करता है।
संगम साहित्य (Sangam Literature)
संगम साहित्य दक्षिण भारत के प्राचीन तमिल साहित्य का प्रमुख भाग है, जो विशेष रूप से तमिल नाडु में विकसित हुआ। यह साहित्य लगभग 3000 साल पुराना माना जाता है और इसका नाम “संगम” शब्द से आया है, जिसका अर्थ है “साहित्यिक सभा”। यह साहित्य तमिल साहित्य का आधार बनकर उभरा और भारतीय साहित्य की समृद्ध धरोहर का हिस्सा है।
संगम साहित्य को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा जाता है:
- अक़म (Akam) – प्रेम, व्यक्तिगत जीवन और भावनाओं पर आधारित।
- पुरल (Puram) – युद्ध, राजनीति और सार्वजनिक जीवन पर आधारित।
- इहियाल (Ihiyal) – धार्मिक और दार्शनिक विचार।
संगम साहित्य की रचनाएँ प्राचीन तमिल समाज की संस्कृति, भाषा, धर्म, और सामाजिक स्थिति का गहरा वर्णन करती हैं। इस साहित्य में न केवल कविताओं और गीतों की उपस्थिति है, बल्कि इसमें तमिल समाज की राजनीति, युद्ध, प्रेम, दर्शन, और प्राकृतिक सौंदर्य का भी वर्णन किया गया है।
प्रारंभिक संगम साहित्य (Early Sangam Literature)
प्रारंभिक संगम साहित्य, जिसे प्रथम संगम और द्वितीय संगम के समय का साहित्य माना जाता है, भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह साहित्य मुख्य रूप से काव्य, गीत, और उपदेशों के रूप में संरक्षित है, और तमिल साहित्य की जड़ों को समझने में मदद करता है। प्रारंभिक संगम साहित्य में कुल मिलाकर दो हज़ार से अधिक कविताएँ शामिल हैं, जो तमिल ग्रंथों में संग्रहित हैं।
1. संगम साहित्य का युग
प्रारंभिक संगम साहित्य का समय लगभग 300 ईसा पूर्व से लेकर 300 ईस्वी तक माना जाता है। इसे काव्य युग कहा जाता है, जिसमें तमिल काव्य और साहित्यिक रचनाएँ समृद्ध हुईं। संगम साहित्य की विशेषता यह है कि इसे काव्य रूप में संरचित किया गया और यह गेय संगीत के साथ गाया जाता था।
- इस समय के कवियों को अक्कियम (Akkiyam) और आक्कि (Aakki) कहा जाता था।
- संगम काव्य शास्त्र के अनुसार, इसे तमिल काव्यशास्त्र के अनुसार रचा गया था।
2. साहित्य के प्रमुख अंग
प्रारंभिक संगम साहित्य में मुख्य रूप से दो प्रकार के काव्य संग्रह मिलते हैं:
- अक़म काव्य (Akam): यह प्रेम और व्यक्तिगत भावनाओं पर आधारित कविताएँ थीं। इन कविताओं में व्यक्ति की अंतरात्मा और भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति की जाती है।
- पुरल काव्य (Puram): इस प्रकार की कविताएँ युद्ध, राजनीति, वीरता और समाज के सार्वजनिक पहलुओं पर आधारित होती थीं। इनका उद्देश्य समाज की संघर्षशील स्थितियों और ऐतिहासिक घटनाओं को उजागर करना था।
3. संगम साहित्य की संरचना
प्रारंभिक संगम साहित्य का मुख्य आधार पच्चैयम (Paccaiyam) है, जो कि कविता के रचनात्मक तत्वों को संतुलित करता है। इसमें काव्य की भाषा, शब्दों का चुनाव, भावनाओं का संप्रेषण, और शास्त्र के अनुसार विशेष संरचनाओं का पालन किया जाता था।
4. प्रमुख रचनाएँ और कवि
प्रारंभिक संगम साहित्य में कई प्रमुख काव्य रचनाएँ और कवि शामिल हैं, जिनका योगदान भारतीय साहित्य में अनमोल माना जाता है:
- ठोल काप्पिय (Thol Kappiyam): यह संगम साहित्य का पहला ग्रंथ है, जो तमिल काव्यशास्त्र और कविता की सिद्धांतों को व्यवस्थित करता है।
- पेट्टि काव्य (Petti Kavya): इसमें व्यक्तिगत भावनाओं और सामाजिक संबंधों पर आधारित कविताएँ शामिल थीं।
- अहन्नानूरु (Ahananuru) और पोरुर (Porur): यह दोनों संगम काव्य के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, जो प्रेम, युद्ध और वीरता के विषयों पर आधारित हैं।
5. सामाजिक संरचना
प्रारंभिक संगम साहित्य में समाज की व्यवस्था, राजनीति, और धर्म की गहरी छाप दिखाई देती है। इस समय के कवियों ने युद्धों, वीरता, साहस, राजनीति और धर्म के विषयों पर रचनाएँ कीं। इसमें न केवल राजाओं और वीर योद्धाओं का महिमामंडन किया गया, बल्कि आम जनमानस, उनके जीवन के संघर्ष और उनके संबंधों की भी कविताएँ लिखी गईं।
6. धार्मिक विचार
प्रारंभिक संगम साहित्य में धार्मिक विचारों का भी स्थान है, जिसमें शिव, विष्णु, और इश्वर की पूजा और उनके गुणों का वर्णन किया गया है। धर्म और भगवान के प्रति श्रद्धा के विषयों को कवियों ने विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया, और धार्मिक विश्वासों का समाज पर प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
प्रारंभिक संगम साहित्य, तमिल साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो भारतीय संस्कृति और इतिहास को समझने में अहम योगदान देता है। इस साहित्य के माध्यम से न केवल समाज की सोच, धर्म, और संस्कृति का पता चलता है, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में साहित्य का कितना महत्वपूर्ण स्थान था। संगम साहित्य न केवल तमिलनाडु के प्राचीन समाज की सामाजिक और धार्मिक संरचना का चित्रण करता है, बल्कि भारतीय साहित्य के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक है।
उत्तर संगम साहित्य (Later Sangam Literature)
उत्तर संगम साहित्य, संगम साहित्य के बाद का वह साहित्यिक काल है जो 5वीं से 7वीं सदी के बीच रचा गया। इसे पंचम संगम भी कहा जाता है, और इस समय में तमिल साहित्य में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए। यह साहित्य साम्राज्यिक जीवन, धार्मिक परिवर्तन, युद्ध, शौर्य और प्रेम के विषयों पर आधारित था। इस काल का साहित्य अधिकतर काव्य रूप में था और इसमें गेय संगीत का भी प्रमुख स्थान था। उत्तर संगम साहित्य में अक़म और पुरल दोनों प्रकार की कविताएँ शामिल हैं, जिनमें अक़म ने प्रेम और भावनाओं को व्यक्त किया, जबकि पुरल ने युद्ध, राजनीति और वीरता को चित्रित किया।
उत्तर संगम साहित्य की विशेषताएँ
- अक़म काव्य (Akam): प्रेम और व्यक्तिगत जीवन को चित्रित करने वाली कविताएँ, जो शुद्धतम रूप में प्रेम और सम्बन्धों के संघर्ष को दर्शाती हैं।
- पुरल काव्य (Puram): सार्वजनिक जीवन, युद्ध, राजनीति और वीरता पर आधारित कविताएँ, जो समाज और राजनीति के प्रति जागरूकता का प्रतीक हैं।
- धार्मिक विचार: उत्तर संगम साहित्य में धार्मिक विचारों का भी प्रचलन था, जिसमें शिव और विष्णु की पूजा का उल्लेख मिलता है।
- काव्य शैली: उत्तर संगम साहित्य में प्राकृत, संस्कृत और तमिल भाषाओं का मिश्रण था और इसका स्वरूप अधिक गेय था।
संगम काल के कला और वास्तुकला (Art and Architecture During Sangam Age)
संगम काल का भारतीय कला और वास्तुकला पर गहरा प्रभाव पड़ा था। यह काल दक्षिण भारत में तमिल संस्कृति की कला, वास्तुकला और स्थापत्य का स्वर्णिम युग था। इस समय की कला और वास्तुकला ने न केवल धार्मिक और सामाजिक विचारों को प्रकट किया, बल्कि यह तमिल समाज की सांस्कृतिक समृद्धि को भी दर्शाता है।
1. वास्तुकला (Architecture)
- प्रारंभिक मंदिर निर्माण: संगम काल में मंदिर निर्माण की परंपरा की शुरुआत हुई। इस समय के मंदिर मुख्य रूप से शिव, विष्णु, और स्थानीय देवताओं के लिए बनवाए जाते थे। इन मंदिरों में एक विशेष प्रकार की स्थापत्य शैली देखने को मिलती थी, जो कालांतर में विकसित होकर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला का आधार बनी।
- मठ और वाडियाँ: संगम काल में धर्म और समाज के केंद्र के रूप में मठों और वाडियों (मठीय आश्रमों) का निर्माण हुआ। इन मठों में साधु-संत और तंत्र-मंत्र के विद्वान रहते थे और धार्मिक शिक्षा देते थे।
- किलों और संरचनाएँ: संगम काल के समय में किलों और अन्य सुरक्षा संरचनाओं का निर्माण भी हुआ, जो सैन्य और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए उपयोगी थे।
2. कला (Art)
- चित्रकला: संगम काल में चित्रकला का महत्वपूर्ण स्थान था, जिसमें मुख्य रूप से गुफाओं की चित्रकला और चटाई चित्रकला का विकास हुआ। चित्रकला में धार्मिक विषयों के अलावा शाही जीवन, युद्ध और नृत्य के दृश्य चित्रित किए जाते थे।
- वास्तुकला के तत्व: संगम कला में विशेष रूप से पत्थर और लकड़ी के बर्तनों, मूर्तियों, धातुओं और अन्य कलात्मक वस्तुओं का निर्माण हुआ। इस समय की मूर्तियाँ और चित्र अत्यंत जटिल और सुंदर थे।
- शिल्पकला: संगम काल में धातु शिल्प और कांच शिल्प का भी महत्व था। धातु की मूर्तियाँ, जैसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाएँ, इस समय के शिल्प कौशल को दर्शाती हैं।
3. संगीत और नृत्य (Music and Dance)
- संगम काल में संगीत और नृत्य का भी विशेष महत्व था। तमिल नृत्य और संगीत के कई रूपों का उन्नयन हुआ। कूचीपुड़ी और भरतनाट्यम जैसे नृत्य रूपों की नींव संगम काल में रखी गई थी।
- वायलिन और वीणा जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग संगीत में किया जाता था और इन वाद्ययंत्रों की जड़ें संगम काल से जुड़ी हुई हैं।
4. साहित्य में कला का प्रभाव
- संगम साहित्य में कला और संगीत के साथ-साथ युद्ध, शौर्य, प्रेम और वीरता के चित्रण की जाती थी। कवियों ने शाही दरबारों में कला के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक विचारों को व्यक्त किया।
- संगम साहित्य में प्राकृतिक सौंदर्य और मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख भी कला और चित्रकला से संबंधित था।
निष्कर्ष (Conclusion)
संगम काल की कला और वास्तुकला न केवल दक्षिण भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की महत्वपूर्ण धारा का हिस्सा है। इस समय का साहित्य, कला, और स्थापत्य भारतीय समाज की सोच, विचार और सांस्कृतिक समृद्धि का परिचायक है। उत्तर संगम साहित्य और संगम काल की कला का प्रभाव आज भी भारतीय कला और संस्कृति में गहरे रूप से महसूस किया जाता है।
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