Temple architecture in india in hindi

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Temple architecture in india in hindi

भारत में मंदिर वास्तुकला का बुनियादी रूप (The Basic Form of Temple Architecture in India)

भारत में मंदिर वास्तुकला का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक विस्तृत और विविध है। भारतीय मंदिरों की वास्तुकला, धार्मिक विश्वासों, सांस्कृतिक परंपराओं और भौगोलिक स्थितियों के अनुसार विकसित हुई है। भारत में मंदिर वास्तुकला के बुनियादी रूप को समझने के लिए इसे विभिन्न कालखंडों और शैलियों में विभाजित किया जा सकता है, लेकिन कुछ सामान्य तत्व हैं जो लगभग सभी भारतीय मंदिरों में पाए जाते हैं।

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1. मंदिर का आकार और संरचना (Temple Structure and Layout)

  • भारतीय मंदिरों की सामान्य संरचना में चार प्रमुख हिस्से होते हैं:
    1. गर्भगृह (Sanctum Sanctorum or Garbhagriha): यह मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जहाँ भगवान की मूर्ति स्थापित होती है। यह सबसे अंदर की जगह होती है और यहाँ भक्तों का प्रवेश केवल पुजारी द्वारा किया जाता है।
    2. आंतरिक हॉल (Inner Hall or Mandapa): यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए होता है, जहाँ वे पूजा और दर्शन करते हैं। इसमें आमतौर पर स्तंभों और स्तंभों की रचनाएँ होती हैं।
    3. प्रवेश द्वार (Entrance or Torana): मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक मुख्य द्वार होता है, जो आमतौर पर मंदिर के बाहरी हिस्से को सजाने वाले नक्काशीदार काम से सुसज्जित होता है।
    4. शिखर या कलश (Shikhara or Vimana): यह मंदिर की ऊपरी संरचना होती है, जो ऊँची, मठ जैसी आकृति में होती है। शिखर का उद्देश्य भगवान के निवास की ओर दर्शाना होता है और यह मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता होती है।

2. मंदिर के वास्तुशास्त्र के प्रमुख तत्व (Key Elements of Temple Architecture)

  • विभिन्न शैली: भारतीय मंदिर वास्तुकला में विभिन्न क्षेत्रीय और कालिक शैलियाँ विकसित हुईं। इनमें से प्रमुख शैलियाँ हैं:
    • नागर शैली (Nagara Style): यह शैली उत्तरी भारत में प्रचलित है। इसका प्रमुख तत्व शिखर की ऊँचाई और उसके ऊपर की लयबद्ध शिखर कक्ष होती है। इस शैली में मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई सुंदर मूर्तियों और नक्काशी का कार्य प्रमुख होता है।
    • द्रविड़ शैली (Dravidian Style): यह शैली दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसमें मंदिर के शिखर की संरचना घेरदार (पिरामिडनुमा) होती है और मुख्य मंदिर के आसपास भव्य मंडप होते हैं। यहाँ पर गहरी नक्काशी और स्तंभों का प्रयोग ज्यादा होता है।
    • वेसारा शैली (Vesara Style): यह शैली कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में विकसित हुई थी और यह नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रण है।
  • स्तंभों और नक्काशी का महत्व: भारतीय मंदिरों में स्तंभों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। इन स्तंभों पर उकेरी गई मूर्तियाँ और चित्र धार्मिक कथाएँ और शास्त्रों का चित्रण करती हैं। साथ ही, ये स्तंभ भवन की संरचना को मजबूती प्रदान करते हैं।
  • आंगन और मंडप (Courtyard and Mandapa): मंदिरों में आंगन और मंडप (आंतरिक सभा स्थल) एक महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। आंगन खुले स्थान होते हैं जहाँ भक्तों को पूजा करने या ध्यान करने के लिए जगह मिलती है। मंडप में पूजा, धार्मिक कार्यक्रम और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।

3. मंदिर का कार्य (Purpose of the Temple Architecture)

  • धार्मिक महत्व: भारतीय मंदिरों का प्रमुख उद्देश्य देवता का निवास स्थल होना है। यह एक स्थल है जहाँ भक्त पूजा-अर्चना, ध्यान और साधना करते हैं। वास्तुकला का उद्देश्य केवल भव्यता नहीं, बल्कि धार्मिक अनुभव को भी उत्तेजित करना होता है।
  • आध्यात्मिक उद्देश्य: मंदिर का शिखर और गर्भगृह उन भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं जो दिव्य से जुड़ने की कोशिश कर रहे होते हैं।
  • कला और संस्कृति का संरक्षण: मंदिरों में प्राचीन भारतीय कला, मूर्तिकला और स्थापत्य का संरक्षण होता है। यहाँ की नक्काशी और चित्रण भारतीय संस्कृति और दर्शन का प्रतिबिंब होते हैं।

4. मंदिर के स्थापत्य के अन्य विशेषताएँ (Other Features of Temple Architecture)

  • मूर्ति स्थापत्य: भारतीय मंदिरों में मूर्तियों की प्रमुखता होती है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक होती हैं। इन मूर्तियों में भगवान की विभिन्न रूपों और उनके कार्यों का चित्रण होता है।
  • संयोजन और सममितता (Symmetry and Alignment): भारतीय मंदिरों की वास्तुकला में संतुलन और सममितता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मंदिरों का मुख्य द्वार हमेशा पूरब की ओर होता है और भगवान के लिए आदर्श दिशा का चुनाव वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जाता है।
  • जल की व्यवस्था: मंदिरों में अक्सर जल स्रोत जैसे तालाब, कुंड या झरने होते हैं, जो पवित्रता के प्रतीक होते हैं और भक्तों को शुद्धि की भावना प्रदान करते हैं।

5. प्रमुख उदाहरण (Key Examples)

  • अजन्ता और एलीफेंटा गुफाएँ: ये गुफाएँ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला और वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण हैं।
  • काशी विश्वनाथ मंदिर: वाराणसी में स्थित यह मंदिर हिन्दू वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण है।
  • गंगेश्वर मंदिर, अहमदाबाद: यह मंदिर स्थापत्य कला और शास्त्रीय तत्वों का सुंदर मिश्रण है।
  • बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर: यह द्रविड़ शैली के मंदिरों का प्रमुख उदाहरण है।

निष्कर्ष

भारतीय मंदिर वास्तुकला अपनी विविधता, कला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। विभिन्न प्रकार की शैलियों, संरचनाओं और नक्काशी से समृद्ध भारतीय मंदिर न केवल धार्मिक पूजा के केंद्र होते हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी संरक्षण करते हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला में भव्यता, संतुलन और आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

भारत में मंदिर वास्तुकला की शैलियाँ (Types of Temple Architecture in India)

भारत में मंदिर वास्तुकला की कई शैलियाँ हैं, जिनमें से नागर शैली (Nagara Style) एक प्रमुख शैली है। यह शैली मुख्य रूप से उत्तरी भारत में प्रचलित रही है और इसका विकास 6वीं सदी के आसपास हुआ। नागर शैली के मंदिरों में विशेष रूप से शिखर की संरचना और मूर्तिकला का अत्यधिक महत्व होता है।

नागर शैली (Nagara Style)

नागर शैली उत्तरी भारत में विकसित मंदिर वास्तुकला की प्रमुख शैली है, जो विशेष रूप से मध्यकालीन और प्राचीन मंदिरों में देखी जाती है। यह शैली पूरे उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में पाई जाती है। नागर शैली में मंदिरों के डिजाइन और निर्माण में कुछ प्रमुख विशेषताएँ होती हैं, जो इसे अन्य शैलियों से अलग करती हैं।

1. शिखर (Shikhara)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों की सबसे प्रमुख विशेषता उनका शिखर होता है, जो मंदिर की छत से ऊपर की ओर उभरा हुआ होता है। यह शिखर ढलवां आकार का होता है और ऊपर की ओर संकुचित होता जाता है। इसे ‘विमाना’ या ‘शिखर’ कहा जाता है, और यह भगवान के निवास स्थान के रूप में चित्रित किया जाता है। शिखर की संरचना का उद्देश्य भक्तों को एक आध्यात्मिक ऊँचाई तक पहुँचाने का प्रतीक है।
  • आकार और संरचना: शिखर की संरचना अत्यधिक जटिल और कलात्मक होती है। यह आमतौर पर बेलनाकार या शंकु जैसे आकार का होता है।

2. गर्भगृह (Garbhagriha)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में गर्भगृह (Sanctum Sanctorum) मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जहाँ भगवान की मूर्ति रखी जाती है। यह गर्भगृह छोटा, संकुचित और अंधेरे में होता है, ताकि भक्तों को एक गहरी ध्यान अवस्था और भगवान से मिलन का अनुभव हो सके।
  • निर्माण: गर्भगृह का निर्माण आमतौर पर ठोस पत्थरों से किया जाता है और यह मंदिर के सबसे अंदरूनी हिस्से में स्थित होता है।
नागर शैली (Nagara Style)
नागर शैली (Nagara Style)

3. मंडप (Mandapa)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में मंडप एक बाहरी हॉल या सभा भवन होता है, जहाँ भक्त पूजा करते हैं। यह सामान्यत: स्तंभों से घिरा होता है और इसमें भव्य मूर्तिकला के नमूने देखने को मिलते हैं। मंडप का कार्य सामूहिक पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए होता है।
  • आकार और स्थान: मंडप का आकार आमतौर पर बड़ा होता है और यह मंदिर के बाहरी हिस्से में स्थित होता है, जबकि गर्भगृह अंदर की ओर होता है।

4. स्तंभ और मूर्तिकला (Pillars and Sculptures)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में स्तंभों का उपयोग अत्यधिक किया जाता है। इन स्तंभों पर जटिल नक्काशी और मूर्तिकला का काम होता है, जिसमें भगवानों, देवताओं और पौराणिक कथाओं का चित्रण किया जाता है। ये स्तंभ मंदिर के वास्तुशिल्प को सुदृढ़ करने के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी प्रदान करते हैं।
  • नक्काशी: मूर्तिकला में देवी-देवताओं के विभिन्न रूप, पौराणिक दृश्य, और धार्मिक प्रतीकों का चित्रण किया जाता है।

5. शिखर के ऊपर कलश (Kalasha on the Top)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में शिखर के ऊपर एक पवित्र कलश रखा जाता है, जो मंदिर की संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह कलश आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक होता है।

6. आंतरिक सजावट और नक्काशी (Interior Decoration and Carvings)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में दीवारों और शिखर पर सुंदर और विस्तृत नक्काशी की जाती है। इस नक्काशी में देवताओं, मंदिरों, महलों, पशु-पक्षियों और पौराणिक कथाओं के चित्रण होते हैं। यह सजावट धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ को व्यक्त करती है।
  • प्रेरणा: ये नक्काशी और चित्रण भक्तों को एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करने के उद्देश्य से किए जाते हैं।

7. मंदिर का प्रवेश द्वार (Temple Entrance)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों में प्रवेश द्वार के ऊपर सुंदर नक्काशी और वास्तुशिल्प का काम होता है। यह द्वार मंदिर के सौंदर्य को बढ़ाता है और श्रद्धालुओं के लिए एक शुभ और पवित्र प्रवेश प्रदान करता है।

8. निर्माण सामग्री (Construction Materials)

  • विवरण: नागर शैली के मंदिरों का निर्माण आमतौर पर कठोर पत्थरों, बलुआ पत्थर, संगमरमर और अन्य दृढ़ सामग्रियों से किया जाता है। इन सामग्री का उपयोग दीवारों, स्तंभों, शिखर और मूर्तियों के निर्माण में किया जाता है।

प्रमुख उदाहरण (Key Examples of Nagara Style Temples)

  1. कांची कपालेश्वर मंदिर (Kanchi Kapaleshwar Temple), तमिलनाडु: दक्षिण भारत का यह प्रमुख मंदिर नागर शैली के प्रभाव से प्रभावित है।
  2. महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Temple), उज्जैन: यह मंदिर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध नागर शैली के मंदिरों में से एक है।
  3. कल्याणेश्वर मंदिर (Kalyaneshwar Temple), राजस्थान: यह मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

निष्कर्ष

नागर शैली भारत की प्रमुख मंदिर वास्तुकला शैलियों में से एक है, जो उत्तर भारत में प्रचलित रही है। इसकी विशेषताएँ जैसे शिखर, गर्भगृह, मंडप, स्तंभों की नक्काशी, और सुंदर मूर्तिकला इस शैली को अन्य शैलियों से अलग करती हैं। यह शैली न केवल धार्मिक पूजा के लिए एक स्थान प्रदान करती है, बल्कि भारतीय कला और वास्तुकला का अद्वितीय प्रतिनिधित्व भी करती है।

द्रविड़ शैली (Dravidian Style)

द्रविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर वास्तुकला की प्रमुख शैली है। इसका विकास मुख्यतः तमिलनाडु, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश और केरल में हुआ। द्रविड़ शैली के मंदिरों की विशेषता उनकी विशालता, शिखरों की संरचना और सुंदर नक्काशी में है। इस शैली में मंदिरों का निर्माण आमतौर पर पिरामिड जैसी संरचनाओं में किया जाता है, और इसके शिखर की संरचना एक प्रकार के ढलवां आकार में होती है।

द्रविड़ शैली की विशेषताएँ (Features of Dravidian Style)

  1. शिखर और गोपुरम (Shikhara and Gopuram):
    • द्रविड़ शैली के मंदिरों में शिखर या गोपुरम (मुख्य प्रवेश द्वार) की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गोपुरम एक विशाल और भव्य द्वार मीनार होती है, जो मंदिर के मुख्य भाग में प्रवेश करने का मार्ग प्रदान करती है। यह अक्सर बहुत विस्तृत और ऊँची होती है और ऊपर की ओर संकुचित होती जाती है।
    • शिखर की संरचना आमतौर पर ढलवां और पिरामिड जैसे आकार की होती है, जो एक ऊँचाई पर समाप्त होती है। गोपुरम की दीवारों पर देवताओं, नायक-नायिकाओं और पौराणिक कथाओं की नक्काशी की जाती है।
  1. गर्भगृह (Garbhagriha):
    • द्रविड़ शैली के मंदिरों में गर्भगृह (Sanctum Sanctorum) केंद्र बिंदु होता है, जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह आमतौर पर एक संकुचित और अंधेरे स्थान में होता है, जहाँ भक्त केवल पूजारी की उपस्थिति में भगवान के दर्शन कर सकते हैं।
    • गर्भगृह को आंतरिक रूप से अत्यधिक सजाया जाता है, जिसमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और धार्मिक चित्रण होते हैं।
द्रविड़ शैली (Dravidian Style)
द्रविड़ शैली (Dravidian Style)
  1. मंडप (Mandapa):
    • द्रविड़ शैली के मंदिरों में मंडप (एक सभा कक्ष) का विशेष महत्व होता है। यह मंदिर का बाहरी भाग होता है, जिसमें स्तंभों के सहारे ऊँचे और विस्तृत मंडप बनाए जाते हैं। यहाँ पूजा-अर्चना, धार्मिक कार्यक्रम और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
    • इन मंडपों में स्तंभों पर अक्सर सुंदर नक्काशी और मूर्तिकला का कार्य किया जाता है।
  1. स्तंभ और नक्काशी (Pillars and Sculptures):
    • द्रविड़ शैली में स्तंभों का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। इन स्तंभों पर धार्मिक और सांस्कृतिक नक्काशी की जाती है, जिसमें देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, और महाकाव्य दृश्यों का चित्रण होता है। ये नक्काशी मंदिर के सौंदर्य को बढ़ाती हैं और भक्तों के धार्मिक अनुभव को गहरा करती हैं।
  1. आंगन और झील (Courtyard and Tanks):
    • द्रविड़ शैली के मंदिरों में अक्सर एक बड़ा आंगन (Courtyard) होता है, जहाँ भक्त पूजा-अर्चना कर सकते हैं। इसके अलावा, मंदिर के परिसर में जलस्रोत जैसे तालाब, कुंड या झील भी बनाए जाते हैं, जो पवित्रता और शुद्धता के प्रतीक होते हैं।
  1. नक्काशी और सजावट (Carving and Decoration):
    • द्रविड़ शैली के मंदिरों में भव्य नक्काशी और सजावट होती है, जो देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, जानवरों और फूलों की चित्रण होती है। यह नक्काशी बहुत विस्तृत और जटिल होती है और मंदिर की भव्यता को बढ़ाती है।

प्रमुख उदाहरण (Key Examples of Dravidian Style Temples)

  1. बृहदीश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple), तंजावुर, तमिलनाडु
  2. व्रुधाचल मंदिर (Virupaksha Temple), हम्पी, कर्नाटका
  3. दक्षिणेश्वर मंदिर (Dakshineswar Temple), कोलकाता, पश्चिम बंगाल
  4. कांची कपूरलेश्वर मंदिर (Kanchi Kapaleshwar Temple), कांचीपुरम, तमिलनाडु

वेसारा शैली (Vesara Style)

वेसारा शैली एक मिश्रित स्थापत्य शैली है, जो नागर और द्रविड़ शैलियों का सम्मिलन है। यह शैली कर्नाटका और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में विकसित हुई और यहाँ के मंदिरों में देखी जाती है। वेसारा शैली में दोनों शैलियों के तत्वों का संयोजन होता है, जिससे यह एक नई स्थापत्य परंपरा का जन्म हुआ।

वेसारा शैली की विशेषताएँ (Features of Vesara Style)

  1. शिखर और मंडप का मिश्रण (Combination of Shikhara and Mandapa):
    • वेसारा शैली में शिखर और मंडप का संयोजन किया जाता है। इसमें द्रविड़ शैली के गोपुरम और नागर शैली के शिखर दोनों को मिलाकर मंदिर की संरचना बनाई जाती है। शिखर पिरामिड जैसे होते हैं, जबकि गोपुरम का आकार अधिक विस्तृत होता है।
  1. गर्भगृह और आंतरिक संरचना (Garbhagriha and Interior Structure):
    • वेसारा शैली के मंदिरों में गर्भगृह की संरचना नागर शैली से प्रभावित होती है, जबकि इसके बाहर मंडप का निर्माण द्रविड़ शैली की तरह किया जाता है। यह संयोजन मंदिर को एक भव्य और विशाल रूप देता है।
वेसारा शैली (Vesara Style)
वेसारा शैली (Vesara Style)
  1. स्तंभ और मूर्तिकला (Pillars and Sculptures):
    • वेसारा शैली में स्तंभों और मूर्तियों का उपयोग नागर और द्रविड़ शैलियों दोनों के तत्वों के मिश्रण से किया जाता है। स्तंभों पर सुंदर मूर्तिकला, धार्मिक चित्रण और पौराणिक दृश्य होते हैं।
  1. सजावट (Decoration):
    • वेसारा शैली के मंदिरों में दीवारों और छतों पर जटिल नक्काशी और चित्रण होती है। इसमें देवी-देवताओं, आकाशीय प्राणियों और दैवीय घटनाओं की मूर्तिकला होती है, जो भक्तों को एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति देती है।

प्रमुख उदाहरण (Key Examples of Vesara Style Temples)

  1. हंपी (Hampi), कर्नाटका: हंपी में कई मंदिर वेसारा शैली के उदाहरण हैं, जैसे कि विजयवित्थल मंदिर (Vijaya Vittala Temple)
  2. लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर (Lakshmi Narasimha Temple), हंपी, कर्नाटका
  3. बादामी गुफाएँ (Badami Caves), कर्नाटका

निष्कर्ष

द्रविड़ और वेसारा शैली भारतीय मंदिर वास्तुकला के महत्वपूर्ण अंग हैं। द्रविड़ शैली में दक्षिण भारतीय मंदिरों की भव्यता और शिखर की विशेषता प्रमुख होती है, जबकि वेसारा शैली में दोनों शैलियों के तत्वों का सम्मिलन देखा जाता है, जो मंदिरों को एक विशेष रूप और आकार प्रदान करता है। इन शैलियों में भव्यता, नक्काशी और धार्मिक अर्थव्यवस्था का अद्भुत संयोजन होता है, जो भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध करता है।

FAQ

1. भारत में मंदिर वास्तुकला कितने प्रकार की होती है?

भारत में मंदिर वास्तुकला मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है: नागर शैली (उत्तर भारत), द्रविड़ शैली (दक्षिण भारत), वेसर शैली (मिश्रित शैली, जो दक्कन क्षेत्र में प्रचलित है)

2. नागर शैली की विशेषताएँ क्या हैं?

इसमें गर्भगृह के ऊपर शिखर (tower) होता है जो आमतौर पर ऊँचा और सीधे खड़ा होता है।, आमतौर पर, मंदिर की दीवारें सपाट होती हैं।, गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर अलंकरण (decorations) होता है।, उदाहरण: खजुराहो के मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा के लिंगराज मंदिर

3. गर्भगृह का क्या महत्व है?

गर्भगृह मंदिर का सबसे पवित्र भाग होता है, जहाँ भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है।, यह आमतौर पर मंदिर का सबसे मुख्य केंद्र होता है।

4. मंदिरों में गोपुरम का क्या कार्य होता है?

गोपुरम मंदिर के प्रवेश द्वार पर ऊँचा द्वार होता है जो दक्षिण भारतीय मंदिरों में पाया जाता है।, यह न केवल सजावटी होता है बल्कि यह मंदिर की पहचान भी होता है।

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