Tripartite Struggle in hindi

Tripartite Struggle, History, Causes, Phases

त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle)

त्रिपक्षीय संघर्ष में शामिल राजवंश

त्रिपक्षीय संघर्ष 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच कन्नौज पर अधिकार को लेकर तीन प्रमुख राजवंशों के बीच लड़ा गया। ये राजवंश थे:

  1. गुर्जर-प्रतिहार वंश
    • गुर्जर-प्रतिहार वंश के शासकों का मुख्य उद्देश्य कन्नौज पर अधिकार कर उत्तर भारत में अपनी सत्ता स्थापित करना था।
    • उनके प्रसिद्ध शासक नागभट्ट द्वितीय और मिहिर भोज ने इस संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।
  1. पाल वंश
    • पाल वंश का केंद्र बंगाल और बिहार क्षेत्र में था।
    • पाल वंश के शासकों, जैसे धर्मपाल और देवपाल, ने कन्नौज पर अधिकार के लिए संघर्ष किया।
    • बंगाल और पूर्वी भारत पर अधिकार रखने के बाद, पाल वंश के शासकों की महत्वाकांक्षा पश्चिम की ओर बढ़ी।
  1. राष्ट्रकूट वंश
    • राष्ट्रकूट वंश दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था, जिसका केंद्र महाराष्ट्र और कर्नाटक में था।
    • उनके शासक ध्रुव, गोविंद तृतीय, और इंद्र तृतीय ने कन्नौज पर नियंत्रण के लिए संघर्ष किया।
    • राष्ट्रकूट वंश ने उत्तर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप कर इस संघर्ष को और अधिक जटिल बना दिया।
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त्रिपक्षीय संघर्ष(Tripartite Struggle)के कारण

  1. कन्नौज का रणनीतिक और आर्थिक महत्व
    • कन्नौज उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण शहर था, जो गंगा और यमुना नदियों के मध्य स्थित था।
    • यह शहर व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था और इसके नियंत्रण से पूरे उत्तर भारत पर प्रभाव डाला जा सकता था।
  1. राजनीतिक महत्व
    • कन्नौज पर अधिकार करने वाले शासक को उत्तर भारत का सर्वोच्च शासक माना जाता था।
    • यह शहर सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह उत्तरी और मध्य भारत के मार्गों को जोड़ता था।
  1. सत्ता की महत्त्वाकांक्षा
    • तीनों राजवंश अपनी शक्ति और प्रभुत्व का विस्तार करना चाहते थे।
    • गुर्जर-प्रतिहार, पाल, और राष्ट्रकूट सभी कन्नौज को अपनी साम्राज्य विस्तार की योजना का केंद्र बनाना चाहते थे।
  1. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा
    • कन्नौज एक सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र भी था।
    • इसके नियंत्रण से शासकों को धार्मिक प्रतिष्ठा और सांस्कृतिक प्रभुत्व प्राप्त होता था।
  1. स्थानीय शासकों की भूमिका
    • कन्नौज के आसपास के छोटे-छोटे शासकों ने भी संघर्ष को और जटिल बना दिया।
    • कभी-कभी इन स्थानीय शासकों ने किसी एक बड़े राजवंश का समर्थन किया, जिससे संघर्ष और बढ़ गया।

त्रिपक्षीय संघर्ष का प्रभाव

  1. राजनीतिक अस्थिरता
    • इस संघर्ष के कारण उत्तर भारत लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा।
    • कोई भी राजवंश लंबे समय तक कन्नौज पर अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सका।
  1. सैन्य संघर्ष का बढ़ावा
    • तीनों राजवंशों ने अपने सैन्य संसाधनों का अधिकतर हिस्सा इस संघर्ष में लगा दिया।
    • इससे अन्य क्षेत्रों में प्रशासन और विकास कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  1. आर्थिक क्षति
    • बार-बार युद्धों के कारण कन्नौज और आसपास के क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
    • व्यापार और कृषि गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
  1. इस्लामी आक्रमणों के लिए मार्ग प्रशस्त
    • लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता और आपसी संघर्ष ने उत्तर भारत को कमजोर कर दिया।
    • यह कमजोर स्थिति आगे चलकर तुर्क और अफगान शासकों के आक्रमणों का कारण बनी।

निष्कर्ष

त्रिपक्षीय संघर्ष ने मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कन्नौज पर अधिकार की इस लंबी लड़ाई ने उत्तर भारत में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया। यह संघर्ष न केवल तीन प्रमुख राजवंशों की शक्ति-संतुलन की कहानी है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे आंतरिक संघर्षों ने भारत को बाहरी आक्रमणों के प्रति कमजोर कर दिया। यूपीएससी की तैयारी में त्रिपक्षीय संघर्ष के कारण, घटनाक्रम, और प्रभाव को समझना आवश्यक है।

त्रिपक्षीय संघर्ष(Tripartite Struggle) के चरण और प्रमुख घटनाएँ

प्रथम चरण (8वीं शताब्दी के अंत)

  • पृष्ठभूमि:
    • 750 ई. में पुष्यभूति वंश (हर्षवर्धन के वंशज) के पतन के बाद कन्नौज एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया।
    • इसके नियंत्रण के लिए गुर्जर-प्रतिहार, पाल वंश और राष्ट्रकूट वंश के बीच संघर्ष शुरू हुआ।
  • प्रमुख घटनाएँ:
    • गुर्जर-प्रतिहारों का उदय: नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहार वंश की स्थापना की और कन्नौज पर दावा पेश किया।
    • पाल वंश का विस्तार: बंगाल के धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार जमाने का प्रयास किया।
    • राष्ट्रकूटों का हस्तक्षेप: दक्षिण के राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने उत्तर भारत की राजनीति में दखल देकर कन्नौज के लिए संघर्ष में हिस्सा लिया।

द्वितीय चरण (9वीं शताब्दी)

  • राजनीतिक जटिलता का बढ़ना:
    • तीनों राजवंशों के बीच सत्ता संघर्ष और अधिक तीव्र हो गया।
  • प्रमुख घटनाएँ:
  1. धर्मपाल का विजय अभियान (810 ई.):
      • धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार कर “उत्तर भारत का सम्राट” बनने का दावा किया।
      • उन्होंने एक विशाल दरबार आयोजित किया जिसमें कई छोटे राजाओं ने उन्हें अपना स्वामी स्वीकार किया।
  1. गोविंद तृतीय का आक्रमण (816 ई.):
      • राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय ने कन्नौज पर हमला किया और धर्मपाल तथा नागभट्ट द्वितीय दोनों को हराया।
      • गोविंद तृतीय ने अपनी विजय के बाद कन्नौज में राष्ट्रकूट प्रभाव स्थापित किया।
  1. नागभट्ट द्वितीय का पुनरुत्थान:
      • गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय ने अपने साम्राज्य को पुनर्गठित किया और कन्नौज पर फिर से अधिकार जमाने का प्रयास किया।

तृतीय चरण (10वीं शताब्दी)

  • गुर्जर-प्रतिहारों का वर्चस्व:
    • इस चरण में गुर्जर-प्रतिहार वंश ने कन्नौज पर अपना अधिकार स्थापित किया।
    • मिहिर भोज और उनके उत्तराधिकारियों ने कन्नौज को प्रतिहार साम्राज्य का प्रमुख केंद्र बना दिया।
  • प्रमुख घटनाएँ:
  1. मिहिर भोज का शासन (836-885 ई.):
      • मिहिर भोज ने कन्नौज पर अपना स्थायी नियंत्रण स्थापित किया और उत्तर भारत में प्रतिहार वंश को सुदृढ़ किया।
  1. राष्ट्रकूटों और पालों की कमजोर स्थिति:
      • राष्ट्रकूट और पाल वंश आंतरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों के कारण कमजोर हो गए।
      • इसका लाभ उठाकर गुर्जर-प्रतिहारों ने कन्नौज पर अपनी पकड़ मजबूत की।

त्रिपक्षीय संघर्ष के परिणाम

  1. राजनीतिक अस्थिरता
  • लगभग दो शताब्दियों तक उत्तर भारत में स्थायी शासन की स्थापना नहीं हो पाई।
  • तीनों राजवंशों के बीच संघर्ष के कारण कन्नौज और आसपास के क्षेत्रों में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही।
  1. आर्थिक नुकसान
  • युद्धों के कारण कृषि, व्यापार, और उद्योग प्रभावित हुए।
  • कन्नौज, जो एक समृद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र था, बार-बार हमलों के कारण कमजोर हो गया।
  1. साम्राज्यों की कमजोरी
  • तीनों राजवंशों ने अपनी अधिकांश सैन्य और आर्थिक शक्तियाँ इस संघर्ष में झोंक दीं, जिससे वे बाहरी आक्रमणों के लिए कमजोर हो गए।
  • विशेष रूप से गुर्जर-प्रतिहार और पाल वंश कमजोर पड़ गए, जिसका लाभ बाद में तुर्क आक्रमणकारियों ने उठाया।
  1. इस्लामी आक्रमणों के लिए मार्ग प्रशस्त
  • राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक संघर्षों ने उत्तर भारत को कमजोर कर दिया।
  • यह स्थिति आगे चलकर 11वीं शताब्दी में महमूद गज़नवी और तुर्क आक्रमणकारियों के लिए आसान विजय का कारण बनी।
  1. सांस्कृतिक प्रभाव
  • त्रिपक्षीय संघर्ष ने भारत में क्षेत्रीय शक्तियों के महत्व को बढ़ाया।
  • इसने विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को बढ़ावा दिया, लेकिन राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया।

निष्कर्ष

त्रिपक्षीय संघर्ष उत्तर भारत के मध्यकालीन इतिहास की एक प्रमुख घटना थी। कन्नौज के लिए लगभग 200 वर्षों तक चले इस संघर्ष ने भारत में राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय शक्तियों के उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। इसने न केवल तीनों राजवंशों को कमजोर किया बल्कि भारत को बाहरी आक्रमणों के लिए भी तैयार कर दिया। यूपीएससी की दृष्टि से, इस संघर्ष के चरण, प्रमुख घटनाएँ, और परिणाम भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

त्रिपक्षीय संघर्ष UPSC PYQs

प्रश्न 1: निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: (UPSC प्रारंभिक परीक्षा 2022)

राजा  राजवंश

नन्नुका – चंदेला

जयशक्ति – परमार

नागभट्ट द्वितीय – गुर्जर-प्रतिहार

भोज – राष्ट्रकूट

ऊपर दिए गए कितने युग्म सही सुमेलित हैं?

     केवल एक युग्म

(b) केवल दो युग्म

     केवल तीन युग्म

   सभी चार युग्म

उत्तर: (b)

FAQ

त्रिपक्षीय संघर्ष क्या था?

त्रिपक्षीय संघर्ष 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में कन्नौज (कान्यकुब्ज) पर नियंत्रण के लिए तीन प्रमुख राजवंशों – गुर्जर-प्रतिहार, पाला, और राष्ट्रकूट – के बीच हुआ एक लंबे समय तक चलने वाला संघर्ष था।

कन्नौज का महत्व क्या था?

कन्नौज उत्तर भारत का एक समृद्ध शहर था, जो राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसका नियंत्रण सम्राट की शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था।

त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरुआत कब हुई?

संघर्ष की शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई जब तीनों राजवंशों ने कन्नौज पर नियंत्रण पाने के लिए प्रयास किया।

त्रिपक्षीय संघर्ष में किसकी जीत हुई?

संघर्ष कई शताब्दियों तक चला, लेकिन कोई भी राजवंश कन्नौज पर लंबे समय तक अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सका। अंततः गुर्जर-प्रतिहारों ने कुछ समय के लिए कन्नौज पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।

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